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‘वायरस फैलने की आशंका’, मोदी सरकार Covid पीड़ितों के अंतिम संस्कार की पारसियों की मांग मानने को तैयार नहीं

केंद्र की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया है कि अगर सूरत पारसी पंचायत बोर्ड की मांग मानी जाती है तो इससे संक्रमण और ज्यादा फैलने की आशंका है, इसलिए शवों के अंतिम संस्कार का एकमात्र तरीका उनकी चिता जलाना या दफनाना ही है.

कोविड मरीजों के शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हुए, प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो- सूरज कुमार बिष्ट, दिप्रिंट

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने कोविड-19 के कारण मरने वालों के अंतिम संस्कार को लेकर अपने मौजूदा दिशा-निर्देशों में संशोधन से इनकार करते हुए पारसियों की इस मांग को खारिज कर दिया है कि उन्हें अपने समुदाय के लोगों का अंतिम संस्कार अपनी रस्मों के हिसाब से करने की छूट दी जानी चाहिए.

पारसियों ने कोविड से मरने वालों के दाह संस्कार या दफनाने के सरकारी प्रोटोकॉल से अपनी परंपरा के आधार पर छूट मांगी थी. उनका कहना है कि पारसी धर्म की परंपरा के तहत इस समुदाय में मृतकों के शव को विशेष रूप से डिजाइन किए गए टॉवर—जिसे टॉवर ऑफ साइलेंस कहा जाता है—पर छोड़ दिया जाता है, जहां शव का प्राकृतिक तरीके से क्षय होता है.

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने साफ कहा कि निर्धारित मानक संचालन प्रक्रिया के तहत कोविड के कारण मरने वालों के शवों को या तो दफनाया जाना चाहिए या उनका दाह संस्कार किया जाना चाहिए, ताकि उस शव को संभालने वालों में संक्रमण फैलने से रोका जा सके.

केंद्र सरकार की तरफ से यह हलफनामा गुजरात के सूरत पारसी पंचायत बोर्ड द्वारा पिछले माह दाखिल एक याचिका के जवाब में दायर किया गया था, जिसमें शीर्ष कोर्ट से समुदाय की परंपराओं के अनुरूप अंतिम संस्कार की अनुमति देने के लिए हस्तक्षेप की मांग की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी को इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की राय मांगी थी, जब याचिकाकर्ता के वकील—वरिष्ठ अधिवक्ता फाली एस नरीमन ने कुछ दिशा-निर्देश प्रस्तावित किए थे जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा पर केंद्र सरकार की चिंताओं का ध्यान रखने के साथ पारसियों के बीच प्रचलित धार्मिक मान्यताओं की पवित्रता को भी बरकरार रखा जा सके.

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नरीमन ने दलील दी थी केंद्र की तरफ से जारी प्रोटोकॉल ‘अंतिम संस्कार के लिए निर्धारित तौर-तरीकों’ के संदर्भ में पारसी समुदाय की चिंताओं पर ध्यान नहीं देता है.

नरीमन ने सोमवार को एक सुनवाई के दौरान पीठ से कहा कि याचिका दिशा-निर्देशों के खिलाफ नहीं थी, बल्कि याचिकाकर्ता की तरफ से दिए गए सुझाव में पारसी समुदाय की परंपराओं का हवाला दिया गया है और केंद्र सरकार उसे ध्यान में रखकर इस समुदाय के लोगों के उचित तरीके से अंतिम संस्कार की अनुमति दे सकती है.

इसके बाद जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश मेहता को सलाह दी कि याचिकाकर्ता के साथ एक बैठक बुलाए ताकि ऐसा उपयुक्त प्रोटोकॉल तय किया जा सके जिससे पारसी समुदाय के लोग अपनी परंपराओं का पालन करने के साथ कोविड पीड़ितों के शवों का अंतिम संस्कार कर सकें. पीठ इस मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को करेगी.


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‘कोविड शवों का सही तरह से निपटान सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बेहद अहम’

केंद्र ने अपने हलफनामे में नरीमन के सुझावों को खारिज कर दिया है. अधिवक्ता रजत नायर की तरफ से तैयार हलफनामे में कहा गया है कि पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार के दौरान शव को खुला छोड़ दिया जाता है, जिससे कोरोनोवायरस के सक्रिय ट्रेसेस शव ले जाने वाले पेशेवर पालबियर को संक्रमित कर सकते हैं. इसके बाद इनसे वायरस का संक्रमण और भी आगे फैल सकता है.

हलफनामे में कहा गया है कि यदि कोविड पीड़ितों के शवों को दफनाया या दाह संस्कार नहीं किया जाता तो वे पर्यावरण और जानवरों के संपर्क में आ जाएंगे और बहुत संभव है कि इससे सार्स-कोव-2 वायरस जंगली या घरेलू जानवरों में पहुंच जाए. इससे मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए एक नया जोखिम उत्पन्न होगा और आगे चलकर यह इंसानों में ‘स्पिल ओवर इवेंट’ की वजह भी बन सकता है.

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन के एक शोध का हवाला देते हुए केंद्र ने कहा कि संदिग्ध और पुष्ट तौर पर कोविड पीड़ित मरीजों को पालतू जानवरों और वन्यजीवों के साथ सीधे संपर्क में न आने की सलाह दी जाती है.

कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया है, ‘यह भी देखा गया है कि जानवरों की कई प्रजातियां प्रयोगों के दौरान और प्राकृतिक माहौल में संक्रमित मनुष्यों के संपर्क में आने पर वायरस के प्रति संवेदनशील पाई गई हैं. हालांकि अभी तक ये संक्रमण मौजूदा कोविड-19 महामारी के मामले में नहीं पाया गया है जो इंसानों से इंसान में फैलती है. हालांकि, यह एक स्थापित तथ्य है कि संक्रमित जानवर एक-दूसरे में संक्रमण फैला सकते हैं जैसे मिंक से मिंक के या मिंक से बिल्ली के संक्रमित होने के साक्ष्य मिले हैं.’

हलफनामे के मुताबिक, किसी मृत शरीर से किसी नई पशु प्रजाति में पहुंचने से वायरस के विकास की प्रक्रिया को गति मिल सकती है, जिसका ‘इसे लेकर बरती जा रही सतर्कता और नियंत्रण की रणनीति पर प्रतिकूल असर’ पड़ सकता है. ऐसे में इस तरह की ‘चिंताएं जायज’ हैं कि यदि कोविड शवों का उचित तरीके से निपटान नहीं किया गया तो वायरस और घातक साबित हो सकता है.

हलफनामे में सरकार ने कहा है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ परामर्श से जारी शवों का अंतिम संस्कार संबंधी मौजूदा दिशा-निर्देशों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि शवों को संभालने वालों में संक्रमण न फैले. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वैज्ञानिक साक्ष्य बताते हैं कि वायरस मृत शरीर पर, शरीर से किसी तरह के स्राव और मृत शरीर की नम कोशिकाओं में नौ दिनों तक जीवित रह सकता है.

हलफनामे के मुताबिक, ‘माना जाता है कि मृत शरीर एक निर्जीव सतह की तरह हो जाता है और शारीरिक छिद्रों से किसी तरह का स्राव साथ में संक्रमित कोशिकाओं को भी बाहर ले आएगा और वे शव की सतह पर सक्रिय तौर पर मौजूद रह सकती हैं. इसलिए कोविड पीड़ितों के शवों का उचित तरीके से अंतिम संस्कार किया जाना सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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