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फिर महाराष्ट्र सरकार को घेरने निकले किसान, सरकार पर रोकने का आरोप

किसानों को लिखित में आश्वासन दिया था कि उनकी मांगें मान ली जाएंगी, लेकिन पिछले 11 महीनों में सरकार की उदासीनता को देखकर किसानों में नाराजगी है.

News on Farmers protest marching from Nasik to Mumbai
नासिक से मुंबई जा रहा किसानों का जत्था, फाइल फोटो | पीटीआई

मुंबई: महाराष्ट्र के किसान एक बार फिर से प्रदेश की राजधानी मुंबई कूच कर रहे हैं. वजह वो सरकारा द्वारा पिछले साल किए गए वादों की तरक्की से असंतुष्ट हैं. हालांकि,आयोजकों ने आरोप लगाया है कि इस बार मार्च में आने वाली रुकावट केवल पैरों में पड़ने वाले फफोले, अनिद्रा, और छुट्टियों की कटौती तक ही सीमित नहीं है. पुलिस का कहना है कि इस बार उन्हें नासिक में ही प्रोटेस्ट करने की इजाजत है और उन्हें मुंबई आने की अनुमति नहीं मिली है.

मार्च 2018 में 6 दिनों तक 30 हजार से ज्यादा किसानों ने नासिक से मुंबई की 170 किलोमीटर की पदयात्रा की, जहां उन्होंने अपनी मांगों को मनवाने के लिए प्रदर्शन किए. जिसमें कर्ज माफी की भी मांग शामिल है. जिस दिन वे मुंबई पहुंचे, उसी दिन किसानों की मुलाकात मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की भाजपा-शिवसेना सरकार द्वारा बनाए गए एक पैनल से हुई. जिसने उन्हें लिखित में आश्वासन दिया था कि उनकी मांगें मान ली जाएगी, लेकिन पिछले 11 महीनों में सरकार की उदासीनता को देखकर किसानों में नाराजगी है.

इस साल यह प्रदर्शन बुधवार को 4 बजे शुरू होना था. लेकिन आयोजकों का दावा है कि कुछ किसानों को नासिक पहुंचने से पहले अपने जिले में वहां कि पुलिस द्वारा रोका गया. उनका कहना है कि उन्होंने उनके इंतजार में प्रोटेस्ट शुरू करने में देरी की.

‘मार्च रोकने की कोशिश कर रहा प्रशासन’

पिछले साल प्रोटेस्ट कर हलचल पैदा करने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) द्वारा अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के जरिये इस प्रोटेस्ट का आयोजन किया जा रहा है.

पिछले साल प्रोटेस्ट के दौरान किसानों की पीड़ा पर प्रतिक्रिया देने की आलोचना करते हुए, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को किसानों की मांगों पर चर्चा करने के लिए एआईकेएस सदस्यों से मुलाकात की.

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हालांकि, सीएम के आश्वासन से असंतुष्ट, एआईकेएस ने प्रोटेस्ट जारी रखने का फैसला किया. आपको बताते चलें कि यह जत्था 27 फरवरी को मुंबई पहुंचने वाला है. वहीं पिछले साल की तरह इस बार भी महाराष्ट्र विधानसभा सत्र में बजट सत्र चल रहा है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, एआईकेएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धवले ने कहा कि, ‘किसान नाराज हैं और हम इस बार बहुत अधिक मतदान की उम्मीद कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन प्रशासन हमारे लोगों को आंदोलन में भाग लेने से रोक रहा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ठाणे-पालघर क्षेत्र के लगभग 1,000-1,500 किसानों को कानून और व्यवस्था के मुद्दों का हवाला देते हुए प्रोटेस्ट करने से रोका गया. हम इसे इस तरह से जाया नहीं होने देंगे. हम पिछली बार की तरह शांतिपूर्ण तरीके से मार्च करेंगे.

हालांकि, महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री (ग्रामीण) दीपक केसरकर ने कहा कि किसानों को मार्च करने की अनुमति देने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने कहा, ‘उन्हें नासिक में प्रदर्शन करने और मुंबई में प्रवेश करने की अनुमति दी गई है.’

उन्होंने कहा, ‘उन्हें मुंबई में प्रोटेस्ट करने की अनुमति नहीं है. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है. ये कई कारणों के आधार पर लिया गया एक प्रशासनिक निर्णय हैं.’

कोई थकावट नहीं

एआईकेएस प्रोटेस्ट के लिए तीन मुख्य बातों का हवाला देता है.

पहला, किसान पिछले साल की गई मांगों को दोहराना चाहते हैं: राज्य में वादा की गई कृषि ऋण माफी का उचित निष्पादन, एम.एस. की सिफारिशों का कार्यान्वयन. स्वामीनाथन आयोग, जिसमें खेती की लागत का एक अनुमानित न्यूनतम समर्थन मूल्य 1.5 गुना करना था, और वर्षों से इसकी खेती करने वाले आदिवासियों को वन भूमि का हस्तांतरण करना था.

दूसरा, किसान महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए प्रभावी राहत चाहते हैं, जो कि लगभग आधे राज्य को कवर करते हैं.

तीसरा, मार्च 2016 के बाद से महाराष्ट्र में पांच किसानों के आंदोलन के रूप में मार्च निकाला जा रहा है, धावले के अनुसार, केंद्र में ‘नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के खाली वादों’ के खिलाफ विरोध करने के लिए यह प्रोटेस्ट का आयोजन किया जा रहा.

एआईकेएस नेता ने कहा, ‘प्रधानमंत्री चुने जाने से पहले, मोदी ने 440 सभाएं कीं, जहां उन्होंने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में 1.5 गुना उत्पादन लागत देने का वादा किया था.’

‘हालांकि सरकार ने इसे लागू तो किया है, लेकिन आयोग की सिफारिशों को नहीं माना, जिससे किसानों को कोई विशेष फायदा नहीं हुआ. और उनकी आय में कोई वृद्धि नहीं हुई है.’

धवले ने कहा, ‘ मार्च 2016 से अगर गिना जाए तो यह छठा प्रोटेस्ट है. लेकिन किसान बिल्कुल भी थके नहीं है, बल्कि उत्साह से और लबरेज हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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