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कांग्रेस ने ही 1982 में भारत में ईवीएम का इस्तेमाल किया, खुद ही इसे अदालत में चुनौती दी थी

ईवीएम पर शंका और संदेह से भरे इतिहास में एक और अध्याय जुड़ा. ‘ईवीएम हैकथॉन’ से नए सिरे से चर्चा में आई वोटिंग मशीन के इतिहास पर दिप्रिंट की एक नज़र.

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चुनाव अधिकारी त्रिपुर के शरणार्थी शिविर में ईवीएम के इस्तेमाल की जानकारी देते हुए. प्रतीकात्मक तस्वीर | पीटीआई

नई दिल्ली: आलोचनाओं के केंद्र में रहे लंदन के ‘ईवीएम हैकथॉन’ कार्यक्रम ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के शंका और संदेह से भरे इतिहास में एक और अध्याय जोड़ दिया है.

भारत में ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल 37 साल पहले 1982 के केरल विधानसभा चुनावों के दौरान परूर सीट पर किया गया था. इसका उद्देश्य था मतपत्रों के उपयोग, जिसमें वोटर कागज के एक टुकड़े पर अपना मत अंकित करता है, की प्रथा को बदलना, क्योंकि मतपत्रों से वोटिंग में बहुत समय लगता था और हेरा-फेरी की आशंका बनी रहती थी.

1982 में केरल की एक सीट पर ईवीएम का इस्तेमाल प्रायोगिक तौर पर किया गया था, और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार सिवन पिल्लई से पराजित होने के बाद कांग्रेस उम्मीदवार एसी जोस ने ईवीएम के उपयोग के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

अपनी याचिका में जोस ने ईवीएम के इस्तेमाल के लिए कानून में कोई प्रावधान मौजूद नहीं होने की दलील दी थी – और अदालत ने उनकी आपत्ति को सही ठहराया. अदालत ने कानूनी प्रावधान किए जाने तक चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. अदालत का कहना था कि मतदान की प्रक्रिया बदलकर भारतीय चुनाव आयोग अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन कर रहा है.

इसके बाद संसद ने दिसंबर 1988 में जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में बदलाव करते हुए उसमें धारा 61-ए जोड़ दी. इसके तहत चुनाव आयोग को ईवीएम के इस्तेमाल का अधिकार मिल गया.

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‘पारदर्शी’

लेकिन ईवीएम की उपयोगिता को लेकर संदेह बना रहा. सरकार ने फरवरी 1990 में चुनाव सुधार समिति (ईआरसी) का गठन किया, जिसमें राष्ट्रीय और राज्य स्तर के अनेक राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व था. समिति ने तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम से ईवीएम के मूल्यांकन की सिफारिश की.

विशेषज्ञों के इस दल में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन तथा आईआईटी दिल्ली के विशेषज्ञ भी शामिल थे. अप्रैल 1990 में अपनी रिपोर्ट में इस विशेषज्ञ दल ने सर्वसम्मति से ईवीएम के इस्तेमाल की अनुशंसा की. इसने ईवीएम को तकनीकी रूप से सक्षम, सुरक्षित और पारदर्शी करार दिया.

सरकार ने ईवीएम के इस्तेमाल के उद्देश्य से 1992 में चुनाव आयोजन नियम 1961 में आवश्यक बदलाव किए.

2003 में सभी उपचुनाव और राज्य विधानसभाओं के चुनाव ईवीएम के ज़रिए कराए गए. और फिर, पहली बार पूरे देश में ईवीएम के इस्तेमाल के कारण 2004 का आम चुनाव इतिहास में दर्ज़ हो गया.

चुनाव आयोग के अनुसार, भारत में इस्तेमाल की जाने वाली ईवीएम को आयोग ने दो सरकारी कंपनियों, भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, के सहयोग से विकसित किया है.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार ईवीएम के सहारे अभी तक 133 विधानसभा चुनाव और तीन लोकसभा चुनाव कराए जा चुके हैं.

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