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पर्यावरण समूह का उद्देश्य – युवा संरक्षणवादियों को जोड़ना, ‘हरित’ साहित्य में रुचि पैदा करना है

(दुर्बा घोष)

गुवाहाटी, सात अगस्त (भाषा) अपनी 40 साल की यात्रा पूरी कर चुके पूर्वोत्तर क्षेत्र में पर्यावरण कार्यकर्ताओं के एक समूह का अब दोहरा मिशन है- संरक्षणवादियों की एक नयी पीढ़ी तैयार करना और पर्यावरण केंद्रित ‘हरित’ साहित्य को बढ़ावा देना।

प्रकृति के प्रति उत्साही लोगों के समूह ने 1982 में संगठित तरीके से आंदोलन शुरू किया था और तब से इसने असम के वन्यजीव और जैव विविधता के संरक्षण के लिए सभी बाधाओं को पार किया, जिससे दिहिंग-पटकाई और रायमोना राष्ट्रीय उद्यान और चक्रशिला वन्यजीव अभयारण्य का निर्माण हुआ।

क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे ‘नेचर्स बेकन’ के संस्थापक सौम्यदीप दत्ता ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन के विशाल खतरे के सामने, हम आत्मसंतुष्ट नहीं रह सकते।’’

उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हमारे संगठन ने 40 साल पूरे कर लिए हैं और हमने अपने स्वर्ण जयंती समारोह को चिह्नित करने के लिए एक दशक लंबा कार्यक्रम शुरू किया है, जिसमें मुख्य रूप से युवाओं के बीच संरक्षण की भावना को शामिल करना शामिल है।’’

‘अहम वसुधाम कृति मंगलजोनोक’ (मैं पृथ्वी के लिए एक सकारात्मक शक्ति हूं) कार्यक्रम का हालिया शुभारंभ इस दिशा में पहली पहल है।

दत्ता ने कहा कि प्रकृति संरक्षण आंदोलन में एक लाख बच्चों को शामिल करने के लिए यह कार्यक्रम राज्य भर के 100 स्कूलों तक पहुंचा है। उन्होंने कहा कि यह पहली बार है कि इतने सारे स्कूली छात्र इस तरह की पहल में भाग लेने के लिए आगे आए हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इस कार्यक्रम के माध्यम से हम छात्रों को मानसिक सशक्तिकरण के एक नए क्षितिज की ओर ले जाने और हमारे जंगलों, हमारे देश और धरती के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’

पर्यावरणविद ने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान संरक्षण का विचार व्यावहारिक रूप से अस्तित्वहीन था क्योंकि जंगलों का उपयोग मुख्य रूप से जंगली जानवरों के शिकार के लिए खेल अभयारण्य के रूप में किया जाता था। उन्होंने कहा, ‘‘यहां तक ​​कि जब हमने अपना काम शुरू किया, तब भी शिकार कुछ इलाकों में हुआ, हालांकि इसके खिलाफ कानून पहले ही लागू हो चुका था।’’

दत्ता ने दावा किया कि अंग्रेजों ने केवल काजीरंगा, मानस और पोबितोरा को अभयारण्य का दर्जा दिया था, जबकि अन्य सभी राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य राज्य में स्वतंत्रता के बाद की अवधि में ‘‘जन क्रांति’’ के माध्यम से अस्तित्व में आए थे। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक से राज्य में संरक्षण के विचार ने जड़ें जमा ली थीं।

दत्ता ने कहा, ‘‘असम ने कई आंदोलन देखे हैं, लेकिन मैं कह सकता हूं कि पर्यावरण आंदोलन सबसे शांतिपूर्ण रहा है।’’ उन्होंने कहा कि अन्य सभी आंदोलन भाषा, समूहों, समुदायों पर आधारित थे, या राजनीति से प्रेरित थे, लेकिन ‘‘पर्यावरण संरक्षण एक ऐसा आंदोलन है, जहां जाति, पंथ, अमीर, गरीब, राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक मतभेद मौजूद नहीं हैं और लोगों को ‘प्रकृति की रक्षा करने’ के सिर्फ एक लक्ष्य के लिए प्रेरित किया जाता है।

विभिन्न संबंधित विषयों पर लगभग 50 पुस्तकों के लेखक, दत्ता ने कहा कि इस पृष्ठभूमि के खिलाफ पर्यावरण के लिए समर्पित साहित्य की एक शैली बनाने पर जोर दिया गया है, जो भावी पीढ़ी के लिए एक समृद्ध साहित्यिक विरासत छोड़ेगी।

अपनी पुस्तक ‘इयात एकोन अरण्य असिल’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार जीत चुकीं प्रसिद्ध लेखिका अनुराधा सरमा पुजारी ने कहा कि ‘‘राज्य में अपनी समृद्ध जैव विविधता को रिकॉर्ड करने के लिए पर्यावरण-केंद्रित साहित्य को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता है’’।

भाषा सुरभि दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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