होम देश अर्थजगत क्यों अच्छा है बजट 2022, वंदे भारत ट्रेनें कैसे रेलवे को संकट...

क्यों अच्छा है बजट 2022, वंदे भारत ट्रेनें कैसे रेलवे को संकट से उबारने में करेंगी मदद

वित्त मंत्री सीतारमण ने घोषणा की कि अगले तीन सालों में रेलवे 400 वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण करेगा, जबकि 100 ग्रीनफील्ड मल्टीमॉडल कार्गो टर्मिनल भी तैयार किए जाएंगे.

वंदे भारत एक्सप्रेस की एक फाइल फोटो। | फोटो: ट्विटर/@RailMinIndia

नई दिल्ली: वर्ष 2022-23 के लिए पेश किए गए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय रेलवे (आईआर) से जुड़े प्रस्तावों के साथ रेल उद्योग को उत्साहित होने के कई कारण दे दिए हैं.

अगले तीन सालों में भारतीय रेलवे 400 एल्यूमीनियम-बॉडी वाली वंदेभारत ट्रेनों (160 किमी प्रति घंटे की सेमी-हाई स्पीड ट्रेनों) का निर्माण करेगा, जबकि 100 ग्रीनफील्ड मल्टीमॉडल कार्गो टर्मिनल भी बनाए जाएंगे.

बजट प्रस्तावों में सिग्नलिंग सिस्टम को अपग्रेड करने की दिशा में साफ प्रतिबद्धता भी जताई गई है जिसके तहत सीतारमण ने घोषणा की है कि वित्त वर्ष के दौरान 2,000 किमी ट्रैक ट्रेन को टक्कर-रोधी प्रणाली से लैस किया जाएगा.

बजट प्रस्तावों में एक एकीकृत शहरी परिवहन प्रणाली विकसित करने की दिशा में और ज्यादा खर्च का भी प्रावधान किया गया है. इसका सीधा मतलब है कि भारतीय रेलवे की तरफ से रोलिंग स्टॉक अधिग्रहण, बुनियादी ढांचे के विकास और तकनीकी स्तर पर अपग्रेडेशन पर ज्यादा खर्च किया जाएगा.

इस संबंध में आंकड़े उत्साहित करने वाले हैं, 2.45 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत परिव्यय के साथ आंकड़ा पिछले साल के 2.15 लाख करोड़ रुपये के परिव्यय की तुलना में काफी ज्यादा है. 2022-23 के बजट में एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि रेलवे ने निजीकरण की दिशा में अपनी मंशा जाहिर की है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

रेल उद्योग से जुड़ी कंपनियां उत्साहित

एल्सटॉम इंडिया के प्रबंध निदेशक एलेन स्पोहर ने कहा, ‘यह एक प्रगतिशील और विकास करने वाला बजट है जिसका अर्थव्यवस्था पर बहुत ही गहरा असर पड़ेगा. इससे परियोजनाओं पर तेजी से अमल को प्रोत्साहन मिलेगा. मेट्रो डिजाइन सिस्टम के मानकीकरण संबंधी नीति से निर्माताओं को स्थिरता हासिल होगी जिसकी बेहद जरूरत थी.’

नॉर ब्रेमसे (इंडिया) के प्रबंध निदेशक दीपांकर घोष ने कहा, ‘रेलवे सेक्टर के लिए यह पहल बड़ा बदलाव लाने वाली है, क्योंकि इसकी रूपरेखा आने वाले समय में विकास को ध्यान में तैयार की गई है.’

टैल्गो इंडिया के प्रबंध निदेशक सुब्रत नाथ की राय भी कुछ ऐसी ही रही. उन्होंने कहा, ‘ये बजट ट्रेनों और यात्रियों दोनों के ही लिहाज से बहुत ही सकारात्मक है. हमें उम्मीद है कि भारतीय रेलवे को टिल्टिंग टेक्नोलॉजी वाले कोचों पर भी पूरा भरोसा होगा, क्योंकि ये गति को बढ़ाने में काफी कारगर होते हैं.’

बजट में जिस पर कुछ नहीं कहा गया

वित्त मंत्री सीतारमण के पिछले बजट भाषणों की तरह ही फाइन प्रिंट में कुछ मुद्दों को बिना कुछ कहे ही छोड़ दिया गया है.

इसमें आंतरिक पुनर्गठन की योजनाओं के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया, रेलवे उत्पादन इकाइयों के निगमीकरण या निजी ट्रेनें शुरू करने पर भी कुछ नहीं कहा गया, और महत्वाकांक्षी स्टेशन पुनर्विकास योजना या पूर्वी और पश्चिमी समर्पित फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) के पूरे होने की संभावित तिथियों पर भी चुप्पी साधे रखी गई है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वित्त मंत्री ने सार्वजनिक ट्रांसपोर्टर को उसकी मौजूदा खराब वित्तीय स्थिति से उबारने की रणनीतियों पर भी चुप रहना ही बेहतर समझा है.

इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई के पूर्व महाप्रबंधक और स्वतंत्र सलाहकार सुधांशु मणि का कहना है, ‘2019 के बाद से यह तीसरा वर्ष है जब रेलवे का परिचालन अनुपात (प्रति 100 पैसे या एक रुपये की कमाई पर होने वाला खर्च) 100 प्रतिशत से अधिक हो गया है, जबकि भारतीय रेलवे ने पेंशन खर्च को सरकार और अतिरिक्त बजटीय सहायता से पूरा करके इसे 100 प्रतिशत से नीचे बनाए रखने की कोशिश की है.’

मणि ने कहा, ‘पिछले दो वर्षों में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने इसे खुद को नुकसान पहुंचाने वाली आंकड़ों की बाजीगरी करार दिया है.’

भारतीय रेलवे ने अभी तो अपने कर्ज पर ब्याज में छूट हासिल कर ली है, लेकिन इसकी बकाया उधारी 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी है. जब कर्ज पर ब्याज देने से छूट हट जाएगी तो उधार के आंकड़े स्पष्ट तौर पर आसमान छूने लगेंगे.

मणि ने कहा, ‘इस बजट में पूंजीगत व्यय पर अतिरिक्त 2.45 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि इस खर्च में कटौती और निवेश पर रिटर्न के प्री और पोस्ट ऑडिट की एक मजबूत प्रणाली स्थापित करने पर जोर देना समझदारी भरा कदम होता.’

रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य राजेश अग्रवाल ने भी इसी तरह की राय जाहिर करते हुए कहा कि मौजूदा समय में जरूरी है कि एक न्यायिक समिति का गठन किया जाए और रेलवे की वित्तीय स्थिति पर एक श्वेतपत्र जारी किया जाए.

वंदे भारत ट्रेन बन सकती है बड़ा अवसर

हालांकि, वित्तीय स्थिति गंभीर बनी हुई है, ऐसे में शायद यही कहा जा सकता है कि अगर अमल की समयसीमा पूरी हो जाए तो बजट में घोषित 400 वंदे भारत ट्रेनें भारतीय रेलवे के लिए वास्तव में गेम-चेंजर साबित हो सकती हैं.

सूत्रों के मुताबिक, 400 वंदे भारत ट्रेनें, जब भी वे शुरू हो पाती हैं तो रेलवे के पैसेंजर बिजनेस में लगभग 15 प्रतिशत हिस्सेदारी उन्हीं की होगी. अभी जो एसी कोच संचालित किए जा रहे हैं, उनकी यात्री व्यवसाय में हिस्सेदारी लगभग 3 प्रतिशत है.

तीव्र गति के साथ आरामदायक ट्रेन यात्रा की क्षमता काफी बढ़ जाने पर भारतीय रेलवे इस स्थिति में आ सकती है कि लोग सड़क और विमान यात्रा की तुलना में इसे तरजीह दें.

हालांकि, समस्या यह है कि परियोजना में देरी रेलवे की कार्य संस्कृति का हिस्सा रही है. अभी तक केवल दो वंदे भारत ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है, जबकि इस साल जून में एक तीसरा रैक शुरू होने की संभावना है.

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘सप्लाई चेन को मजबूत करना और अपनी क्षमताओं को बढ़ाना जैसे कई मुद्दे हैं जिन्हें यूं ही छोड़ दिया गया है. इसकी कोई संभावना नजर नहीं आती है कि अगले तीन वर्षों में 150 से अधिक ऐसी ट्रेनों का निर्माण किया जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें- क्यों निर्मला सीतारामण के इस बजट को चुनावी बजट कह भी सकते हैं और नहीं भी कह सकते हैं


Exit mobile version