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भारतीय बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र से जुड़े संकट के पीछे की अनकही कहानी – पांडेमोनियम

भारतीय बैंकिंग की मौजूदा संरचना और उससे जुड़े हुए अन्य मुद्दे , बैंकिंग से समबन्धित विकास को अवरुद्ध करता रहा है. खराब ऋण बैलेंस शीट के साथ NPA भारतीय बैंकों की संभावनाओं को नीचे खींच रही हैं. पुस्तक में भारतीय अर्थव्यवस्था की सच्ची तस्वीर को चित्रित की गई है.

नई दिल्ली के एक यस बैंक ब्रांच के बाहर खड़ा व्यक्ति | फोटो : मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

क्या वास्तव में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, भारत की वित्तीय प्रणाली की रीढ़ हैं? सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में ,सरकार के स्वामित्व का स्वरूप कैसा है ? वह कौन से कारण हैं जो सार्वजानिक बैंको को आगे बढ़ने से रोकती है ?

वित्तीय विषयों के लेखक और पत्रकार तमल बंद्योपाध्याय ने अपनी पुस्तक ‘पांडेमोनियम: द ग्रेट इंडियन बैंकिंग ट्रेजेडी’ में बैंकिंग क्षेत्र को कमजोर करने की कोशिश की गहन पड़ताल की है. यह पुस्तक भारतीय बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र से जुड़े संकट के पीछे की अनकही कहानियों को सामने लाती है.

पुस्तक में विस्तार से बैंकिग क्षेत्र से जुड़ी अनगिनत समस्याओं को, सरल भाषा में समझाया है.

पुस्तक इस अर्थ में भी संपूर्ण है कि, इसमें कुछ सामयिक मुद्दों (NBFC का संकट तथा हालिया बैंकिंग धोखाधड़ी से जुड़े मुद्दे) को विस्तार से शामिल किया गया है साथ ही, बैंकिंग क्षेत्र के मूलभूत और स्थायी समस्याओं का विवरण भी बहुत सप्ष्टता से साथ दिया गया है. लेखक, इसी श्रृंखला, में शीर्ष के प्रबंधन और, रेटिंग एजेंसियों अदि के ‘नेक्सस’ को भी बहुत बारीकी से सामने लाते हैं. यह पुस्तक, हमारे समक्ष प्रश्न रखती है, कैसे भारतीय बैंकिंग प्रणाली में असामयिक तथा अकारण तनाव पैदा किया गया ?

विभिन्न क्रेडिट एजेंसियों, देश के शीर्ष बैंकरों और अन्य अदृश्य ताकतों ने कहां – कहां ग़लती की ? जिनके द्वारा लिए गए अनगिनित ग़लत निर्णयों से देश की अर्थव्यवस्था कितनी बुरी तरह प्रभावित हुई ?

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

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जब देश के निति निर्धारकगण निजीकरण के लिए रास्ता तैयार कर रहे थे, तो तो ठीक उसी समय, चंदा कोचर और राणा कपूर जैसे बैंकरों ने प्राइवेट सेक्टर बैंको के अंदरूनी सच को उजागर किया.

वित्तीय प्रणाली और संभावित आपदाएं

पुस्तक को मोटे तौर पर पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है, यथा, भारत में बैंकिंग की इतिहास, घोटाले, बैंकिंग क्षेत्र के संभावित चुनौतिओं के साथ-साथ देश की वित्तीय प्रणाली को हिला देने वाली संभावित आपदाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है.

एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग को पुनःआकार देने वाली नाटकीय ताकतों को समझने के लिए यदि हम गहरी दृष्टि डालते हैं, तो यह पुस्तक भारतीय बैंकिंग का एक विहंगम दृश्य दिखाता है और एक फ्लाई-ऑन-वॉल डॉक्यूमेंट्री भी.

बैंकिंग की इस जटिल समस्याओं को समझने के लिए निति नियामकों, शीर्ष के बैंकरों, बैंकिंग मामले के अर्थशास्त्रियों और उद्योग जगत के दिग्गजों के साथ मिलकर लेखक ने इस वितान को हमारे समक्ष लाने का एक सफल प्रयास किया है. साथ ही बैंकिंग संकट जैसी जटिल विषय को जिस मजबूती और भाषाई सरलता के साथ समझाने का प्रयास किया है, वह वास्तव में प्रसंशनीय है.

इस किताब के आधे हिस्से में यह बात सामने आती है कि, बैंकिंग क्षेत्र की असंख्य समस्याओं का एक भी ठोस जवाब नहीं है. और यह दुर्भाग्यपूर्ण है! जैसा कि, आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने किताब में साझा भी किया है, ‘यह इंगित करना मुश्किल है कि इस बैंकिंग गड़बड़ी के लिए कौन जिम्मेदार है.’ यह किताब , भारत की बैंकिंग प्रणाली पर एक ऐसी अकथ कथा है, जो हमारे समक्ष कई परतों में खुलती है.

तमल बंद्योपाध्याय, ने अपने किताब में, बैंकिंग प्रणाली से जुडी हुई, अधिकांश समस्याओं को किश्तों में हमें समझाने का सफल प्रयास किया है.

हम जानते हैं कि, कैसे हाल के वर्षो में, बेनामी संपत्ति, गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA), क्रेडिट ग्रोथ से जुडी हुई चिंताएं, बैड गवर्नेंस, लोन की सदाबहारता, पुनर्पूंजीकरण – की अधिकता या कमी – ये सभी मामले, वर्तमान बैंकिंग सेक्टर की परतो को उधेरने वाले ज्वलंत और संवेदनशील विमर्श हैं. इस सब के अलावा, पीएसबी (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक) के समस्याओं का भी अपना एक जखीरा है.

लेखक के ही शब्दों में, भारतीय बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में संकट के पीछे की अनकही कहानियों को पढ़ना और समझाना, एक दिलचस्प, रहस्यकथा की तरह है. जबकि यह विषय बेहद जटिल और संवेदनशील है और इसे समझने के लिए एक खास प्रकार की अंतर्दृष्टि की जरुरत है.

पांडेमोनियम: द ग्रेट इंडियन बैंकिंग ट्रेजेडी

आरबीआई के चार गर्वनरों का अहसास

पुस्तक का दूसरा-अंतिम भाग सबसे अधिक रोचक है. इसका कारण – भारतीय रिजर्व बैंक के चार पूर्व गवर्नर , सी रंगराजन, वाई.वी. रेड्डी, डी सुब्बाराव, और रघुराम राजन, के साथ बंद्योपाध्याय का विस्तृत बातचीत है. इस वार्तालाप में, आरबीआई के चारों पूर्व गवर्नर , अपने-अपने कार्यकाल में लिए गए निर्णयों के विषय में जानकारी साझा करते हैं. इसमें महत्वपूर्ण यह है कि, उन्हें इस बात का अहसास होता है कि ,यदि कुछ निर्णय अथवा नीति को अन्य तरीके से लिया गया रहता तो बेहतर होता .

सीधे शब्दों में कहें, भारतीय बैंकिंग की मौजूदा संरचना और उससे जुड़े हुए अन्य मुद्दे , बैंकिंग से संबन्धित विकास को अवरुद्ध रहा है. खराब ऋण (Bad Loan ), बैलेंस शीट के साथ गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA) भारतीय बैंकों की संभावनाओं को नीचे खींच रही हैं. अपने लेखन कौशल से अपनी पुस्तक में तमल बंद्योपाध्याय ने भारतीय अर्थव्यवस्था की सच्ची तस्वीर को चित्रित किया है.

पढ़ते हुए आपको सहसा एहसास होता है कि ,यह पुस्तक संभवतः आपसे भी प्रश्न कर सकती है – आखिर ऐसा क्यों हुआ?
इस किताब में उल्लेखित है कि केंद्र सरकार अपने दावे कि, नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा फायदा मिलने वाला है पर डटी रही. लेखक, हमें बताते हैं कि, कैसे देश की सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में आई गिरावट के लिए सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन ‘नोटबंदी’ एक महत्वपूर्ण कारण था.

बंद्योपाध्याय के शब्दों में, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश की बैंकिंग प्रणाली अपने लगातार कमजोर -प्रदर्शन के लिए उदाहरण सी बन गई है. लेखक को चिंता है और वह हमें आगाह कराते हैं कि, यह स्तिथि को समझने और व्यापक परिवर्तनों पर कार्य करने का समय है.

तमल ने बहुत धैर्यपूर्वक , बैंकिंग के विभिन्न पहलुओं और उनकी समस्याओं और उनसे जुडी हुई चुनौतियों को एकत्रित किया है, साथ ही किताब के अंतिम भागों में इन मुद्दों के निदान के तरीके भी बताये हैं.

लेखक के बारे में

तमल बंद्योपाध्याय, ने भारतीय अर्थव्यवस्था और व्यापर से जुडी पांच महवत्पूर्ण और चर्चित पुस्तकें लिखी हैं, पांडेमोनियम: द ग्रेट इंडियन बैंकिंग ट्रेजेडी , उनकी छठी किताब है. यह जानना दिलचस्प है कि,अंग्रेजी साहित्य के छात्र (MA , कलकत्ता विश्वविद्यालय), तमल बंद्योपाध्याय ने पत्रकारिता में अपना करियर एक ट्रेनी जौर्नालिस्ट के रूप में टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ मुंबई में शुरू किया था.

बाद के वर्षो में उन्होंने कई अन्य प्रमुख मिडिया संस्थानों में अपना योगदान दिया है. तमल, बिजनेस स्टैंडर्ड और एचटी की ‘मिंट’ में प्रकाशित बैंकिंग और फाइनेंस पर अपने साप्ताहिक कॉलम के कारण, पाठकों के मध्य एक सुपरचित नाम हैं. 2019 में, लिंक्डइन ने उन्हें ‘भारत में सबसे प्रभावशाली आवाज़ों में से एक’ के रूप में नामित किया था.

आम जनमानस के समक्ष ऐसे अनकहे सच को सामने लाने में जो नैतिक साहस का उन्होंने परिचय दिया है, यह उन्हें अपने ही समय के अन्य लेखकों से अलग करता है. समकालीन भारत की चुनौतियों और आर्थिक क्षमता और विषमता को समझने के लिए इस किताब को पढ़ा जाना चाहिए. उन्ही के लिखी अन्य किताबों की तरह यह हमारे बुकशेल्फ़ में शामिल की जाने वाली एक महत्वपूर्ण पुस्तक है.

(पुस्तक :पांडेमोनियम: द ग्रेट इंडियन बैंकिंग ट्रेजेडी, लेखक : तमल बंद्योपाध्याय,प्रकाशक : रोली बुक्स, भाषा : अंग्रेजी)

( आशुतोष बैंगलोर में एक मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं)

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