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WTO में पीयूष गोयल ने कहा – मछुआरों की आजीविका से समझौता नहीं कर सकते हैं

गोयल ने जोर देकर कहा, 'भारत अपने मछुआरे परिवारों को सब्सिडी में मुश्किल से 15 डॉलर प्रति वर्ष देता है, लेकिन ऐसे देश भी हैं जो एक मछुआरे परिवार को 42,000 डॉलर, 65,000 डॉलर और 75,000 डॉलर देते हैं.'

एक ग्राहक नान्चिंग, गुआंग्शी प्रांत, चीन के डानचुन मार्केट के अंदर एक स्टाल पर खरीदने के लिए मछली को देखता हुआ, फाइल फोटो.

नई दिल्ली: केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने मंगलवार को मछली पालन सब्सिडी से निपटने में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में विशेष और अलग व्यवहार करने का आह्वान करते हुए कहा कि भारत 90 लाख से अधिक मछुआरे परिवारों की आजीविका से समझौता नहीं कर सकता है.

गोयल ने कहा, ”मैंने कई देशों को अपने मछुआरों को लेकर बहुत फिक्रमंद होते हुए देखा है लेकिन मछुआरों की संख्या कितनी है? एक में 1,500 मछुआरे हो सकते हैं, दूसरे में 11 हजार मछुआरे हो सकते हैं. दूसरे में 23 हजार मछुआरे हो सकते हैं और किसी अन्य में 12 हजार हो सकते हैं. इसीलिए अगल अगल व्यवहार रखने की जरूरत है.”

उन्होंने कहा, ‘छोटे पैमाने पर पारंपरिक मछुआरों को उनकी क्षमताओं का विस्तार करने के लिए अगर कोई मौका नहीं दिया गया तो ये उनके भविष्य के मौकों को भी खत्म कर देगा. यह पूरी तरह से स्वीकार्य नहीं है और यही कारण है कि भारत इसका विरोध करता है. भारत डि मिनिमिस के संस्थागत करने की मांग का भी विरोध करता है.’

मछली पालन सब्सिडी पर डब्ल्यूटीओ के प्रस्ताव का विरोध करते हुए गोयल ने कहा, ‘मुझे लगता है कि अभी किए जा रहे अभ्यास के इस परिणाम ने विकासशील देशों को पारंपरिक मछुआरों की आकांक्षाओं और उनकी आजीविका को पूरा करने के लिए बराबर का मौका नहीं दिया है. भारत में कई मिलियन मछुआरे, लगभग 9 मिलियन परिवार सरकार की मदद पर निर्भर हैं.’

गोयल ने जोर देकर कहा, ‘भारत अपने मछुआरे परिवारों को सब्सिडी में मुश्किल से 15 डॉलर प्रति वर्ष देता है, लेकिन ऐसे देश भी हैं जो एक मछुआरे परिवार को 42,000 डॉलर, 65,000 डॉलर और 75,000 डॉलर देते हैं.’

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उन्होंने कहा, ‘मौजूदा मात्स्यिकी पाठ के जरिए यह असमानता की सीमा है जिसे संस्थागत बनाने की कोशिश की जाती है.’

गोयल ने कहा, ‘हमारे पारंपरिक मछुआरे हमारी और कई अन्य देशों की प्लेटों में स्वादिष्ट और पौष्टिक मछली प्रोटीन लाने के लिए कठोर और चरम परिस्थितियों में कड़ी मेहनत करते हैं.’


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