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भारत में ‘मुखिया विहीन पीएसयू’ एक समस्या—15 PSU में शीर्ष पद 2017-18 से ही खाली पड़े हैं

इस तरह के पदों पर नियुक्तियों के संबंध में सरकार को सलाह देने की जिम्मेदारी संभालने वाले लोक उद्यम चयन बोर्ड का ही शीर्ष पद छह महीने से अधिक समय से रिक्त पड़ा है.

चित्रण:दिप्रिंट

नई दिल्ली: सार्वजनिक क्षेत्र की 15 कंपनियों में शीर्ष अधिकारी का पद खाली पड़ा है, यही नहीं बड़े और मध्यम स्तर के कई उपक्रमों में अहम जिम्मेदारी वाले निदेशक जैसे शीर्ष प्रबंधन पद भी रिक्त हैं. यह जानकारी लोक उद्यम चयन बोर्ड के आंकड़ों से सामने आई है.

ऐसे पीएसयू जिसमें मुखिया का पद रिक्त है, में इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड, इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन (आईआरसीटीसी) बीईएमएल लिमिटेड, बीपीसीएल, नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड और नेशनल टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन लिमिटेड जैसी फर्म शामिल हैं.

हालांकि, कुछ मामलों में रिक्तियां पिछले कुछ महीनों के दौरान हुई है, जबकि अन्य में 2017 के बाद से ही शीर्ष पद खाली पड़े हैं. ज्यादातर मामलों में पीएसयू का प्रभार सार्वजनिक उपक्रम के ही किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी को सौंप दिया गया है, या फिर संबंधित सरकारी विभाग से जुड़े मंत्रालय के अधिकारियों को.

इस संबंध में 17 मार्च को प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रवक्ता को भेजे गए एक ईमेल पर यह रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय तक कोई जवाब नहीं आया था.

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चयन निकाय ही मुखिया विहीन

तथ्य ये है कि ऐसे रिक्त पदों पर भर्ती में सरकार की मदद करने की जिम्मेदारी संभालने वाले बोर्ड में एक सदस्य के साथ-साथ मुखिया का पद भी खाली पड़ा है जो कि चयन प्रक्रिया में मददगार नहीं हो सकता.

मौजूदा संरचना के अनुसार, पीईएसबी में एक अध्यक्ष और तीन सदस्य होते हैं, और राजीव कुमार को चुनाव आयुक्त नियुक्त किए जाने के बाद से इसके अध्यक्ष का पद सितंबर 2020 से खाली पड़ा है, जबकि तीन में से एक सदस्य का पद भी रिक्त है.

इस संबंध में टिप्पणी के लिए 15 मार्च को पीईएसबी के सदस्यों में से एक को भेजे गए ईमेल पर कोई जवाब नहीं आया है.

कॉरपोरेट गवर्नेंस रिसर्च एंड एडवाइजरी फर्म, स्टेकहोल्डर्स इम्पॉवरमेंट सर्विसेज के सह-संस्थापक जे.एन. गुप्ता कहते हैं, ‘किसी भी संगठन का मुखिया विहीन होना कभी अच्छी व्यवस्था नहीं कहा जा सकता. ज्यादातर पीएसयू के बहुत अधिक सम्पन्न होने के बावजूद मामूली प्रशासनिक मुद्दों के कारण निवेशकों की तरफ से उसका ठीक से आकलन नहीं किया जाता. शीर्ष पद रिक्त होना इसी का एक उदाहरण है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पीएसयू सूचीबद्ध है या गैरसूचीबद्ध; शीर्ष नेतृत्व के अभाव का सीधा असर इसकी समृद्धता पर पड़ता है.’

पीईएसबी डाटा दिखाता है कि निर्देशक स्तर के कई पद भी रिक्त पड़े हैं और वो कुछ ऐसे वर्टिकल में हैं जो पीएसयू के संचालन के लिए बेहद अहम होते हैं.

उदाहरण के तौर पर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन में निदेशक (रिफाइनरीज) का पद जुलाई 2020 से खाली पड़ा है. बीपीसीएल में भी ऐसा ही एक पद खाली है, जिसमें एक अन्य निदेशक को अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है. भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड में निदेशक (ऊर्जा) का पद भी रिक्त है.

सरकार ने पीएसयू के निजीकरण पर जोर देने वाले अपने प्रारंभिक मसौदा कैबिनेट नोट, जो पिछले साल सर्कुलेट किया गया था, में यह सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों के खराब प्रदर्शन का हवाला दिया था. इसमें बताया गया कि सरकारी स्वामित्व वाली सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण कैसे सभी कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण का लगभग 8 प्रतिशत ही था, जो पांच साल में 13 प्रतिशत से घटकर इतना रह गया है. इसके अलावा, बीपीसीएल जैसी कंपनियां रणनीतिक हिस्सेदारी बिक्री के अंतिम चरण में हैं.

‘खाली पदों का खामियाजा’

पूर्व स्कूल शिक्षा और कोयला सचिव अनिल स्वरूप भी गुप्ता के विचारों से सहमति जताते हुए इस बात पर जोर देते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इन खाली पदों की ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे इन संगठनों का कामकाज बाधित हो रहा है.

स्वरूप ने बताया कि खराब मानव संसाधन प्रबंधन केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के खराब प्रदर्शन का एक बड़ा कारण है.

सीएनबीसी टीवी 18 के लिए एक कॉलम में उन्होंने लिखा, ‘हम खराब प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को कोसते रह सकते हैं. इसमें से कुछ बेहतर तरीके से काम करने में सक्षम हो सकते हैं लेकिन ऐसा न हो पाने के कई कारणों में से एक हमारा खराब मानव संसाधन प्रबंधन है. बड़ी संख्या में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम किसी मुखिया के बिना छोड़ दिए गए हैं और महीनों से किसी निदेशक के बिना पड़े रहने का इनके कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है.’

स्वरूप ने कोल इंडिया, जहां एक अध्यक्ष-प्रबंध निदेशक या सीएमडी की अनुपस्थिति ने ‘विकट स्थिति’ खड़ी कर दी थी, का उदाहरण देते हुए कहा कि 2014-15 और 2015-16 के दौरान रिकॉर्ड कोयला उत्पादन के बाद देश में एक बार फिर कोयले की खासी कमी हो गई थी और उस समय सीआईएल एक साल से नियमित सीएमडी के बिना काम कर रहा था. उन्होंने कहा कि पूर्णकालिक सीएमडी के पद संभालने के बाद स्थिति में सुधार हो गया.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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