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चावल भूसी डीओसी पर निर्यात प्रतिबंध हटाए सरकार: एसईए

उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी | एएनआई
इसरो वैज्ञानिक एन. वलारमथी | ट्विटर/@DrPVVenkitakri1

नयी दिल्ली, एक मार्च (भाषा) खाद्य तेल उद्योग संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने शुक्रवार को सरकार से चावल भूसी डी-आयल्ड केक (डीओआरबी) पर निर्यात प्रतिबंध हटाने की मांग की। उसने कहा कि इस प्रतिबंध से दूध की कीमतें कम नहीं हुईं बल्कि इससे केवल प्रसंस्करणकर्ता और निर्यातक प्रभावित हुए।

सरकार ने दूध की कीमतों में महंगाई पर लगाम लगाने के लिए जुलाई 2023 में डीओआरबी के निर्यात पर चार महीने के लिए प्रतिबंध लगाया था और बाद में इसे इस साल 31 मार्च तक बढ़ा दिया।

चावल की भूसी से निकाले गए डीओआरबी का उपयोग मवेशियों, मुर्गीपालन, सूअर और अन्य उद्योगों के लिए पोषक उत्पादों के उत्पादन में किया जाता है।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्री परषोत्तम रूपाला को दिये ज्ञापन में सरकार से डीओआरबी पर निर्यात प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया।

एसईए ने अपने प्रतिवेदन में कहा है, ‘‘दूध की कीमतों को कम करने के लिए डीओआरबी पर यह निर्यात प्रतिबंध जुलाई 2023 से लगाया गया था, हालांकि, इस प्रतिबंध के बाद से हमने देश भर में दूध की कीमतों में लगभग कोई कमी नहीं देखी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दूध की कीमत में डीओआरबी का लागत प्रतिशत बहुत मामूली है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘हमारा अभी भी विचार है कि इस प्रतिबंध को जारी रखने से दूध की कीमतों में कमी नहीं आयेगी, लेकिन चावल की भूसी प्रसंस्करणकर्ताओं और डीओआरबी निर्यातकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता रहेगा।’’

इसके अलावा, एसईए ने कहा कि निर्यात नीति में अचानक बदलाव से श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे प्रतिस्पर्धी देशों को डी-ऑयल चावल की भूसी के लिए वियतनाम बाजार पर कब्जा करने का अवसर मिला है।

पश्चिम बंगाल सहित पूर्वी राज्य डीओआरबी के महत्वपूर्ण उत्पादक हैं, देश के इस हिस्से में पशु चारा उद्योग अविकसित है और पूर्वी भारत में इसकी सीमित मांग है।

एसईए ने कहा, ‘‘चूंकि निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, पूर्वी भारत में चावल भूसी प्रसंस्करणकर्ताओं को अपना परिचालन बंद करने की संभावना का सामना करना पड़ रहा है, जिससे चावल मिलिंग उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और चावल भूसी तेल का उत्पादन कम हो जाएगा।’’

भाषा राजेश राजेश रमण

रमण

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