होम देश अर्थजगत जेनरेटिव एआई, जीसीसाी आगामी वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को देंगे रफ्तार :...

जेनरेटिव एआई, जीसीसाी आगामी वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को देंगे रफ्तार : रिपोर्ट

उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी | एएनआई
इसरो वैज्ञानिक एन. वलारमथी | ट्विटर/@DrPVVenkitakri1

नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) उत्पादक कृत्रिम मेधा (जेनरेटिव एआई) को अपनाने से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 359-438 अरब डॉलर की वृद्धि हो सकती है और इसका वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) बाजार भी वर्ष 2030 तक बढ़कर 100 अरब डॉलर से आगे निकल जाएगा। एक रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है।

सलाहकार फर्म डेलॉयट इंडिया की ‘प्रौद्योगिकी रुझान 2024 रिपोर्ट: भारत परिप्रेक्ष्य’ कहती है कि वैश्विक क्षमता केंद्र वर्ष 2024 में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं जो अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी जरूरतें पूरा करने में भारत की बढ़ती क्षमता को दर्शाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 1,600 से अधिक केंद्रों के साथ जीसीसी बाजार बढ़ रहा है और विश्वस्तर पर अपना प्रभुत्व बना रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत का जीसीसी बाजार 100 अरब डॉलर से अधिक हो जाएगा जिसमें देशभर में 2,500 जीसीसी से 45 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा।

रिपोर्ट के मुताबिक, जेन-एआई बाजार में वर्ष 2023 से 2030 तक सालाना 24.4 प्रतिशत से अधिक वृद्धि होने का अनुमान है। इससे भारत वित्त वर्ष 2029-30 में अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 359 से 438 अरब डॉलर तक की महत्वपूर्ण वृद्धि देख सकता है।

रिपोर्ट में नई प्रौद्योगिकी को अपनाने और त्वरित आर्थिक वृद्धि के बीच घनिष्ठ संबंध बताया गया है। इसमें कहा गया है कि बेहतर पहुंच और सरकारी पहल से डिजिटल प्रौद्योगिकी की स्वीकार्यता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

वैश्विक परामर्श फर्म ने कहा, ‘‘प्रौद्योगिकी उन्नयन को बढ़ावा देने और सेवा कायाकल्प को अधिकतम स्तर पर ले जाने के लिए संगठनों को बाजार की बदलती गतिशीलता के अनुरूप जेन-एआई का प्रभावी इस्तेमाल करने में निवेश करना चाहिए।’

डेलॉयट ने जेन-एआई को संगठनात्मक प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए जरूरी बताते हुए कहा कि भारतीय कंपनियां एआई-संचालित विश्लेषण को अपनाकर अपनी सेवाओं में विविधता ला रही हैं, जिससे बीते साल की तुलना में एआई से संबंधित पहल में 2.7 गुना की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

हालांकि, इस रिपोर्ट में साइबर सुरक्षा जागरूकता की कमी और सिंथेटिक मीडिया (एआई की मदद से तैयार मीडिया उत्पाद) के खतरों को लेकर आगाह भी किया गया है। इस खतरे के बारे में सीमित सार्वजनिक समझ व्यक्तियों को हेरफेर के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है।

भाषा प्रेम

प्रेम अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

Exit mobile version