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श्रींगा निर्यात ‘ठप’ होने से आंध्र प्रदेश के मछली पालक किसान संकट में

अमरावती, 20 नवंबर (भाषा) समुद्री उत्पादों का निर्यात लगभग ‘ठप’ होने से आंध्र प्रदेश के मत्स्य पालक किसान गहरे संकट में घिर गए हैं।

आमतौर पर मछली पालकों के लिए यह समय काफी अच्छा रहता है। लेकिन इस साल ऐसी स्थिति नहीं है और उनके उत्पादों का खरीदार नहीं होने की वजह से उनके लिए जीवनयापन का संकट पैदा हो गया है।

सामान्य रूप से नवंबर से लेकर दिसंबर के समय समुद्री उत्पादों का निर्यात काफी ऊंचा रहता है क्योंकि क्रिसमस की वजह से इनकी मांग बढ़ जाती है।

लेकिन इस साल रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में समुद्री उत्पादों की मांग में गिरावट आई है।

अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे बाजारों में भारत के समुद्री उत्पादों विशेषरूप से झींगा की काफी मांग रहती है लेकिन युद्ध के कारण पैदा हुए वित्तीय संकट की वजह से इस साल ऐसा नहीं है।

एक और खास बात यह है कि एक छोटा दक्षिणी अमेरिकी देश इक्वाडोर भारतीय झींगा के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरा है, जिससे अमेरिकी बाजार में भारत के समुद्री उत्पादों की मांग प्रभावित हुई है।

भारतीय समुद्री उत्पाद निर्यातकों का कहना है कि इक्वाडोर में बड़ी मात्रा में झींगा का उत्पादन हो रहा है। उनका दाम भी कम है। ऐसे में वे अमेरिकी बाजार पर ‘कब्जा’ कर रहे हैं।

अपने क्षेत्र पर मंडरा रहे कोविड-19 के खतरे के बीच चीन ने पहली बार भारत से समुद्री उत्पादों के आयात पर कई प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे संकट और बढ़ गया है।

वहीं, वियतनाम मूल्यवर्धन के जरिये चीनी बाजार में भारतीय हिस्सेदारी पर कब्जा जा रहा है।

एक निर्यातक पी रामचंद्र राजू ने कहा, ‘‘हम मुख्य रूप से कच्चे झींगों का बिना किसी मूल्यवर्धन के निर्यात करते हैं। इसलिए बाजार गंवा रहे हैं।’’

राजू ने कहा कि रूस में भारतीय झींगे की अब भी मांग है। लेकिन हम वहां निर्यात करने में असमर्थ हैं क्योंकि हमारा पैसा पहले से ही वहां फंसा हुआ है। रूस के पास पैसा है, लेकिन उसके पास भुगतान के लिए कोई उचित बैंकिंग चैनल नहीं है, इसलिए भुगतान रुका हुआ है।’’

निर्यातकों का कहना है कि आंध्र प्रदेश समुद्री उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक है। ऐसे में मौजूदा संकट से सबसे ज्यादा यही प्रभावित हुआ है।

निर्यातकों ने कहा कि राज्य सरकार भी इस बात को जानती है, लेकिन कोच्चि स्थित समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए) ने स्पष्ट रूप से अभी तक संकट से निपटने के समुचित कदम नहीं उठाए हैं।

भाषा अजय अजय

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