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महंगाई और मंदी के बावजूद यह दीवाली इकॉनमी के लिए अच्छी है, पर ये सीजनल मांग आगे भी बनी रहनी चाहिए

दीपावली जैसे त्यौहार अंदरूनी तौर पर इकोनॉमिक डेटा को प्रभावित करते हैं. हालांकि, इससे यह नहीं मानना चाहिए कि यह दीर्घकालिक रूप से लॉन्ग टर्म परफॉर्मेंस को प्रभावित करेगा.

चित्रणः मनीषा यादव । दिप्रिंट

त्योहारों के इस मौसम में मांग में उछाल के संकेत हैं. टीवी, घरेलू सामान आदि की बिक्री में पिछले साल के इन त्योहारों में हुई बिक्री के मुक़ाबले इस बार करीब 8-10 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है. अखिल भारतीय व्यापारी संघ (सीएआइटी) के अनुसार पिछले साल दीवाली में बिक्री का आंकड़ा 1.25 ट्रिलियन रुपये को पार कर गया था. इसी संगठन का अनुमान है कि इस साल यह आंकड़ा 2.5 ट्रिलियन रुपये रहेगा. दो साल तक अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंचाने वाले कोविड-19 के कमजोर पड़ने के कारण इस साल मांग में उछाल ज्यादा है.

उपभोग में त्योहार के कारण तेजी

भारत में, सितंबर-नवंबर के बीच त्योहारों के कारण उपभोग में प्रायः तेजी आ जाती है. दीवाली और इसके पहले के सप्ताहों में उपभोग में वृद्धि आती है. छुट्टियों के कारण पर्यटन में भी तेजी देखी जाती है. दीवाली के साथ शादियों का सीजन भी शुरू हो जाता है और इनके लिए ज़्यादातर ख़रीददारी दीवाली के दौरान ही की जाती है.

कई व्यावसायिक घराने अपना नया साल दीवाली से शुरू करते हैं. इस दौरान बोनस, डीए में वृद्धि भी दी जाती है जो उपभोग बढ़ाने में मदद करती है. इन्हीं दिनों ख़रीददारी पर छूट भी दी जाती है और मुफ्त डेलीवरी या गिफ्ट पैक की पेशकश भी की जाती है. ये सब लोगों को खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. इस मौसम में उपभोक्ताओं की भावनाएं भी उभार पर होती हैं. इस सितंबर में उपभोक्ताओं की भावनाओं का सूचकांक 30 महीने के उच्चतम स्तर पर था. यह स्थिति शहरों ही नहीं गांवों में भी थी.

उपभोग में वृद्धि मुद्रास्फीति में वृद्धि और वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बावजूद है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, सिकुड़ती आमदनी और बढ़ती कीमतों के कारण इस साल या अगले साल वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंका है.

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त्योहारी मौसम और छुट्टियां

कई आर्थिक टाइम सीरीज़ मौसम के हिसाब से चलती है. मौसमी असर आंकड़ों की विशेषता होती है जिसका अनुभव आंकड़ों को हर कैलेंडर वर्ष में नियमित और अपेक्षित परिवर्तनों के कारण झेलना पड़ता है. उदाहरण के लिए, फसल कटाई के दिनों में मजदूरों की मांग ज्यादा बढ़ जाती है. बैंकों से कर्ज सबसे ज्यादा मार्च के महीने में लिए जाते हैं. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) मार्च में उच्चतम स्तर पर होता है, जो शायद वार्षिक लक्ष्य पूरा करने की कोशिश के चलते होता है. अमेरिका में खुदरा बिक्री क्रिसमस के दौरान बढ़ जाती है.

नीति बनाने वालों के नजरिए से, मौसम के अनुसार होने वाले उलटफेर का विश्लेषण आर्थिक टाइम सीरीज़ में मौसमी और दीर्घकालिक बदलावों के बीच फर्क करने में मदद करता है. मौसम के लिहाज से समायोजन करना आर्थिक स्थितियों की सही समझ बनाने और साफ निर्णय करने के लिए महत्वपूर्ण होता है.

मौसम के मुताबिक समायोजन के मुहावरे में दीपावली को ‘गतिशील त्योहार’ कहा जाता है क्योंकि किसी साल यह अक्तूबर में होती है तो किसी साल नवंबर में. इस गतिशीलता का आर्थिक आंकड़ों पर गहरा असर पड़ता है. उदाहरण के लिए, दोपहियों की बिक्री त्योहारी मौसम में तेज रफ्तार पकड़ती है. लेकिन इसे इस क्षेत्र के दीर्घकालिक प्रदर्शन का प्रमुख संकेतक नहीं माना जा सकता है. त्योहार के कारण आई तेजी के अलावा, अच्छे मॉनसून के कारण खेती में आई तेजी भी दोपहियों की बिक्री बढ़ा सकती है. इस त्योहारी मौसम में ट्रैक्टर की बिक्री में भी बढ़ोतरी देखी जाती है.

बढ़ती दरें असर डालेंगी घरेलू क्रेडिट पर

आसान बैंक कर्ज ने उपभोक्ता मांग को मजबूती दी है. मई के बाद से रिजर्व बैंक ने आधार दरों में 190 बेसिस अंकों की वृद्धि की है. आशंका यह की जा रही है कि दरों में वृद्धि से उपभोक्ता मांग प्रभावित होगी, जो कि ज्यादा व्यापक आधार वाला सुधार दर्शा रही है. वैसे, मौजूदा स्थिति बताती है कि ब्याज दरों में वृद्धि से मांग को खतरा नहीं पहुंचेगा.

कर्ज के लिए मांग अब तक तो मजबूत रही है. सितंबर के अंत तक बैंक क्रेडिट में 16.4 फीसदी की वृद्धि हुई है. इसके अलावा, घरेलू हिसाब-किताब पर कम ज़ोर देने से मदद ही मिलेगी.

रिजर्व बैंक के एक शोधपत्र में बताया गया है कि कुल वित्तीय परिसंपत्तियों में कुल वित्तीय देनदारियों का अनुपात 40 फीसदी से कम रहा है. 2020-21 में, घरेलू वित्तीय परिसंपत्तियों में वित्तीय देनदारियों के मुक़ाबले ज्यादा तेजी से वृद्धि हुई है. इस तरह, कॉर्पोरेट बैलेंसशीट की तरह घरेलू बैलेंसशीट पर भी दांव कम हुआ है. यह उन्हें दरों में वृद्धि के बावजूद उधार लेने की गुंजाइश बनाएगा. अगस्त में, पर्सनल लोन में वृद्धि 19.5 फीसदी की हुई, जो कि घरेलू तथा वाहन संबंधी लोन की वजह से हुआ.

महंगाई संभवतः ऊंचाई तक पहुंच गई है लेकिन वह टारगेट के ऊपर ही रहेगी

मुद्रास्फीति चरम पर पहुंच चुकी है लेकिन वह लक्ष्य से ऊपर ही रहेगी. रिजर्व बैंक द्वारा जारी ‘स्टेट ऑफ द इकोनॉमी’ रिपोर्ट कहती है कि मुद्रस्फीति सितंबर के अपने चरम बिंदु से कुछ नीचे आएगी, हालांकि वह लक्ष्य से ऊपर ही रहेगी. उपभोक्ता कीमत सूचकांक (सीपीआइ) में साल-दर-साल परिवर्तन के हिसाब से नापी जानी वाली खुदरा महंगाई पांच महीने के उच्चतम स्तर 7.41 प्रतिशत पर पहुंच गई.

वस्तुओं की वैश्विक कीमतों में कमी के बूते महंगाई में धीरे-धीरे कमी आ सकती है, हालांकि फिर भी वह ऊंची ही रहेगी. अक्तूबर के मध्य तक, खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी अनाजों की कीमतों में कमी की ओर इशारा कर रही है. सब्जियों की कीमतों में भी आगामी महीनों में मौसमी कमी आ सकती है.

अगर मुद्रास्फीति में कमी आती है तो रिजर्व बैंक दरों में आक्रामक वृद्धि नहीं कर सकता है. ये संकेत भी उभर रहे हैं कि आगामी महीनों में अमेरिका में सप्लाई में अड़चनें कम होने से मुद्रास्फीति में कमी आ सकती है.


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ग्रामीण मजदूरों के वेतन को लेकर चिंता

चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में, ग्रामीण वेतनों में मुद्रास्फीति का हिसाब लेकर की गई औसत वृद्धि स्थिर रही है. ग्रामीण वेतन में ग्रामीण मुद्रास्फीति के अनुपात से वृद्धि नहीं हुई है. नतीजतन, वास्तविक ग्रामीण वेतन में इस वित्त वर्ष में 1 फीसदी से भी कम वृद्धि हुई है. अप्रत्याशित बारिश के कारण फसलों के खराब होने और खाद्य पदार्थों की महंगाई से खासकर ग्रामीण गरीब ज्यादा प्रभावित होंगे.

ग्रामीण वेतन में कमी के कारण मनरेगा के तहत रोजगार की मांग बढ़ी है. इस मांग का लगातार बने रहना बताता है कि कृषि के अलावा दूसरे श्रमिक बाजार को अभी भी सहारा देने की जरूरत है.

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