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जीएसटी, नोटबंदी से प्रभावित कृषि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए अर्थशास्त्रियों की नई दृष्टि

कृषि संकट और आर्थिक मंदी के बारे में बोलते हुए प्रोफेसर सेन ने कहा कि कृषि में श्रम, ऋण, बाजार और संस्थानों जैसी कई बाधाएं हैं, जिन्हें दैनिक रूप से दूर किया जाना है.

पूर्व जेएनयू प्रोफेसर अभिजीत सेन | फोटो : यूट्यूब

नई दिल्ली: जाने-माने अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने भारतीय कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में फिर से जान भरने के लिए एक नई कार्यप्रणाली की बात कही है.

जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर ने शनिवार को कहा, ‘जीडीपी और अन्य डाटा मानकों के अलावा कृषि आधारित विकास दर भारत के लिए एक नई विकास दर होनी चाहिए.’

अर्थशास्त्री प्रोफेसर अभिजीत सेन के सम्मान में जेएनयू में यह कार्यक्रम हुआ था. इस कार्यक्रम का विषय- थ्योरी, प्लानिंग और भारत के विकास की चुनौतियां थी. इसी में प्रभात पटनायक अपनी बात रख रहे थे.

उन्होंने कहा, ‘मैन्यूफैक्चरिंग एक डिमांड की मांग करने वाला सेक्टर है. वहीं, कृषि उत्पादन वाला सेक्टर है. इसलिए इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.’

बहुत सारे सामाजिक वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, राजनीतिक विश्लेषक और एक्टिविस्ट इस कार्यक्रम में मौजूद थे. कार्यक्रम के दौरान गरीबी, असमानता, भारतीय कृषि क्षेत्र के समस्या और भारतीय अर्थव्यवस्था पर बात हुई.

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‘नोटबंदी और जीएसटी ने कृषि संकट को और बढ़ाया है’

कॉन्फ्रेंस के एक और सेशन में जिसका शीर्षक ‘डिस्ट्रेस्ड इन इंडिया कंट्रीसाइड एंड पॉलिसी रिस्पांस’ में काउंसिल ऑफ सोशल डेवलपेंट के प्रोफेसर डीएन रेड्डी ने कहा, ‘पिछले 5 सालों में नरेंद्र मोदी सरकार के गलत तरीके से नीतियों के चलाने के कारण कृषि संकट उत्पन्न हुआ है.’


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सेशन की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर रेड्डी ने कहा, ‘नोटबंदी और जीएसटी को लागू करने के प्रणाली ने देशभर में कृषि संकट को और बढ़ाया है.’

उन्होंने कहा, ‘कृषि संकट देश में पिछले दो दशकों से है. लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के कारण यह और भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है. इसने ग्रामीण डिमांड को मार दिया है. नोटबंदी के बाद से निर्माण सेक्टर में भी ठहराव आया है. ग्रामीण भारत से जो लोग शहरों की तरफ दिहाड़ी मजदूरी करने आते थे उन पर बुरा प्रभाव पड़ा है.’

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के इकॉनोमिक्स एंड स्ट्रेटैजिक मैनेजमेंट के प्रोफेसर सुशील खन्ना ने कहा, ‘नोटबंदी के कारण हाउसहोल्ड सेक्टर काफी प्रभावित हुआ है.’

उन्होंने कहा, ‘इससे निपटने के लिए दशकों लगेंगे. हाउसहोल्ड सेक्टर में नोटबंदी के कारण 30-40 फीसदी की गिरावट आई है. जिससे ग्रामीण भारत में क्रेडिट के लेन-देन पर असर हुआ है.’

‘गरीबी का अध्ययन केवल गरीबों के अध्ययन तक सिमट कर रह गया है ‘

‘गरीबी, असमानता और खाद्य सुरक्षा’ के सत्र में भाग लेने वाले जेएनयू के प्रोफेसर हिमांशु ने कहा कि गरीबी का अध्ययन, जो कि एक स्थूल स्तर का विषय है और इससे समझ सकते हैं कि कैसे अर्थव्यवस्था काम करती है. यह केवल गरीबों के अध्ययन तक सिमट कर रह गया है.

उन्होंने कहा कि गरीबी, असमानता और खाद्य सुरक्षा सिर्फ शैक्षणिक मुद्दे या यह केवल संख्या के बारे में नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘यह ऐसे मुद्दे हैं. जिनके लिए लोगों को जमीनी स्तर पर एक तरह की समझ की आवश्यकता है, जो कि आप आमतौर पर योजना आयोग के अधिकांश लोगों में नहीं पाएंगे, जिसमें उस समय प्रोफेसर अभिजीत सेन भी शामिल थे.’

हिमांशु ने कहा कि प्रोफेसर सेन ने इन मुद्दों को महत्वपूर्ण बनाने में भूमिका निभाई थी, लेकिन फिर भी इसे अकादमिक अनुसंधान से जोड़ दिया जा रहा है.

प्रोफेसर हिमांशु ने कहा, ‘आर्थिक मुद्दों को समझने का एक ख़ास तरीका था. ये ख़ास तरीका उस राजनीति की समझ से था, जिसके आधार पर हम ये रिसर्च कर रहे थे. रिसर्च को उस असलियत से अलग करके नहीं देखा जा सकता था. जिसमें हम रह रहे थे. ज़्यादातर लोग इससे सहमत होंगे कि प्रोफेसर सेन ने इस रुख़ को केंद्र में रख कर ये रिसर्च किया. सरकार के साथ काम करते हुए वो जब योजना आयोग के सदस्य थे और जब वो सिविल सोसायटी के सदस्य थे तब भी उन्होंने ऐसा ही किया.’

‘कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के एक नए मुद्दे से निपटना होगा’

इस अवसर पर बोलते हुए प्रोफेसर अभिजीत सेन ने कहा, ‘वह योजना आयोग के बंद होने पर आश्चर्यचकित नहीं थे, जिसके वे सदस्य थे. 2014 से पहले भी, योजना आयोग के भीतर और बाहर बड़ी संख्या में लोगों का मानना था कि इसे आराम करने के लिए छोड़ देना चाहिए.’


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कृषि संकट और आर्थिक मंदी के बारे में बोलते हुए प्रोफेसर सेन ने कहा कि कृषि में श्रम, ऋण, बाजार और संस्थानों जैसी कई बाधाएं हैं, जिन्हें दैनिक रूप से दूर किया जाना है. ‘कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के एक नए मुद्दे से निपटना होगा क्योंकि यह होता रहेगा और हम इससे दूर नहीं रह सकते हैं.’

सम्मेलन में भाग लेने वाले अन्य लोगों में माकपा नेता वृंदा करात और सईदा हामिद शामिल थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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