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समय से पहले हीटवेव क्लाइमेट चेंज का संकेत, एक्स्पर्ट्स ने कहा- स्वास्थ्य के लिए हो सकता है ज्यादा घातक

विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च और अप्रैल में भीषण गर्म हवाएं चलना असामान्य हैं. अगर उत्सर्जन को घटाया नहीं गया तो जलवायु परिवर्तन के कारण ये हीटवेव मौसम चक्र का सामान्य हिस्सा बन जाएंगी.

गर्मी के दिनों की प्रतीकात्मक तस्वीर । ज्ञान शहाणे

नई दिल्ली: भारत इस समय भीषण गर्म हवाओं की चपेट में है और इसके 4-5 दिनों तक जारी रहने की संभावना है. समय से पहले हीटवेव जलवायु परिवर्तन का संकेत हो सकती है. इस बीच मौसम विशेषज्ञों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि देश में मौजूदा भीषण गर्म हवाओं का समय से पहले आना स्वास्थ्य के लिए अधिक खतरनाक साबित हो सकता है.

बुधवार को राजस्थान के कई हिस्सों में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया और दिल्ली के लिए ‘येलो अलर्ट’ जारी किया गया है. दिल्ली में गुरुवार को पारा 44-46 डिग्री तक पहुंचने की उम्मीद है.

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने बताया है कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात में लू का प्रकोप जारी रहेगा. भारत में गुजरा मार्च का महीना पिछले एक दशक के दौरान सबसे गर्म मार्च रहा है.

मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च और अप्रैल में इतनी तेज गर्मी असामान्य है, लेकिन यह बदल सकती है. इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रंथम इंस्टीट्यूट के मरियम जकारिया और फ्रेडरिक ओटो के विश्लेषण (अभी भी डेटा समीक्षा के तहत) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण हर चार साल में एक बार ऐसी भयंकर तपिश की उम्मीद कर सकते हैं.

‘हीटवेव जलवायु परिवर्तन की वजह से और भी गर्म हो गई हैं’

ग्रांथम इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने हीटवेव को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हुए कहा कि भारत आज जिस तरह के गर्म मौसम देख रहा है, अब यह एक सामान्य सी बात हो गई है.

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जकारिया ने एक बयान में कहा, ‘वैश्विक तापमान में वृद्धि में इंसान की गतिविधियों की भूमिका बढ़ने से पहले हम भारत में 50 वर्षों में कहीं एक बार ऐसी गर्मी महसूस करते थे, जैसे कि इस महीने के शुरू से पड़ रही है. लेकिन अब यह एक सामान्य सी बात हो गई है. अब हम हर चार साल में एक बार ऐसी भयंकर तपिश की उम्मीद कर सकते हैं. और जब तक प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाई जाएगी तब तक यह और भी आम होती रहेगी.’

वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप का नेतृत्व करने वाले ओटो ने कहा ‘भारत में मौजूदा हीटवेव जलवायु परिवर्तन की वजह से और भी गर्म हो गई हैं. ऐसा इंसान की नुकसानदेह गतिविधियों की वजह से हुआ है. इनमें कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधन जलाना भी शामिल है.’

ओटो के अनुसार, अब दुनिया में हर जगह हीटवेव को लेकर ऐसी ही स्थिति है. ‘जब तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बंद नहीं होगा, तब तक भारत और अन्य जगहों पर हीटवेव और भी ज्यादा गर्म और अधिक खतरनाक होती रहेंगी.’

आईएमडी के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में हीटवेव दिनों की संख्या 1981-1990 के दशक में 413 से बढ़कर 2001 और 2010 के बीच 575 और 2010-20 में बढ़कर 600 हो गई है.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक विश्लेषण से पता चलता है कि शुरुआती गर्मी की ये लहरें 11 मार्च से शुरू हुईं और 24 अप्रैल तक इसने भारत के कई राज्यों को प्रभावित किया. इससे राजस्थान और मध्य प्रदेश को सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. प्रत्येक राज्य में हीटवेव के 25 दिन जबकि हिमाचल प्रदेश में 21, गुजरात में 19 और दिल्ली में 15 दिन दर्ज किए गए हैं.

शुरुआती हीटवेव खतरनाक क्यों हैं?

यूरोप में 2003 की भीषण गर्मी के बाद के अध्ययनों में पाया गया कि राज्य की तैयारियों की कमी के कारण शुरुआती हीटवेव घातक गईं थीं. परिणामस्वरुप ‘मृत्यु दर में अल्पकालिक वृद्धि’ हुई.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ गांधीनगर (IIPHG) के निदेशक, डॉ दिलीप मावलंकर ने दिप्रिंट को बताया. ‘यही तर्क भारत पर भी लागू होता है. मार्च के महीने में जो तीव्र हीटवेव देखी गईं हैं आमतौर पर वो इतनी जल्दी नहीं आती हैं. राज्यों के पास गर्मी से जुड़ी बीमारियों की निगरानी के लिए एक प्रभावी तंत्र नहीं है. और जब ऐसा अचानक होता है तो उनके पास कुछ करने या स्थिति को संभालने के लिए कम समय बचा होता है.’

2013 में गर्मी से संबंधित मृत्यु दर को कम करने में अहमदाबाद ने सफलता प्राप्त की थी. इसके बाद से भारत सरकार हीट एक्शन प्लान (एचएपी) विकसित करने के लिए 23 हीटवेव-प्रभावित राज्यों और 130 शहरों के साथ काम कर मिलकर काम कर रही है.

पूरे भारत में एचएपी का आंकलन करने वाले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा फंडेड एक अध्ययन के प्रारंभिक निष्कर्षों में पाया गया कि ‘केंद्रित, हॉट-स्पॉट स्तर पर हस्तक्षेपों’ की कमी ने उनके कार्यान्वयन को प्रभावित किया है. इस महीने की शुरुआत में नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल द्वारा तैयार एक मीडिया तथ्य पत्रक से पता चला है कि अध्ययन इस साल के अंत में आने की संभावना है.

गुजरात आपदा प्रबंधन संस्थान के सहायक प्रोफेसर और कार्यक्रम प्रबंधक डॉ अभियंत तिवारी ने एक बयान में कहा, ‘हीट एक्शन प्लान में हमें पब्लिक कूलिंग एरिया, बिजली की कम कटौती पीने के साफ पानी तक पहुंच और मजदूरों के काम के घंटों में बदलाव को सुनिश्चित करना होगा. खासकर समाज के निचले हिस्से के कमजोर लोगों के लिए भीषण गर्मी में हमें ये कदम उठाने होंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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