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राफेल की जल्द तैनाती के लिए वायुसेना ने हैमर वेपन सिस्टम को इजराइल के स्पाइस-2000 के बदले चुना

2016 में 36 राफेल विमानों के सौदे के समय भारत ने महंगा होने के कारण हैमर सिस्टम को समझौते बाहर रखा था. लेकिन चीन से चलते तनाव के बीच इसे तेज़ी से लैस किया जा सकता है.

राफेल लड़ाकू विमान की फाइल फोटो | पीटीआई

नई दिल्ली: चीन से चलते तनाव के बीच नए राफेल विमानों को जल्दी से तैनात करने के प्रयास में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने फ्रांस के हवा से ज़मीन पर मार करने वाले प्रेसीशन-गाइडेड वैपन सिस्टम हैमर का चयन किया है. 8 साल पहले वायुसेना ने इस सिस्टम को इज़राइली स्पाइस-2000 के पक्ष में नामंज़ूर कर दिया था, जिसका इस्तेमाल बालाकोट हमलों में किया गया.

हैमर में, जिसका मतलब है हाइली एजाइल एंड मैनूवरेबल म्यूनिशन एक्सटेंडेड रेंज एक गाइडेंस किट होती है और अलग-अलग बनावट के स्टैण्डर्ड बमों पर एक एक्सटेंशन किट फिट होती है. महंगी लागत की वजह से इसे, 2016 में 36 राफेल फाइटर जेट्स और वैपन पैकेज के समझौते से बाहर रखा गया था, क्योंकि इससे समझौते की राशि बढ़ जाती.

लेकिन, रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि हैमर को चुनने का मुख्य कारण, जिसकी क़ीमत 70 लाख रुपए प्रति इकाई है. चीन के साथ जारी संकट है. ये सिस्टम वायु सेना को 300 करोड़ रुपए तक की आपात ख़रीद के लिए दी गईं नई पावर्स के तहत, कैपिटल बजट से ख़रीदा जा रहा है.

एक सूत्र ने कहा, ‘चीन के साथ संकट के चलते वायुसेना राफेल लड़ाकू विमानों का संचालन जल्दी शुरू करना चाहती है. राफेल में 70 किलोमीटर तक की छोटी रेंज में, कठोर सरफेस और बंकर्स को तबाह करने के लिए हवा से ज़मीन पर मार करने वाला कोई उपयुक्त प्रेसीशन मिसाइल नहीं है और इसीलिए, हैमर को ख़रीदा जा रहा है.’

अभी ये पता नहीं चला है कि कितने सिस्टम्स ख़रीदे जा रहे हैं. आपात ख़रीद में कोई मेक-इन-इंडिया अंश होने की संभावना नहीं है.

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स्पाइस 2000 बनाम हैमर

जैसा कि ऊपर उल्लेख है. मूल योजना ये थी कि राफेल में स्पाइस 2000 किट्स लगाई जाएंगी, जिन्हें आईएएफ बेड़े के दूसरे फ्रेंच विमानों-मिराज 2000 में पहले ही लगाया जा चुका है.


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एक दूसरे सूत्र ने समझाया, ‘स्पाइस 2000 को अभी राफेल विमान में जोड़ा जाना है. इसके लिए स्पाइस की लागत, जोड़ने के ख़र्च और टेस्टिंग के ख़र्च का हिसाब लगाना है. इसके अलावा इस पूरे काम में समय भी लगेगा. राफेल पहले ही हैमर दाग़ने में सक्षम है, इसलिए इससे जल्दी से संचालन के लिए तैनात किया जा सकता है.’

सूत्रों ने बताया कि 2012 में, स्पाइस 2000 सिस्टम ने मिराज को लैस करने के लिए वायुसेना द्वारा कराए एक मुक़ाबले में हैमर को पछाड़ दिया था- सिर्फ इसलिए कि फ्रेंच सिस्टम के दाम इज़राइली सिस्टम से लगभग दोगुने थे. उन्होंने ये भी कहा कि हैमर जैसा कि इसके पूरे नाम से पता चलता है, बेहद फुर्तीला है और लद्दाख़ जैसे पहाड़ी इलाक़ों में ऑपरेशंस के लिए फिट है.

हैमर में फायरिंग के लिए मूलरूप से एक टैलियोस पॉड होता है, लेकिन जैसा कि दिप्रिंट ने पहले ख़बर दी थी. आईएएफ ने भारत की इनवेंट्री के सभी प्लेटफॉर्म्स में सेंसर की समानता और लागत कम रखने के लिए इज़राइली लाइटनिंग पॉड का चयन किया है, चूंकि टैलियोस की क़ीमत इज़राइली सिस्टम से तक़रीबन दोगुनी थी.

एक सूत्र ने बताया, ‘लाइटनिंग पॉड या टैलियोस पॉड लेज़र निर्देशित बम गिराने के लिए ज़रूरी होता है, लेकिन राफेल पर लगे मीटियॉर या स्कैल्प मिसाइल जैसे दूसरे हथियारों के लिए अनिवार्य नहीं होता.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

2 टिप्पणी

  1. चीन से निपटने की तैयारियों में न केवल सरकार दोषी है बल्कि हमारी गोदी मीडिया भी ।यदि देश के साथ कुछ अनहोनी होती है तो ,मीडिया के विरूद्ध भी एक कानून बने जो सही चीज न दिखाकर अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों के लिए लोगों को गुमराह करती है ,के लिए कानूनी करवाई होनी चाहिए।

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