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विज्ञान-तकनीक की मदद से सरकार और IIT दिल्ली साथ मिलकर करेंगे दिल्ली के वायु प्रदूषण का मुकाबला

भारत के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर का कार्यालय और IIT दिल्ली, शहर के AQI की निगरानी के लिए तकनीकी और उद्योग जगत के भागीदारों के साथ काम कर रहे हैं. उनका पायलट प्रोजेक्ट दिल्ली एनसीआर में 22 नवंबर से 23 फरवरी तक चलेगा.

दिल्ली में स्मॉग की फाइल फोटोः सूरज सिंह बिष्ट । दिप्रिंट

नई दिल्ली: भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर- पीएसए) का कार्यालय, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (आईआईटी -दिल्ली) की एक टीम के साथ मिलकर दिल्ली में वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए कम-से-कम 10 विज्ञान और तकनीक आधारित समाधानों को लॉन्च करने के उद्देश्य से तकनीकी स्टार्टअप्स और उद्योग जगत के भागीदारों के साथ काम कर रहा है.

दिल्ली रिसर्च इम्प्लीमेंटेशन एंड इनोवेशन (डीआरआईआईवी-ड्रीव), जो पीएसए की एक पहल है, फ़िलहाल नवंबर 2022 से फरवरी 2023 तक दिल्ली एनसीआर में प्रोजेक्ट समीर (SAMEER) (सोल्यूशंस फॉर एयर-पॉल्युशन मिटिगेशन थ्रू इंगेजमेंट, इंजीनियरिंग एंड रिसर्च) नामक एक प्रौद्योगिकी आधारित पायलट प्रोजेक्ट का संचालन कर रही है.

ड्रीव का उद्देश्य सर्दियों के महीनों में दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र में वायु प्रदूषण के खतरे को सामूहिक रूप से हल करने के उद्देश्य से स्थानीय सरकारी अधिकारियों, आईआईटी -दिल्ली के शोधकर्ताओं, तकनीकी स्टार्टअप, कॉर्पोरेट्स, गैर सरकारी संगठनों और समुदायों को एक साथ लाना है.

यह पायलट प्रोजेक्ट एक तीन-आयामी दृष्टिकोण है जो जागरूकता और सामुदायिक जुड़ाव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप, तथा उद्योग जगत की गोलमेज बैठकें और कार्यशालाएं आयोजित कर प्रदूषण विरोधी हस्तक्षेपों को लागू करने और बढ़ाने के माध्यम से हवा को साफ करने में मदद कर सकते हैं.

आईआईटी-दिल्ली स्थित अरुण दुग्गल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर रिसर्च इन क्लाइमेट चेंज एंड एयर पॉल्यूशन (सीईआरसीए) के परियोजना समन्वयक हेमंत कौशल ने एक बयान में कहा, ‘सीईआरसीए ने देश में वायु प्रदूषण की समस्याओं को दूर करने के लिए अपने शोध कार्य और गतिविधियों की दृश्यता बढ़ाने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं जिसमें विश्व बैंक के साथ भारत के गंगा के मैदान के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन मॉडल विकसित करना भी शामिल है.’

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उन्होंने कहा, ‘अगर हम देश के सामने आने वाले पर्यावरणीय मुद्दों से निपटना चाहते हैं तो सभी हितधारकों का सहयोगात्मक रूप से काम करना अनिवार्य है. ड्रीव (DRIIV) उद्योग जगत, अकादमिक संस्थाओं और सरकारी निकायों को एक साथ लाता है तथा ऐसी प्रभावशाली परियोजनाओं को लागू करने के लिए आदर्श मंच प्रदान करता है.’


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जागरूकता अभियान

जागरूकता पैदा करने वाले हिस्से के रूप में, डॉक्टरों और स्वास्थ्य चिकित्सकों ने वायु प्रदूषण के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु किसानों, स्कूल और कॉलेज के छात्रों, निवासी कल्याण संघों (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन- आरडब्ल्यूए), और शहरी मलिन बस्तियों जैसे समुदायों के साथ काम करना शुरू कर दिया है.

ड्रीव के टेक्नोलॉजी लाइजन प्रमुख अमृता डॉन ने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि हमने वेबिनार पर काम करना शुरू कर दिया है, फिर भी हम एक ऐसे स्टार्टअप के साथ भी काम कर रहे हैं, जो प्रदूषण के प्रभावों की नकल करने वाले ऑगमेंटेड रियलिटी (एआर) टूल्स का उपयोग करके एक व्यापक अनुभव तैयार कर सकता है.’

हालांकि, जैसा कि डॉन ने कहा, असल चुनौती विज्ञान और प्रौद्योगिकी के हस्तक्षेप को जमीन पर स्थायी तरीके से लागू करना है.


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तकनीकी हस्तक्षेप

ड्रीव ने पहले ही कम-से-कम 10 नए ऐसे टेक स्टार्टअप्स की पहचान की है जो पायलट प्रोजेक्ट के लिए अपने- अपने आविष्कार मुफ्त में उपलब्ध करा रहे हैं.

डॉन ने कहा कि इन प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों को पूर्व-निर्धारित हॉटस्पॉट पर एक्यूआई की निगरानी और प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से तैनात किया जाएगा.

इनमें वे विभिन्न उपकरण और नवीन प्रयोग शामिल हैं जो पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर की निगरानी और उनमें कमी कर सकते हैं. इन समाधानों को समीर परियोजना के हिस्से के रूप में दिल्ली और गुरुग्राम के उच्च एक्यूआई वाले इलाकों में उनकी प्रभावकारिता का आकलन करने के लिए तैनात किया जाएगा.

आईआईटी-दिल्ली स्थित सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के प्रोफेसर सग्निक डे इन प्रौद्योगिकी हस्तक्षेपों के प्रभाव का आकलन करेंगे.

डे ने अपने एक बयान में कहा, ‘वायु प्रदूषण भारत में सबसे बड़ी पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंता है. यह लगभग सभी सतत विकास लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स-एसडीजी), जैसे आर्थिक विकास, स्वास्थ्य संबंधी बोझ, संज्ञानात्मक हानि, एरोसोल और जलवायु परिवर्तन के कारण सौर ऊर्जा में कमी, से जुड़ा है.’


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औद्यागिक राउंडटेबल

साल 2018 में, दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) और पुणे स्थित ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा एक स्रोत का पता लगाने वाले (प्रभाजन) अध्ययन ने दिल्ली में पीएम 2.5 और पीएम 10 सांद्रता के औसत क्षेत्रीय योगदान की खोज की थी. रिपोर्ट में पाया गया था कि औद्योगिक गतिविधियां दिल्ली की हानिकारक वायु गुणवत्ता में सबसे बड़े योगदानकर्ता के रूप में उभरी हैं, इसके बाद सड़क की धूल और परिवहन का स्थान है.

डॉन ने कहा, ‘कई सारे उद्योग, जो अब पर्यावरण को होने वाले नुकसान से अवगत हैं, अब ऐसे समाधानों में निवेश करने को तैयार हैं.’

औद्यागिक राउंडटेबल (गोलमेज सम्मेलनों) और कार्यशालाओं के माध्यम से ड्रीव कंपनियों को पर्यावरणीय समस्याओं के तकनीकी समाधानों को अपनाने और उनका समर्थन करने हेतु प्रोत्साहित करने की उम्मीद करता है. इस महीने के अंत में उद्योगों के साथ चर्चा होने वाली है.

डॉन ने कहा कि, हालांकि कुछ तकनीकी समाधान पहले से मौजूद हैं, मगर समस्या का पैमाना इतना बड़ा है कि हमें कई हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है.’

पिछले 20 वर्षों से प्रो. डे वार्ड-वार डेटा एकत्रित कर रहे हैं, जो शहर में प्रदूषण के स्रोतों की एक विस्तृत तस्वीर पेश करता है. इस डेटा का उपयोग हॉटस्पॉट की पहचान करने और यह तय करने में मदद के लिए किया जाएगा कि किसी क्षेत्र विशेष में कौन से तकनीकी समाधान सबसे प्रभावी होंगे.

अधिकांश तकनीकी हस्तक्षेप वायु निस्पंदन (हवा को साफ़ करने), प्रदूषण की निगरानी और धूल को दबाये जाने के इर्द-गिर्द घूमते हैं. हालांकि, टीम को उम्मीद है कि पायलट प्रोजेक्ट स्रोत के स्तर पर ही प्रदूषण को कम करने के लिए नए नवाचारों (नवीन प्रयोगों) को आकर्षित करने में मदद करेगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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