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घटती मांग, बढ़ती उत्पादन कीमत, क्यों धीरे-धीरे खत्म हो रहा है फिरोजाबाद का 200 साल पुराना चूड़ी उद्योग

चुनावों से पहले, फ़िरोज़ाबाद का ख़त्म हो रहा चूड़ी उद्योग केंद्र में है, और उम्मीदवार उद्योग की समस्याओं को हल करने का वादा कर रहे हैं. लेकिन ज़मीन पर कोई त्वरित समाधान नज़र नहीं आ रहा है.

फिरोजाबाद में नादर बक्स एंड कंपनी ग्लास फैक्ट्री में काम पर कर्मचारी | कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

फिरोजाबाद: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद की इमाम बाड़ा चूड़ी मंडी (बाजार) में 54 वर्षीय गुलाम मोहम्मद ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं. उनके चारों ओर अलग-अलग रंगों की झिलमिलाती कांच की चूड़ियां हैं – पारंपरिक लाल और हरे से लेकर नारंगी रंग तक.

यह शादी का मौसम है, लेकिन फ़िरोज़ाबाद – कांच की चूड़ी उद्योग का प्रमुख स्थान – सुस्त पड़ा हुआ है. यहां ज्यादा कुछ हलचल नहीं दिख रही. दोपहर के बाद दिन का दूसरा पहर शुरू होने के बाद भी गुलाम मोहम्मद जैसे चूड़ी व्यापारी अपनी दुकानों के अंदर बैठे हुए लगभग खाली सड़क पर ताकते रहते हैं और दुकान बंद होने तक ऐसे ही घंटो समय बिताते हैं.

मोहम्मद ने दिप्रिंट को बताया, “एक समय था जब इमाम बाड़ा से रसूलपुरा तक का इलाका खरीददारों से गुलजार रहता था. यहां से गुजरना मुश्किल था, लेकिन अब यह अधिकतर खाली रहता है. इससे आपको (कांच की चूड़ी बनाने वाले) उद्योग की स्थिति के बारे में काफी कुछ पता चल जाएगा.”

‘कांच नगरी’ (कांच का शहर) और ‘सुहाग नगर’ के नाम से मशहूर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह छोटा सा औद्योगिक शहर एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है – इसका 200 साल पुराना कांच चूड़ी उद्योग, जो कभी इसका गौरव था, अब अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है.

इसकी 120 चूड़ी बनाने वाली इकाइयों में से केवल 50 ही वर्तमान में कार्यरत हैं. बाकी को या तो रखरखाव के लिए बंद कर दिया गया है या पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. कुछ को तो ज्यादा कमाई वाले बोतल बनाने वाले व्यवसाय में भी बदल दिया गया है.

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तो फ़िरोज़ाबाद के प्रसिद्ध चूड़ी उद्योग के साथ क्या परेशानी है? दिप्रिंट ने जिन अर्थशास्त्रियों, फैक्ट्री मालिकों और उद्योग विशेषज्ञों से बात की, उनके अनुसार, इसके कई कारण हैं, जिसमें फैशन के बदलते रुझान और कांच की चूड़ियों की घटती मांग से लेकर 2016 की नोटबंदी और प्राकृतिक गैस – जो कि मैन्युफैक्चरिंग के लिए जरूरी है – की बढ़ती कीमत जैसी सरकारी नीतियां शामिल हैं, के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है.

फिरोजाबाद के इमाम बाड़ा चूड़ी बाजार में एक चूड़ी विक्रेता | कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

उद्योग की समस्याएं इसलिए और बढ़ गई हैं कि शहर ताज ट्रैपेज़ियम जोन (टीटीजेड) – स्मारक को प्रदूषण से बचाने के लिए ताज महल के आसपास 10,400 वर्ग किमी का एक परिभाषित क्षेत्र.

इमाम बाड़ा चूड़ी मंडी के पास सौभाग्य ग्लास इंडस्ट्रीज के मैनेजर 55 वर्षीय जमील खान दिप्रिंट को बताते हैं, ”व्यवसाय ठीक नहीं चल रहा है.” यह फ़ैक्टरी 50 वर्षों से कांच की चूड़ियां बना रही है, लेकिन अब केवल आधी क्षमता पर ही काम कर रही है – यह एक गिरते उद्योग का एक और संकेत है.

खान कहते हैं, पिछले 2-3 सालों में स्थिति और खराब हो गई है. “इस साल बिल्कुल भी मांग नहीं है. और किसी भी सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया.”

7 मई को फिरोजाबाद में मतदान होने के साथ, इसके ज्यादातर असंगठित कांच उद्योग से संबंधित समस्याएं – जिसमें इसका चूड़ी बनाने वाला क्षेत्र भी शामिल है – केंद्र में आ रही है. उदाहरण के लिए, कांच उद्योगपति और निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार ठाकुर विश्वदीप सिंह ने फिरोजाबाद के कांच उद्योग के लिए एक अलग घोषणापत्र का वादा किया है.

विश्वदीप सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “मैं हर दिन इन समस्याओं से जूझ रहा हूं और इनसे अच्छी तरह वाकिफ हूं. अगर मैं जीत गया, तो मैं उन्हें ठीक कर दूंगा.”

हालांकि, अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही कठिन है. बढ़ते ऑटोमेशन की वजह से फिरोजाबाद का श्रम-सघन ग्लास उद्योग अन्य ग्लास बनाने वाले बाजारों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है. शहर के एसआरके कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर प्रशांत अग्रवाल कहते हैं, इसका मतलब है कि फिरोजाबाद ने उद्योग पर अपना एकाधिकार खो दिया है.

यह कहते हुए कि बढ़ती सहायक लागतें, जैसे कि प्राकृतिक गैस का असर अब उद्योग पर पड़ रहा है, 2014 में ‘ग्लास उद्योग के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव: फिरोजाबाद ग्लास उद्योग का एक केस अध्ययन’ शीर्षक से एक शोध पत्र प्रकाशित करने वाले प्रोफेसर ने कहा, “फ़िरोज़ाबाद हमेशा से एक श्रम-सघन बाज़ार रहा है, लेकिन बदलते समय और मशीनीकरण के कारण, श्रम अब कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. यही कारण है कि ग्लास उद्योग अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं.”

अपनी ओर से, फ़िरोज़ाबाद प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी स्वीकार करते हैं कि केवल नीतिगत हस्तक्षेप ही चूड़ी उद्योग को जीवित रहने में मदद कर सकता है. लेकिन उनका यह भी कहना है कि हालांकि जिला प्रशासन उद्योग को केवल सीमित मदद ही दे सकता है क्योंकि यह क्षेत्र टीटीजेड के अंतर्गत आता है, लेकिन वह उद्योग की मदद के लिए “काम” कर रहा है. इस अधिकारी ने कहा, ”हम उद्योगपतियों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हैं और उन पर काम करते हैं.”

फ़िरोज़ाबाद में नादर बक्स एंड कंपनी ग्लासवर्क्स में श्रमिक | कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

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घटती मांग

आम तौर पर कांच बनाने की तरह चूड़ी बनाना भी चुनौतीपूर्ण काम है. रेत, सोडा और रसायनों के मिश्रण को मिट्टी की भट्ठी में डाला जाता है और 1200 डिग्री सेल्सियस पर पिघलाया जाता है. इससे पिघले हुए कांच का एक गोला बनता है, जिसे बाद में बाहर निकाला जाता है और चूड़ियां बनाने में मदद करने के लिए पीटकर शंकु का रूप दिया जाता है. अंततः खराब टुकड़ों को छानने में मदद के लिए इसे एक मशीन से गुजारा जाता है.

इस प्रक्रिया में समय लगता है, जिसमें सिर्फ कांच को पिघलाने में ही 12-15 घंटे तक का समय लग जाता है. चूंकि यह बहुत उच्च तापमान पर किया जाता है, इसलिए भट्टियों के आसपास के क्षेत्र अत्यधिक गर्म हो जाते हैं.

फ़िरोज़ाबाद में नादर बक्स एंड कंपनी ग्लासवर्क्स में श्रमिक | कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

सौभाग्य में 200 से अधिक कर्मचारी कड़ी मेहनत कर रहे हैं. एक गुल्लीवाला भट्ठी से कांच का एक गोला निकालता है और उसे कारीगरों के पास ले जाता है, जो इसे आकार देकर रंगीन चूड़ियों में ढाल देंगे.y.

एक कोने में, निरीक्षण के लिए खान अपनी रिकॉर्ड बुक खोलते हैं. यह फैक्ट्री, जो पांच साल पहले तक 24 घंटे काम करती थी, अब केवल 12 घंटे काम करती है. वह उदास होकर कहते हैं, “फिरोजाबाद में कई बड़ी फैक्ट्रियां बंद हो गईं या बोतल बनाने वाली इकाइयों में बदल गईं. कई मालिकों के लिए फ़ैक्टरियां चलाना घाटे का सौदा बन गया.”

पुणे की फ्लेम यूनिवर्सिटी द्वारा फिरोजाबाद के कांच चूड़ी उद्योग पर 2019-2020 के अध्ययन के अनुसार, मोदी सरकार की 2016 की नोटबंदी ने कैश पर निर्भर कांच चूड़ी उद्योग को भारी नुकसान पहुंचाया.

चूड़ियां: फिरोजाबाद के कांच चूड़ी उद्योग श्रमिकों के जीवन पर एक अध्ययन’ शीर्षक वाली स्टडी में कहा गया है, “इसलिए लेनदेन या थोक ऑर्डर के लिए नकदी के बिना काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) की शुरूआत ने खुदरा विक्रेताओं और थोक विक्रेताओं के बीच कर नियम विभाजन पैदा करके उद्योग के लिए और अधिक समस्याएं पैदा कर दीं.”

एक अन्य फैक्टर जो इसमें योगदान देता है वह है पीतल, धातु और सीप से बनी चूड़ियों की बढ़ती मांग. सौभाग्य फैक्ट्री में काम करने वाले मोहम्मद अलकाब कहते हैं, “भारतीय परंपरा में चूड़ियों का हमेशा से बहुत महत्व रहा है. इसे शादियों से जोड़ा गया है, यही कारण है कि यह उद्योग आज भी जीवित है. लेकिन समय बदल गया है और कांच की चूड़ियों में रुचि कम हो गई है.”

गौरतलब है कि जहां कांच की चूड़ियों की मांग में गिरावट आई है, वहीं राजस्थान और दिल्ली से पीतल और धातु की चूड़ियों की मांग अधिक है. परिणामस्वरूप, व्यापारियों ने भी इनका अधिक स्टॉक रखना शुरू कर दिया है.

फ़िरोज़ाबाद के नया रसूलपुर में चूड़ी की दुकान के मालिक इमरान शगीर कहते हैं, ”हम जो चूड़ियां बेचते हैं उनमें से आधे से अधिक राजस्थान से हैं. इस उद्योग के लिए इससे बुरा क्या हो सकता है?”

चूड़ी कारखाने कैसे प्रभावित हुए?

केंद्रीय लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय की 2019  की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लास उद्योग फिरोजाबाद की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आय का एक प्रमुख स्रोत है.

‘क्लस्टर डायग्नोस्टिक रिपोर्ट एंड एक्शन प्लान ग्लास क्लस्टर, फिरोजाबाद’ रिपोर्ट में कहा गया है कि यह शहर भारत के कुल असंगठित ग्लास उत्पादन का 70 प्रतिशत हिस्सा है, इसके लगभग 35 प्रतिशत उत्पाद अन्य देशों में निर्यात किए जाते हैं.

कांच उद्योग को तीन बड़े उप-समूहों में विभाजित किया गया है – चूड़ी बनाना, कांच बनाना और बोतल बनाना.

दिप्रिंट ने जिन विभिन्न व्यवसायियों से बात की, उनके अनुसार, फ़िरोज़ाबाद के कांच उद्योग का सालाना कारोबार 10,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जिसकी कुल क्षमता 5,000-6,000 टन प्रति दिन है. इसमें से चूड़ी बनाना 1,000 करोड़ रुपये का उद्योग होने का अनुमान है, जिसकी उत्पादन क्षमता 1,500 टन प्रतिदिन है.

1996 तक, अधिकांश चूड़ी बनाने वाली इकाइयां उत्पादन के लिए कोयले का उपयोग करती थीं. लेकिन उस वर्ष, ताज महल पर प्रदूषण के प्रभाव से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित करके न केवल विनिर्माण इकाइयों में किसी भी वृद्धि पर रोक लगा दी, बल्कि मौजूदा उद्योग को प्राकृतिक गैस पर स्थानांतरित करने के लिए भी कहा.

शहर के व्यवसायियों के मुताबिक इस आदेश का कांच उद्योग पर अमिट असर पड़ा. उस समय तक आगरा और फिरोजाबाद के पूरे क्षेत्र में 600 छोटे-बड़े उद्योग थे. जबकि इनमें से 400 प्राकृतिक गैस का प्रयोग करने लगे, अन्य को बंद करने या स्थानांतरित करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

जिन लोगों को उद्योग की बढ़ती समस्याओं के परिणामों का सामना करना पड़ा, उनमें 40 साल के नितिन गोयल भी शामिल थे. गोयल को कोविड-19 महामारी के बाद अपनी चूड़ी फैक्ट्री बंद करनी पड़ी क्योंकि वह प्राकृतिक गैस की बढ़ती लागत वहन नहीं कर सकते थे.

संदर्भ के लिए, 30 अप्रैल को केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय की एक अधिसूचना के अनुसार, 1 मई से 31 मई के बीच की अवधि के लिए घरेलू प्राकृतिक गैस की दर 650.90 अमेरिकी डॉलर/एमएमबीटीयू (541.97 रुपये) अधिसूचित की गई है.

आज, गोयल चूड़ी बाजार में एक थोक चूड़ी की दुकान के मालिक हैं. वह कहते हैं, ”हमारे जैसे कई लोग फैक्ट्री चलाने का जोखिम नहीं उठा सकते थे,” उन्होंने कहा कि चूड़ी बनाने वाली कई इकाइयां अब शहर के व्यस्त बाजार में हैं.

ऑल इंडिया ग्लास मैन्युफैक्चरर्स फेडरेशन (एआईजीएमएफ) के अध्यक्ष संजय अग्रवाल के अनुसार, जबकि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्थानीय ग्लास उद्योगों को जीवित रहने में मदद करने के लिए प्राकृतिक गैस प्रदान करना शुरू कर दिया, लेकिन कई चूड़ी बनाने वाली इकाइयां इससे लाभान्वित नहीं हो सकीं और यह घाटे में रहा.

“यह उद्योग अपना विस्तार करने की स्थिति में नहीं था क्योंकि यह एक संगठित क्षेत्र नहीं था बल्कि फ़िरोज़ाबाद में फैला हुआ था.”

2012 में, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने सभी समान स्थित उद्योगों के लिए एक एकीकृत मूल्य तंत्र (यूपीएम) शुरू करके अपनी मूल्य निर्धारण नीति को बदल दिया.

कांच-चूड़ी उद्योग के लिए, इस मूल्य परिवर्तन का मतलब था कि प्राकृतिक गैस और भी महंगी हो गई. एआईजीएफ अध्यक्ष अग्रवाल कहते हैं “चूड़ी उद्योग गैस की कीमतों में वृद्धि से बहुत प्रभावित हुआ और इसे पचा नहीं सका। 2015 से, कई लोग बोतल बनाने वाली इकाइयों में परिवर्तित हो गए, जो यहां पारंपरिक नहीं है.”

2 मई को फिरोजाबाद में अपने भाषण में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि उनकी सरकार की नीतियों ने क्षेत्र के उद्योग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है. उन्होंने कहा, ”आज फिरोजाबाद अपने कांच के काम के लिए दुनिया में जाना जाता है.”

लेकिन फ़ैक्टरी मालिक और अधिक चाहते हैं. क्वालिटी ग्लास वर्क्स के मालिक संजय अग्रवाल ने दिप्रिंट को बताया, ”यहां के उद्योगपति अपने अधिकारों के लिए लड़ने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि कई प्रतिबंध हैं जो उन्हें अपना कारोबार बढ़ाने से रोकते हैं.”

फ़िरोज़ाबाद की सबसे पुरानी चूड़ी फैक्ट्रियों में से एक – नादर बक्स एंड कंपनी ग्लासवर्क्स के प्रबंधक मोहम्मद सैफ इससे सहमत हैं. “काम अब वैसा नहीं रहा जैसा पहले हुआ करता था. फैक्ट्री चलाना अब आसान काम नहीं है. कच्चा माल महंगा हो रहा है. परिचालन लागत कई गुना बढ़ गई है लेकिन बाजार में मांग नहीं है.”

अर्थशास्त्री प्रशांत अग्रवाल की तरह, फिरोजाबाद व्यापार मंडल के अध्यक्ष वी.एस.गुप्ता भी चूड़ी उद्योग की स्थिति के लिए इनोवेशन की कमी को जिम्मेदार मानते हैं.

गुप्ता, जो चूड़ी व्यवसाय से भी जुड़े हैं, दिप्रिंट को बताते हैं, “यह हमेशा एक असंगठित क्षेत्र रहा है. हालांकि यहां के मजदूर काफी कुशल हैं और अपना काम अच्छी तरह जानते हैं, फिर भी वे पारंपरिक तरीके से ही काम करते हैं. कोई इनोवेशन पेश नहीं किया गया.”

सौभाग्य ग्लास फैक्ट्री में कांच की चूड़ियां एक मशीन से गुजरती हैं | कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

बोतल बनाने के उद्योग का उदय

हालांकि कोई आधिकारिक डेटा नहीं है, पर विभिन्न अनौपचारिक अनुमान कहते हैं कि फ़िरोज़ाबाद में कुल 198 कांच बनाने वाली इकाइयां हैं, जिनमें चूड़ी बनाने वाली इकाइयां भी शामिल हैं. इस संख्या में से 160 सक्रिय हैं.

पारंपरिक कांच की चूड़ी बनाने वाली इकाइयों में गिरावट बोतल बनाने वाली इकाइयों में वृद्धि के अनुरूप है – एआईजीएमएफ के अध्यक्ष संजय अग्रवाल के अनुसार, बोतल बनाने वाली इकाइयों की संख्या 1996 में 1-2 से बढ़कर वर्तमान में 22 हो गई है. उनका कहना है कि कुल बोतलों के निर्माण में 80 प्रतिशत शराब की बोतलें बनाई जाती हैं.

तो बॉटलिंग उद्योग की ओर इस बदलाव का क्या कारण है? अर्थशास्त्री प्रोफेसर प्रशांत अग्रवाल के अनुसार, यह एलईडी बल्ब के आविष्कार जैसी तकनीकी प्रगति के साथ-साथ पहले बताए गए कारकों के कारण था. इससे फिरोजाबाद में उत्पादित कांच के बल्बों में गिरावट आई.

प्रोफेसर कहते हैं, “ऐसी स्थिति में, यहां के उद्योगों के पास कांच की बोतल उद्योग की ओर स्थानांतरित होने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था. आज फिरोजाबाद में बड़ी संख्या में ऐसी बोतलें बन रही हैं जिनकी दुनिया भर में मांग है. और काम शारीरिक श्रम के बजाय मशीनीकृत तरीके से किया जा रहा है.”

यह सब चूड़ी बनाने वाले उद्योग के धीमे अंत का संकेत देता है. इसे जीवित रखने में मदद करने के लिए, अर्थशास्त्री तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप का आह्वान करते हैं. “चूड़ी बनाने वाले उद्योग को जीवित रहने में मदद करने के लिए या तो कुछ प्रणालीगत सुधार या नई नीतिगत पहल होनी चाहिए. अन्यथा, यह अपनी अंतिम सांसें ले रहा है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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