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टिकटॉक वीडियो पोस्ट करने वाले दलित युवक की गुजरात में राजपूतों ने मूंछें मुंडवायी

ट्विटर पर बहुजनों की मूंछें नाम का ट्रेंड तेज़ी से बढ़ रहा है. ट्रेंड के पीछे की वजह ये है कि गुजरात के मेहसाणा में दलित समाज से आने वाले संजय नाम के एक युवक की मूंछें काट दी गईं.

साभार: विशेष प्रबंध

नई दिल्ली: ‘मैंने जब टिकटॉक पर अपनी मूंछ वाली वीडियो डाली थी तब मुझे नहीं पता था इसकी कीमत मार खाकर और मूंछ मुंडवाकर चुकानी पड़ेगी.’ 22 साल के गुजराती दलित युवक संजय परमार ने अपनी मूंछे खोने के बाद ये दर्द बयां किया.

ट्विटर पर बहुजनों की मूंछें नाम का ट्रेंड तेज़ी से बढ़ रहा है. ट्रेंड के पीछे की वजह ये है कि गुजरात के मेहसाणा में दलित समाज से आने वाले संजय नाम के एक युवक की मूंछें काट दी गईं. यहां के सवर्णों के ऊपर आईटीआई के छात्र संजय की मूंछ काटकर उसके साथ हिंसा करने का आरोप है.

इसी के ख़िलाफ़ बहुजन समाज के लोग अपनी मूंछों समेत कई तरह की तस्वीरें ट्विटर पर पोस्ट कर अपना विरोध जता कर रहे हैं. पता चला है कि घटना के बाद गांव के राजपूतों ने इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया.

मामले में हुई एफ़आईआर की कॉपी

ट्रेंड से जुड़े एक ट्वीट में भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने लिखा, ‘गुजरात के मेहसाणा में हमारे एक साथी की राजपूतों ने मूंछे काट दी है. अब इनको इनकी औकात दिखाने का समय आ गया है. अब हम दिखाते हैं बहुजनों की मूंछे कैसी होती है. किसी में हिम्मत है तो हाथ लगाकर दिखाए. सभी बहुजन समाज के लोग अपनी मूछें घुमाती हुई फ़ोटो लगाएं. #बहुजनों_की_मूंछें.’

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संजय ने दिप्रिंट से कहा कि ये घटना भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस को यानी छह दिसंबर को हुई. अंबेडकर को संविधान निर्माण का जनक कहा जाता है और दलित समाज उन्हें सबसे बड़ा समाज सुधारक मानता है. संजय ने कहा, ‘मारपीट के दौरान लगी चोट के कारण मैं अभी पीएम नरेंद्र मोदी के गृहनगर वडनगर के सिविल हॉस्पिटल में भर्ती हूं.’

संजय के पिता रणछोड़ भाई परमार गांव के खेतों में मजदूरी का काम करते हैं. आईटीआई के छात्र संजय ने कहा कि उन्हें भी पढ़ाई से ज़्यादा समय मज़दूरी में देना पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘गांव के राजपूतों ने मेरी मूछें मुंडवा कर वीडियो बनावाई और माफ़ी मंगवाई. घर वालों और भीम आर्मी के लोगों के आने पर मुझे छोड़ा.’

दलितों के साथ कई बार हो चुकी है ऐसी घटनाएं

गुजरात से अपनी तरह का ये पहला मामला नहीं है. साल 2016 में दलितों के ख़िलाफ़ गुजरात के ऊना में हुए अत्याचार के विरोध में जब आंदोलन हुआ तो देश भर में यह चर्चा का विषय बन गया. दरअसल, गोरक्षा के नाम पर ऊना में दलित परिवार के सात लोगों को जमकर पीटा गया था जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद दलित समाज के लोगों ने जमकर विरोध किया था.

मॉब लिंचिंग जैसे इस मामले में दलित समाज के लोग ऊना के समाधियाला में मरी हुई गाय की खाल निकाल रहे थे. इस दौरान ख़ुद को गोरक्षक बात रहे कुछ लोग वहां पहुंचे और दलितों पर आरोप लगाया कि उन्होंने गोहत्या की है.

खाल उतार रहे लोगों ने सफ़ाई दी कि वो पास के बेडिया गांव से मरी हुई गाय लाए हैं, लेकिन कथित गोरक्षक नहीं माने और खाल उतार रहे लोगों की डंडे और लोहे की रॉड से पिटाई की और चाकू से हमला किया. दलित समाज के लोगों ने इसका ऐसा विरोध किया जिसकी गूंज सड़क से संसद तक पहुंची और मामला राज्यसभा में भी उठा.

दलितों के उत्पीड़न की एक घटना गुजरात के अरावली जिले में भी देखने को मिली थी. जिसमें एक दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने के कारण वहां के ओबीसी समुदाय के लोगों ने हमला किया था. यह घटना इसी साल अप्रैल में हुई थी.

आंकड़ें बताते हैं कि गुजरात में दलितों के खिलाफ होने वाली हिंसा और अपराध में वृद्धि हुई है. वर्ष 2013 से 2017 के बीच अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध में 32 फीसदी की वृद्धि हुई है वहीं अनूसूचित जनजाति के खिलाफ इसमें 55 फीसदी की वृद्धि हुई है.

इस घटना के बाद जिग्नेश मेवानी ने दलित अस्मिता यात्रा निकाली थी. 15 अगस्त 2016 को ये यात्रा ऊना से अहमदाबाद पहुंची. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसमें करीब 20,000 लोगों ने भाग लिया था.

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