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आपराधिक कानून के तंत्र का इस्तेमाल पत्रकारों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता: जुबैर

नयी दिल्ली, 20 जुलाई (भाषा) ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि आपराधिक कानून के तंत्र का इस्तेमाल पत्रकारों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता और उनके ट्वीट न तो किसी को उकसाते हैं और न ही किसी भी तरह से अपमानजनक हैं।

जुबैर ने अपनी वकील के माध्यम से कहा कि यह सोशल मीडिया का युग है जिसमें समाचार बिजली की गति से प्रसारित होते हैं और झूठी सूचनाओं को खारिज करने वाले किसी व्यक्ति का काम दूसरों को नाराज कर सकता है लेकिन ‘‘कानून को उसके खिलाफ हथियार नहीं बनाया जा सकता। यह तथ्यों की पड़ताल करने वाले को चुप कराने का एक स्पष्ट मामला है।’’

जुबैर की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ से कहा कि उनके खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकियों को रद्द कर दिया जाना चाहिए या वैकल्पिक रूप से दिल्ली के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दर्ज प्राथमिकी के साथ जोड़ दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘आपराधिक कानून तंत्र का इस्तेमाल पत्रकार को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता। ये छह प्राथमिकी उन ट्वीट पर आधारित हैं, जिनमें से कोई एक भी किसी को उकसाता नहीं है या किसी भी तरह से अपमानजनक नहीं है।’’

ग्रोवर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कुल छह प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और चंदौली पुलिस थाने में एक अन्य प्राथमिकी दर्ज है, जिसकी उन्हें जानकारी नहीं है और ये सभी प्राथमिकी दिल्ली विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दर्ज की गई पहली प्राथमिकी की जांच का विषय है।

उन्होंने कहा कि दिल्ली की प्राथमिकी में, जांच के दायरे का विस्तार किया गया है और उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ के वित्तपोषण को देखने के लिए ‘फेरा’ (विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम) के प्रावधानों को लागू किया है और यहां तक ​​कि एक छापेमारी और जब्ती अभियान भी चलाया है जिसमें जुबैर का लैपटॉप जब्त किया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली पुलिस की प्राथमिकी में मुझे जमानत मिलने के बाद, हाथरस में एक प्राथमिकी दर्ज की गई। दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराएं लगायी हैं और अब उन्होंने ‘फेरा’ के प्रावधानों को लागू किया है और लैपटॉप और अन्य उपकरण जब्त करने के लिए रिमांड पर ऑल्ट न्यूज़ के अहमदाबाद कार्यालय ले जाना चाहते हैं।’’ उन्होंने कहा कि एक भुगतान प्लेटफॉर्म ने स्पष्ट किया है कि ऑल्ट न्यूज़ को सभी वित्तपोषण घरेलू है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह किस प्रकार का रिमांड है कि मुझे जहां भी मेरा कार्यालय स्थित है, मुझे ले जाया जाएगा। यह जांच की शक्ति का एक वैधानिक दुरुपयोग है।’’

उनकी वकील ने कहा ‘‘ उनकी जान को सीधा खतरा है। उनके सिर पर एक इनाम घोषित किया गया है, हमने धमकियों को देखते हुए तिहाड़ जेल से उनकी वीडियो कांफ्रेंस के लिए कहा लेकिन इससे इनकार कर दिया गया। अब वे उन्हें तिहाड़ जेल से अलग-अलग जगहों पर ले जाना चाहते हैं।’’

ग्रोवर ने ट्वीट का जिक्र करते हुए कहा कि जिन ट्वीट की जांच दिल्ली पुलिस कर रही है, उनकी जांच हाथरस, लखीमपुर खीरी, गाजियाबाद, सीतापुर और मुजफ्फरनगर में दर्ज अलग-अलग प्राथमिकी में उत्तर प्रदेश पुलिस भी कर रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘जब भी अदालतों द्वारा एक प्राथमिकी में राहत दी जाती है, अचानक एक निष्क्रिय प्राथमिकी सक्रिय हो जाती है और मुझे रिमांड पर लिया जाता है। यदि आप ट्वीट को देखे, तो कोई उकसावा नहीं है और इन ट्वीट की भाषा भी अनुचित नहीं है। प्रथम दृष्टया शत्रुता को बढ़ावा देने का कोई मामला नहीं है।’’

ग्रोवर ने कहा कि एक नेटवर्क है जो उस समय हरकत में आता है जब अदालत इस तथ्यों की पड़ताल करने वाले को राहत देती है, जो अपने ट्वीट में नफरत भरे भाषणों या एक टीवी चैनल द्वारा इस्तेमाल किए गए मस्जिद की फर्जी तस्वीरों की ओर इशारा करता है जो सांप्रदायिक विद्वेष को भड़का सकता है।

उन्होंने कहा कि जिस दिन शीर्ष अदालत ने उन्हें सीतापुर प्राथमिकी में राहत दी थी, उसी दिन उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था, जो एक ट्वीट पर आधारित है जिसकी जांच दिल्ली पुलिस द्वारा पहले से ही की जा रही है।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के तीन पुलिस थानों द्वारा इसी तरह के नोटिस जारी किए गए हैं, जहां जुबैर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और बैंक विवरण और अन्य वित्तीय रिकॉर्ड का विवरण मांगे गए हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ऑल्ट न्यूज़ को किये जाने वाले इस वित्तपोषण की जांच दिल्ली पुलिस भी कर रही है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अपना बचाव कैसे करना चाहिए। जब ​मेरे खिलाफ ​संज्ञेय अपराध का प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है तो मेरे पास अपना बचाव करने के लिए संसाधन नहीं हो सकते। इसलिए, मैं अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग कर रहा हूं।’

ग्रोवर ने शुरूआत में पीठ के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि वह दिल्ली में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध नहीं कर रही। उन्होंने बाद में कहा कि वह अपने किसी भी कानूनी उपाय का अनुरोध नहीं कर रही हैं और कानून के तहत जो भी उपलब्ध है, उसका लाभ उठाएंगी।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में दर्ज इन प्राथमिकी का आधार ऐसा है कि जब कोई अदालत राहत देती है तो एक निष्क्रिय एफआईआर सक्रिय हो जाती है और जुबैर को नोटिस दिया जाता है।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि याचिकाकर्ता पत्रकार नहीं है और आरोप लगाया कि ‘‘वह दुर्भावनापूर्ण ट्वीट करके नाम कमा रहा है। ट्वीट जितने दुर्भावनापूर्ण होते हैं, उतना अधिक भुगतान उसे मिलता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने स्वीकार किया है कि उन्हें उनके ट्वीट के लिए 2 करोड़ रुपये मिले हैं। वह कोई पत्रकार नहीं हैं।’’ उन्होंने कहा कि यहां एक व्यक्ति है जो अभद्र भाषा के वीडियो का फायदा उठाता है और सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने के लिए उन्हें वायरल करता है।

प्रसाद ने कहा कि ट्विटर पर 2.5 लाख फॉलोअर्स से, जुबैर के फॉलोअर्स इस तरह के वीडियो ट्वीट करने के कारण पांच लाख हो गए हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में दर्ज कुछ प्राथमिकी दिल्ली में दर्ज की गई प्राथमिकी से पहले की हैं और कुछ बाद की हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक एसआईटी का गठन किया गया था क्योंकि यह एक गंभीर मामला था और यह सुनिश्चित करने के लिए था कि स्थानीय पुलिस एक कठोर रवैया नहीं अपनाये। इसका नेतृत्व आईजी रैंक के अधिकारी कर रहे हैं और डीआईजी इसके सदस्य हैं। राज्य सरकार का प्रयास राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना है।’’

जुबैर को दिल्ली पुलिस ने 27 जून को एक ट्वीट के जरिये धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनके ट्वीट के लिए उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज की गईं।

भाषा अमित नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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