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लॉकडाउन: चाइल्ड पोर्नोग्राफी में इजाफे के बाद बाल आयोग ने ट्विटर, गूगल और व्हाट्सएप को भेजा नोटिस

देश के 100 शहरों और कस्बों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और इंदौर में चल रहे ट्रेंड्स की स्टडी करने वाली इस रिपोर्ट का दावा गंभीर है.

प्रतीकात्मक तस्वीर, मनीषा मोंडल, दिप्रिंट

नई दिल्ली: हाल ही में ‘द इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड’ द्वारा जारी की गई एक स्टडी के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान चाइल्ड पोर्नोग्राफी में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है. जनवरी 2020 में नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी के बेटे भुवन रिभू द्वारा स्थापित की गई इस संस्था ने पाया कि ‘सेक्सी चाइल्ड’, ‘चाइल्ड पोर्न’ और ‘टीन सेक्स पोर्न’ जैसे सर्च में भयंकर इजाफा हुआ है. चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज मटेरियल इन इंडिया नाम से प्रकाशित हुई रिपोर्ट का संज्ञान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने लिया है.

देश के 100 शहरों और कस्बों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और इंदौर में चल रहे ट्रेंड्स की स्टडी करने वाली इस रिपोर्ट का दावा गंभीर है.

चाइल्ड कमीशन ने इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए सीपीसीआर एक्ट 2005 के सेक्शन 13 (1) (डी) (जे) (के) के तहत गूगल, ट्विटर और व्हॉटसएप पर ऑनलाइन सेक्सुअल अब्यूज मटेरियल की उपलब्धता को लेकर स्वतंत्र जांच कराने के लिए लिखा है. गूगल प्ले स्टोर के जरिए डाउनलोड की जाने वाले एप्स के माध्यम से पोर्नोग्राफिक मटेरियल बच्चों तक पहुंच सकता है. इसलिए इस तरह का मटेरियल बच्चों के संदर्भ में एक गंभीर मसला है. और साथ ही लिखा है कि ऑनलाइन सेक्सुअल अब्यूज मटेरियल की किसी भी तरह की उपलब्धता उन एप्स पर है तो वो अपने आप में एक गंभीर मामला है.


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आयोग का कहना है कि पॉक्सो अधिनियम 2012 के सेक्शन 19 के तहत पॉक्सो से जुड़े अपराधों के बारे में रिपोर्ट करना अनिवार्य है. इसलिए इस सेक्शन के तहत आयोग ने इस तरह के साइबर क्राइम करने वाले पोर्टल्स के हैंडल्स और लिंक्स की सूचना गृह मंत्रालय को भेज दी है.

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गौरतलब है कि किसी भी तरह के कॉमर्शियल उपयोग के लिए बच्चों का इस्तेमाल पोर्नोग्राफिक उद्देश्य या ऐसे कंटेंट को स्टोर करना पॉक्सो के सेक्शन 13-15 के तहत अपराध की श्रेणी में आता है. इसके अलावा भी आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 67 के तहत भी चाइल्ड पोर्नोग्राफी और पोर्नोग्राफिक मटेरियल भी बैन है. सेक्सन 67बी के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी की किसी भी तरह की सामग्री को पब्लिश करना, ट्रांसमिट करना, देखना या डाउनलोड करना गैरकानूनी है. इसी तरह आईपीसी की धाराएं 292, 293 के तहत भी इस तरह के मटेरियल पर प्रतिबंध लगाती हैं.

आयोग ने इस स्वतंत्र जांच को कराने के लिए इन एप्स से कुछ जानकारियां भी मांगी हैं. ये जानाकारियां 30 अप्रैल तक उपलब्ध कराने का आग्रह भी किया है. जानकारियों की सूची है- प्लैटफॉर्म पर मिले चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज मटेरियल की शिकायतों की संख्या, पोर्नोग्राफिक कंटेंट के संबंध में मिली शिकायतों की संख्या, दोनों ही केसों में कंपनी द्वारा फॉलो की जाने वाली पॉलिसी का विवरण, आपके प्लेटफॉर्म से बच्चों तक पोर्नोग्राफिक मटेरयल ना पहुंचने देने के संदर्भ में अपनाई जाने वाली पॉलिसी का ब्यौरा.

30 अप्रैल तक जानकारी मिलने के बाद चाइल्ड कमीशन सीपीसीआर एक्ट 2005 के सेक्शन 14 के हिसाब से आगे की कार्रवाई करेगा.

गौरतलब है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) बाल अधिकारों की रक्षा के लिए आयोग अधिनियम, 2005 की धारा 3 के तहत गठित किया गया एक वैधानिक निकाय है.

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