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क्यों NLIU भोपाल में ‘इस्लामोफोबिक’ चर्चा से विवाद खड़ा हो गया? VC बोले- सभी विचारों का समर्थन न करें

यह आयोजन 30 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच हुआ था. इस कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने किया था.

नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (NLIU) भोपाल | फोटो: nliu.ac.in

भोपाल: भोपाल स्थित संगठन यूथ थिंकर्स फोरम द्वारा शहर के नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी (NLIU) परिसर में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में “इस्लामोफोबिक” और अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणित बयानों को लेकर आक्रोश फैल गया है.

‘यूथ थिंकर्स कॉन्क्लेव’ – जो 30 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच आयोजित किया गया था और इसका उद्घाटन केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने किया था. इसमें ‘डिकोडिंग मैन्युफैक्चर्ड नैरेटिव्स’, ‘द भारतीय वे: इकोनॉमी एंड गवर्नेंस’, ‘अनरेवलिंग वोकिज्म: सामाजिक सक्रियता के डीएनए की जांच’ और ‘टाइमलेस विजडम ऑफ भारत’ जैसे विषय शामिल थे.

कार्यक्रम स्थल पर लगाए गए पोस्टरों में प्रमुख बुद्धिजीवियों, लेखकों और राजनेताओं की तुलना हिंदू महाकाव्य रामायण के पौराणिक राक्षस राजा रावण के दस सिरों से की गई. इसमें सांसद शशि थरूर और इतिहासकार रामचंद्र गुहा, इरफान हबीब और रोमिला थापर भी शामिल थे.

कार्यक्रम में लगाए गये पोस्टर | फोटो: विशेष प्रबंधन

कथित तौर पर पोस्टर वायरल होने के बाद उसे हटा दिया गया.

कॉन्क्लेव में वक्ताओं में से एक अल्मोसो फ्री थे, जो खुद को तुलनात्मक धर्म के पूर्व-मुस्लिम विद्वान के रूप बताते हैं.

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फ्री ने यह आरोप लगाने की कोशिश की कि कुछ कव्वालियों ने हिंदू तीर्थ स्थलों को कमजोर करने का प्रयास किया.

गीत “गोकुल, मथुरा देखा है, निज़ामुद्दीन जैसा कुछ नहीं देखा” का हवाला देते हुए उन्होंने पूछा कि इन धार्मिक शहरों की तुलना मक्का या मदीना जैसे पवित्र इस्लामिक शहरों से क्यों नहीं की जा सकती.

उन्होंने अमीर खुसरो की प्रसिद्ध रचना “छाप तिलक” का भी हवाला दिया – जो एक लोकप्रिय सूफी गीत है. उन्होंने इसे आपत्तिजनक बताया. फ्री ने कहा, “सर्वशक्तिमान को समर्पित यह गीत है कि छाप तिलक सब छीनी, मोसे नैना मिलाइके (तुमने एक नज़र में मुझसे मेरी पहचान छीन ली). गीत में टोपी और दाढ़ी के बजाय हिंदू प्रतीक ‘तिलक’ को छीनने की बात क्यों कही गई है, जबकि टोपी और दाढ़ी मुसलमानों से जुड़ा हुआ है.”

उन्होंने कहा, “यदि यह आपका सूफीवाद है और अगर रूमी ने एक अच्छी कविता लिखी है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि सूफीवाद अच्छा है.”

NLIU के छात्रों के अनुसार, उन्हें विषय और आने वाले वक्ताओं के बारे में सूचना दी थी. साथ ही उन्होंने ‘हठधर्मिता से धर्म तक: पैगंबरी एकेश्वरवाद का हिंदू दृष्टिकोण’ जैसे विषयों पर चर्चा और पैनल तथा वक्ताओं की भागीदारी को लेकर अपनी चिंता जताई थी. छात्रों का कहना था कि जो वक्ता आने वाले थे उनका “भड़काऊ भाषण” का इतिहास रहा है.

छात्रों ने 30 सितंबर को जारी कार्यक्रम की निंदा करते हुए एक पत्र में कहा, “हालांकि, जानकारी कार्यक्रम को रद्द करने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए थी. लेकिन इसके बजाय, केवल चर्चा का विषय बदल दिया गया जबकि आयोजक और वक्ताओं का पैनल वही रहा.” दिप्रिंट के पास पत्र की एक प्रति है.

NLIU के कुलपति (VC) प्रोफेसर सूर्य प्रकाश ने कहा, “हमने इस कार्यक्रम में हुई बातचीत या चर्चाओं का समर्थन नहीं किया.”

सोमवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि उन्होंने इस कार्यक्रम की अनुमति दे दी थी क्योंकि NLIU के एक पूर्व छात्र ने इसकी मांग की थी और इसी तरह के कार्यक्रम अन्य विश्वविद्यालयों में भी आयोजित किए गए थे.

उन्होंने आगे कहा, “मैंने कार्यक्रम स्थल का दौरा किया और आधे घंटे बाद चला गया और मुझे नहीं पता कि उसके बाद क्या चर्चा हुई. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. मैंने अपनी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि यह इस तरह से होगा.”

प्रोफेसर सूर्य प्रकाश ने कहा, “हम एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में उन विचारों या चर्चाओं का समर्थन नहीं करते हैं. हमने बस एक चर्चा सत्र आयोजित करने के लिए उन्हें जगह दी थी.”

यूथ थिंकर्स फोरम (YTF) के संस्थापक निदेशक आशुतोष ठाकुर ने कहा कि वक्ताओं ने जो कुछ भी संबोधित किया वह एक “तथ्य” था. दिप्रिंट से बात करते हुए ठाकुर ने कहा कि केवल कुछ ही छात्र थे जिन्होंने इस पर आपत्ति जताई थी, जबकि अन्य इससे सहमत थे.

उन्होंने कहा, “हमारे सभी वक्ता विद्वान हैं और वे तथ्यों के बारे में बात कर रहे हैं. यदि छात्रों को उनके विचारों पर आपत्ति है, तो उन्हें तर्क और तथ्यों के माध्यम से इसका खंडन करना चाहिए. केवल उन्हें नफरत फैलाने वाला कहना ठीक नहीं है.”


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‘सबजेक्टिव टर्म’

ठाकुर ने पांच वर्षीय यूथ थिंकर्स फोरम को “राष्ट्रीय महत्व के क्षेत्रों पर सार्वजनिक चर्चा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध” बताया. उन्होंने कहा कि संगठन 18 से 35 वर्ष की आयु के लोगों के लिए राज्य भर के विभिन्न सरकारी और निजी संस्थानों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित करता रहा है.

यह पूछे जाने पर कि किस आधार पर अमोस्लो फ्री को तुलनात्मक दर्शन का विशेषज्ञ माना गया, ठाकुर ने कहा, “बुद्धिजीवी कौन है यह एक बहुत ही सबजेक्टिव टर्म है. सभी विद्वान इतने प्रसिद्ध नहीं हैं, लेकिन अमोस्लो फ्री अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं और वह तथ्य पर बात कर रहे थे. उन सभी लोगों की तरह जो कार्यक्रम में आये थे.”

पोस्टर का जिक्र करते हुए ठाकुर ने कहा, “यह एक किताब पर आधारित है जिसमें कई शिक्षाविद हैं जिन्होंने इन इतिहासकारों के काम की आलोचना की है और वे पोस्टर उसी किताब पर आधारित थे. लेकिन ज़्यादातर लोगों को ये भी नहीं पता कि ऐसी कोई किताब भी है.”

V-C को एक पत्र

आयोजन के पहले दिन के बाद, NLIU भोपाल में स्टूडेंट्स बार एसोसिएशन की कोर कमेटी ने VC को एक ईमेल लिखा, जिसमें कॉन्क्लेव की निंदा की गई और तत्काल कार्रवाई का अनुरोध किया गया.

कार्यक्रम में जीसस क्राइस्ट एन आर्टिफिस फॉर एग्रेसन, टीपू सुल्तान विलियन या हीरो?, इस्लाम एंड कम्युनिज्म और हिंदू राष्ट्र की अवधारण शीर्षक वाली किताबें बेची जा रही थीं। फोटो: विशेष प्रबंधन

ईमेल में छात्र संगठन ने कहा, “YTF इवेंट, जिसे शुरू में एक ‘अकादमिक कार्यक्रम’ का नाम दिया गया था, ने हमारे बीच गंभीर आशंका पैदा कर दी है. ऐसा लग रहा है कि यह आयोजन अपने अकादमिक फोकस से भटक गया है और अब इसे धार्मिक प्रचार प्रसार के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.”

इसमें आगे लिखा गया, “कन्वेंशन सेंटर के भीतर लगातार धार्मिक नारे लगने से हमारे साथी छात्रों में परेशानी पैदा हो गई है. यह देखना निराशाजनक है कि हमारे विश्वविद्यालय का उपयोग उन उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है जो शिक्षा के अपने प्राथमिक उद्देश्य से बहुत दूर हैं.”

यह पूछे जाने पर कि कार्यक्रम रद्द क्यों नहीं किया गया वीसी ने कहा, “मैं 26 सितंबर को बहुत व्यस्त था और छात्र पोस्टर और बैनर के साथ समस्या लेकर मेरे पास आए थे, जिन्हें हटा दिया गया था. उसके बाद इस मामले को डीन ऑफ स्टूडेंट वेलफेयर द्वारा निपटाया गया.”

उन्होंने कहा, “हम भविष्य में आयोजनों को जगह देने में सावधानी बरतेंगे.”


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‘वोकिज़्म’ पर सत्र

पहले दिन एक सत्र के दौरान, YTF के एक “अकादमिक सदस्य” वैभव चतुर्वेदी ने बताया कि संगठन जागृतिवाद पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और पिछले साल “विरोध संस्कृति की शारीरिक रचना” के आठ पुस्तकों पर चर्चा की थी. उन्होंने कहा कि इस साल वे ‘अनरावेलिंग वोकेसिम’ शीर्षक के तहत फिर से वोकिज़्म पर चर्चा कर रहे थे.

सत्र के दौरान, इंडस यूनिवर्सिटी अहमदाबाद के सेंटर फॉर इंडिक स्टडीज के निदेशक राम शर्मा ने सबरीमाला मामले – सभी उम्र की महिलाओं को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति देने की मांग – को “कट्टरपंथी नारीवाद” के उदाहरण के रूप में बताया, जो कि इसे जागृतिवाद के एक भाग के रूप में वर्णित किया गया.

इसके बाद शर्मा ने ट्रांसजेंडरों के लिए बड़े पैमाने पर मान्यता के उद्देश्य से चलाए गए अभियानों के बारे में बात करते हुए कहा कि वोकिज्म ट्रांसजेंडरों से संबंधित नहीं है, लेकिन आंदोलन के साथ इसे प्रमुखता मिली है.

शर्मा ने CJI के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि पुरुष और महिला की कोई पूर्ण अवधारणा नहीं थी, उन्होंने कहा, “भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. द्वारा दी गई प्रसिद्ध राय को सुनना बहुत ही अजीब था.”

छात्रों ने आरोप लगाया कि यह कार्यक्रम LGBTQ समुदाय, धार्मिक अल्पसंख्यकों और छात्र समुदाय के अन्य सदस्यों के लिए अपमानजनक और आहत करने वाला था.

(संपादन : ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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