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चश्मदीदों ने बताया- हैदरपोरा मुठभेड़ में मारा गया नागरिक अक्सर CRPF जवानों के साथ चाय पीता नजर आता था

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने माना कि दो नागरिकों को ‘आतंकवादियों की पहचान’ के लिए मुठभेड़ स्थल पर ले जाया गया था, लेकिन परिवारों का आरोप है कि उन्हें ‘मानव ढाल’ के तौर पर इस्तेमाल किया गया था.

हैदरपोरा के इसी बिल्डिंग में इनकाउंटर के दौरान दो नागरिकों को गोली लगी, जिसके बाद उनकी मौत हो गई | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

श्रीनगर: श्रीनगर के हैदरपोरा में मुठभेड़ मामले में कुछ चश्मदीदों ने दिप्रिंट को बताया कि इसमें मारे गए नागरिकों में से एक को अक्सर ही इस क्षेत्र में आने वाले सीआरपीएफ कर्मियों के साथ चाय पीते और क्रिकेट मैच देखते देखा जाता था.

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, व्यवसायी अल्ताफ भट्ट की हाईवे के किनारे एक दुकान थी जो हैदरपोरा के पास ही थी.

इलाके के एक दुकानदार ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं भट्ट साहब को पिछले 30 सालों से जानता हूं. यहां तक कि सीआरपीएफ और पुलिस के लोग भी उन्हें जानते थे क्योंकि उनकी दुकान मुख्य राजमार्ग पर है और उनके पास अक्सर सुरक्षा बलों से जुड़े लोग आते रहते थे. वह अक्सर उन्हें चायपान कराते रहते थे. कभी-कभी वे एक साथ क्रिकेट मैच भी देखते थे. क्या वह इतने बड़े बेवकूफ होंगे कि मुख्य सड़क स्थित किसी दुकान के अंदर आतंकवादियों को पनाह देंगे? यह कुछ और नहीं बल्कि हत्या है.’

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, अल्ताफ भट्ट और एक अन्य नागरिक डॉ. मुदस्सिर अहमद को पुलिस ‘आतंकवादियों का पता लगाने के लिए अपने साथ ले गई’ थी. लेकिन बाद में पुलिस ने उन्हें मुठभेड़ में मृत घोषित कर दिया.

पुलिस ने भी माना है कि वे भट्ट और अहमद को मुठभेड़स्थल पर लेकर गई थी. पुलिस के मुताबिक दोनों नागरिक भट्ट के स्वामित्व वाली इमारत में छिपे आतंकवादियों के साथ गोलीबारी के दौरान मारे गए थे. पुलिस ने बताया कि अहमद इसी इमारत में किरायेदार था.

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प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि यह मुठभेड़ 15 नवंबर को शाम 4:30 बजे शुरू हुई थी जब जम्मू-कश्मीर पुलिस, भारतीय सेना और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवान फिरन पहनकर हैदरपोरा के बाजार क्षेत्र में पहुंचे, इलाके की घेराबंदी की और क्षेत्र के दुकानदारों, उनके कर्मचारियों, श्रमिकों और यहां तक कि ग्राहकों को भी किनारे हटाकर परिसरों की तलाशी शुरू कर दी.

पुलिस का दावा है कि उसके पास ‘इलाके में आतंकियों की मौजूदगी’ की पक्की खुफिया जानकारी थी और 200 मीटर के दायरे में आने वाली करीब दर्जन भर दुकानों के सभी लोगों को इलाके के एक अस्पताल और एक रॉयल एनफील्ड शोरूम के अंदर भेज दिया गया था. ये सब अल्ताफ भट्ट और डॉ मुदस्सिर अहमद के नेतृत्व वाले समूह ने किया था.

ऊपर उद्धृत दुकानदार ने कहा, ‘लगभग 6:30 बजे हमने लगभग 30 से 40 सेकंड तक गोलियों की आवाज सुनी. उसके बाद अगले साढ़े चार घंटे तक सब शांत रहा. ऑपरेशन पूरा होने के बाद लोगों को रात 12 बजे बाहर निकाल दिया गया. अगले ही दिन हमें पता चला कि उस मुठभेड़ में डॉ. मुदस्सिर और अल्ताफ भट्ट दोनों मारे गए थे.

मुठभेड़ के बाद कथित आतंकियों और दोनों नागरिकों के शवों को पुलिस ने यहां से 70 किलोमीटर दूर हंदवाड़ा में आनन-फानन में दफना दिया. इसके बाद तीन लोगों— डॉ. मुदस्सिर, अहमद भट्ट और आमिर के परिवार के सदस्यों ने विरोध किया, जिन्होंने उनके शवों की मांग की. कश्मीर भर में विरोध प्रदर्शनों के बाद पुलिस को डॉ. मुदस्सिर और अहमद भट्ट के शवों को उचित तरीके से दफनाने के लिए उनके परिवार को सौंपने पर बाध्य होना पड़ा.

गुरुवार को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी कहा कि मुठभेड़ की मजिस्ट्रेट से जांच होगी और 15 दिनों में रिपोर्ट देनी होगी.


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‘उन्हें संदिग्ध आतंकी ठिकाने दिखाने ले गए थे’

पुलिस ने एक आधिकारिक बयान में दावा किया कि उनके पास ‘हैदरपोरा स्थित एक निजी इमारत में व्यापार के लिए किराए पर लिए गए एक अवैध कॉल सेंटर में आतंकियों की मौजूदगी के बारे में विशिष्ट इनपुट थे, जिसके बाद इस ऑपरेशन की योजना बनाई गई थी.’

पुलिस ने माना कि डॉ. मुदस्सिर और भट्ट को ‘इमारत में संदिग्ध कॉल सेंटर दिखाने के लिए’ साथ ले जाया गया था.

पुलिस ने बयान में कहा, ‘इमारत के मालिक अल्ताफ अहमद के साथ-साथ किरायेदार मुदस्सिर अहमद को तलाशी दस्ते के साथ ले जाया गया था. लेकिन जैसे ही तलाशी दस्ता इमारत की ऊपरी मंजिल पर एक कमरे के पास पहुंचा, वहां छिपे आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिस पर पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की.

बयान में कहा गया है, ‘हालांकि, फायरिंग और जवाबी फायरिंग शुरू होने के दौरान ही तलाशी दस्ते के साथ गए दोनों नागरिकों को गोलियां लगीं और गंभीर रूप से घायल होने के कारण उनकी मौत हो गई. इसके बाद जारी रही मुठभेड़ में कमरे में छिपे दोनों आतंकियों को मार गिराया गया और उनके शव मुठभेड़ स्थल से बरामद किए गए.’

पुलिस ने कहा कि मारे गए आतंकवादियों की पहचान पाकिस्तानी आतंकी हैदर और उसके कथित सहयोगी आमिर अहमद के रूप में हुई है.

पुलिस ने दावा किया कि बनिहाल निवासी आमिर पहले एक लश्कर कमांडर के ओवरग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) के रूप में काम करता था.

पुलिस ने यह भी कहा कि डॉ मुदस्सिर अहमद ‘उस इमारत में एक अवैध कॉल सेंटर चला रहा था जिसे व्यवसाय के लिए किराए पर लिया गया था और आतंकियों के एक सहयोगी के रूप में काम कर रहा था’, लेकिन अहमद भट्ट की संलिप्तता पर कोई टिप्पणी नहीं की.

पुलिस ने दावा किया कि मुठभेड़ के दौरान ‘दो पिस्तौल, तीन मैगजीन, छह मोबाइल फोन सहित आपत्तिजनक सामग्री, हथियार और गोला-बारूद’ बरामद किया गया है. साथ ही यह भी बताया कि कॉल सेंटर में छह केबिन थे और यहां पर छह कंप्यूटर और छह सीपीयू ‘वर्किंग नेटवर्क के साथ विदेशी नंबरों के कई वर्चुअल नंबर, अल्फा, बीटा, गामा कोड वाली डायरियां, एक अमेरिकी मैप और अन्य उपकरण’ पाए गए हैं.

डॉ मुदस्सिर अहमद की इनकाउंटर में मौत हो गई | विशेष प्रबंध

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‘उन्हें मानव ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया’

हालांकि, पीड़ितों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि उन लोगों को मानव ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया गया था.

अहमद भट्ट की भतीजी साइमा भट्ट ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान कहा, ‘उनकी दुकान हाईवे पर है, जहां से अक्सर सुरक्षा बलों के काफिले गुजरते रहते हैं. इसके अलावा उस क्षेत्र में हर दिन ही इतनी अधिक तैनाती होती है कि उस स्थान पर वह किसी आतंकवादी को पनाह क्यों देंगे? उन्होंने मेरे चाचा को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया है, जिसका उन्हें कोई अधिकार नहीं था.’

भट्ट की 12 वर्षीय बेटी मरियम इस बात से नाराज है कि उसके पिता को ‘आतंकवादी सहयोगी’ कहा गया था.

उसने कहा, ‘उन्होंने उन्हें गोलियां झेलने के लिए एक मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया और फिर एक आतंकवादी करार दे दिया? मैं जानना चाहती हूं कि उन्होंने मेरे पिता को क्यों मारा? अगर उन्हें तलाशी दस्ते के साथ ले जाया गया था तो उन्हें बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं दी गई? फिर उनके मरने के बाद उन्होंने हमें किसी अन्य आतंकवादी की तरह उनका चेहरा देखने का मौका दिए बिना उन्हें दफना दिया? इन सवालों का जवाब कौन देगा?’

मुदस्सिर की पत्नी राफिया अल्ताफ भी चाहती हैं कि पुलिस उनके नाम से ‘आतंकवादी सहयोगी’ का टैग हटा दे.

उसने कहा, ‘उनकी अब मौत हो चुकी है. लेकिन मेरे बच्चों का क्या? मेरा छोटा बेटा पांच साल का है. अगर वे इसी के साथ बड़े हुए तो उनके भविष्य का क्या होगा? कौन-सा स्कूल या कॉलेज उन्हें दाखिला देगा.’


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‘जांच-पड़ताल’ जारी

पुलिस अब कह रही है कि वह आतंकवादियों के साथ दोनों नागरिकों की ‘संलिप्तता’ की अभी जांच कर रही है.

एक सूत्र ने कहा, ‘जांच में पता चला है कि डॉ. मुदस्सिर अहमद ने हमले के बाद आमिर (जो बाद में इस मुठभेड़ में मारा गया) को इस किराये की इमारत से आल्टो-800 कार में भागने में मदद की. इसके अलावा, हमारे पास मामले में डिजिटल सबूत हैं जिन्हें आगे जांच के लिए दिल्ली और चंडीगढ़ एफएसएल भेजा गया है. हमें तथ्यों के सामने आने का इंतजार करना चाहिए.’

सूत्र ने आगे कहा, ‘हम सभी पहलुओं की जांच कर रहे हैं जैसे इन सभी आतंकवादियों ने अपने ठिकाने, ये कॉलसेंटर कहां बनाए थे. घटनास्थल से जब्त किए गए उपकरणों का भी विश्लेषण किया जा रहा है.’

दोनों नागरिकों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आनी अभी बाकी है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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