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भारत में लुप्त हो जाने के 70 सालों के बाद चीतों की वापसी, दुनिया का सबसे बड़ा संरक्षण ट्रायल

पायलट परियोजना के लिए नामीबिया से आठ चीतों को बड़ी सावधानी से चुना गया. उन्हें सबसे अलग और बाड़ों में रखा जाएगा, जिसके बाद उन्हें कूनो नेशनल पार्क में खुला घूमने के लिए छोड़ दिया जाएगा.

कुनो के पास रहने वाले ग्रामीण चीतों के आगमन को लेकर चिंतित लेकिन उत्साहित हैं | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

सेसैपुरा: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के बाहर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ जश्न का माहौल हो गया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को उनके बाड़ों में छोड़ा, और इसी के साथ एक ऐसी प्रजाति की वापसी हो गई, जो 70 साल पहले भारत से लुप्त हो गई थी.

ये स्थानांतरण कार्यक्रम जिस पर दशकों से काम चल रहा था, अपनी तरह का दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीपीय संरक्षण प्रयोग है, जिसका उद्देश्य चीते को उसकी पुरानी रेंज में फिर से बसाना है.

सरकार के अनुसार विचार ये है कि मेटा आबादियां- स्थानिक रूप से अलग अलग आबादियां- स्थापित की जाएं, जिनसे भारत के ग़ायब होते ग्रास ईको-सिस्टम्स के संरक्षण में भी सहायता मिल सकेगी.

प्रधानमंत्री मोदी शनिवार को आम लोगों से धैर्य रखने की अपील करते हुए कहा, कि वो ‘कुछ महीने इंतज़ार करें’ जिसके बाद उन्हें कूनो में चीते देखने को मिल जाएंगे. उन्होंने पायलट प्रोजेक्ट में उसकी भूमिका के लिए, नामीबिया सरकार का भी आभार प्रकट किया.

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प्रधानमंत्री ने, जो आज अपना 72वां जन्मदिन मना रहे हैं, कहा, ‘उन्हें (चीतों) को कूनो नेशनल पार्क को अपना आवास बनाने के लिए, हमें उन्हें कुछ महीनों का समय देना होगा’.

‘प्रोजेक्ट चीता’ का प्रस्ताव 2009 में भारतीय संरक्षणवादियों और नामीबिया-स्थित ग़ैर-मुनाफा संस्था चीता कंज़र्वेशन फंड (सीसीएफ) ने रखा था, और जनवरी 2020 में एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे सुप्रीम कोर्ट की मंज़ूरी मिल गई थी. उसके बाद जुलाई 2020 में भारत और नामीबिया गणराज्य के बीच, इस आशय के एक समझौता ज्ञापन पर दस्तख़त किए गए.


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भारत तक का सफर

शुक्रवार को आठ चीतों को नामीबिया की राजधानी विंडहोक के होसिया कुटाको इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर, ख़ासतौर से संशोधित किए गए एक बी747 विमान में चढ़ाया गया, और रातभर में क़रीब 11 घंटे का सफर तय करके ग्वालियर लाया गया.

इसके बाद उन्हें हेलिकॉप्टर के ज़रिए कूनो पालपुर नेशनल पार्क पहुंचा दिया गया.

विंडहोक में उड़ान भरने से पहले चीता कंज़र्वेशन फंड (सीसीएफ) की एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर डॉ लॉरी मार्कर ने दिप्रिंट से कहा था, ‘मैं उत्साहित और चिंतित हूं, लेकिन साथ ही आशावादी भी हूं’.

मार्कर ने आगे कहा कि सफर के लिए बिग कैट्स को ‘हल्का सा शांत’ किया गया था.

एक मादा चीता को एक टोकरे में ले जाया जा रहा है | साभार: सीसीएफ

फ्लाइट में मौजूद दूसरे एक्सपर्ट्स में चीता विशेषज्ञ एली वॉकर और बार्थेलेमी बाली, तथा पशुचिकित्सक डॉ एना बास्तो शामिल थे. सीसीएफ के एक बयान के अनुसार, वॉकर और बाली ‘अनिश्चित समय तक कूनो में रहेंगे, और अनुकूलन की अवधि के दौरान चीतों को संभालने में, प्रबंधन तथा स्टाफ की मदद करेंगे’.

अफ्रीकैट फाउंडेशन के डॉ एड्रियन टॉर्डिफ और मेटा पॉप्युलेशन विशेषज्ञ डॉ विंसेंट वान डेर मर्व भी, चीतों के साथ उड़ान में भारत आए.

डॉ मार्कर ने बताया कि ये सभी चीते- जिनमें पांच मादा और तीन नर हैं- जंगली वयस्क हैं और दो से साढ़े पांच साल तक की आयु के हैं, और ये तेंदुओं के साथ रहे हैं. इनमें से चार चीते नामीबिया के निजी रिज़र्व से हैं.

नामीबिया में एरिंडी प्राइवेट गेम रिजर्व में चीतों में से एक के साथ डॉ एना बस्टो की फाइल फोटो | साभार: सीसीएफ

सीसीएफ ने कहा कि हर चीते का चयन सावधानीपूर्वक उसके स्वास्थ्य, जंगल में उसके स्वभाव, शिकार कौशल के आंकलन, और ऐसे ‘जीन्स का योगदान’ करने की क्षमता के आधार पर किया गया, जिससे ‘एक मज़बूत संस्थापक आबादी हासिल हो सके’.

इस आबादी को बढ़ाने के लिए नामीबिया और साउथ अफ्रीका कम से कम पांच वर्षों तक, हर साल चार या पांच चीते देंगे ताकि जीन के प्रवाह में विविधता लाई जा सके.

साउथ अफ्रीका ने अभी तक स्थानांतरण को लेकर किसी औपचारिक समझौते पर दस्तख़त नहीं किए हैं. 6-8 सितंबर के बीच कूनो के अपने दो-दिवसीय दौरे के दौरान, उनके आंकलन के आधार पर साउथ अफ्रीका के विशेषज्ञ वहां की सरकार को एक रिपोर्ट पेश करेंगे, जिसके बाद भारत के साथ समझौते को औपचारिक रूप दिया जाएगा.

‘अनुकूल बनने में कई महीने लगेंगे’

डॉ मार्कर ने दिप्रिंट को बताया कि चीतों को अपने माहौल के हिसाब से ढलने में समय लगेगा. ‘उन्हें निश्चित रूप से अनुकूल बनना होगा, यहां के नज़ारों और आवाज़ों का आदी होना होगा, और इलाक़े की जांच करनी होगी’.

कूनो नेशनल पार्क के वन अधिकारियों का कहना था कि प्रक्रिया में कई महीने लग सकते हैं.

मध्य प्रदेश वन विभाग के मुख्य वन्यजीव वॉर्डन जेएस चौहान ने बताया, ‘उन्हें एक 25 x 30 (फीट) के क्वारंटीन एरिया में छोड़ा जाएगा, जहां उन्हें अनिवार्य रूप से 30 दिन तक रखा जाएगा. उसके बाद हम उन्हें बाड़ों में छोड़ देंगे’.

उन्होंने आगे कहा कि विभाग को ‘क्वारंटीन के दौरान उन्हें (चीतों) फीड करना होगा’.

एक मादा चीता की फाइल फोटो | Courtesy: CCF

हर चीते को केनाइन डिस्टेंपर जैसी बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए गए हैं, और क़रीबी निगरानी के लिए उन पर एक सेटेलाइट कॉलर फिट किया गया है.

जब वो 600 हेक्टेयर में फैले अहाते में सहज दिखने लगेंगे, उसके बाद ही उन्हें 748 वर्ग किलोमीटर में फैले नेशनल पार्क में छोड़ा जाएगा. चौहान ने कहा, ‘हमारा मानना है कि हमारे पास कम से कम एक मेटा आबादी के लिए पर्याप्त जगह है, क्योंकि कूनो के साथा लगा हुआ वन क्षेत्र 5,000 वर्ग किलोमीटर का है, जो चीतों के लिए पर्याप्त इलाक़ा है’.

एक सड़क जो कूनो राष्ट्रीय पार्क को जाती हुई | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

नामीबिया और दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञों के अनुसार कूनो नेशनल पार्क की विशेषता एक सूखा और पतझड़ी वातावरण है, जो चीतों के लिए उपयुक्त होता है.

कूनो के 400 से अधिक स्टाफ में से कई को, अफ्रीकी एक्सपर्ट्स ने चीते की निगरानी के लिए प्रशिक्षित किया है, और तेंदुओं तथा चीतों पर नज़र रखने के लिए कम से कम एक ट्रैकर कुत्ता तैनात किया गया है.


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‘चीता मित्र’, मिली-जुली प्रतिक्रियाएं

कूनो नेशनल पार्क जिसे मूलरूप से एशियाई शेरों के लिए तैयार किया गया था, उतना अच्छे से स्थापित नहीं है, जितने पास के रणथंभौर टाइगर रिज़र्व जैसे दूसरे पार्क हैं.

नेशनल पार्क से सबसे नज़दीक वन विभाग गेस्ट हाउस श्योपुर ज़िले के सेसैपुरा में है, जहां शुक्रवार को वन तथा ज़िला अधिकारी अंतिम समय के इंतज़मात, और शनिवार के पासेज़ पर चर्चा कर रहे थे, जिसमें कम से कम 200 लोगों ने शिरकत की.

लेकिन वन्यजीव प्राधिकारियों को सबसे बड़ी चिंता ये सता रही है, कि लोग इन चीतों का किस तरह स्वागत करेंगे. कूनो के पास के कम से कम तीन गांवों के निवासियों ने कहा कि उन्हें लगता है कि पार्क में पहले ही तेंदुओं की आबादी काफी हो गई है, और उसके साथ ही मवेशियों पर हमले भी बढ़ गए हैं.

कुनो राष्ट्रीय उद्यान की ओर जाने वाली दूसरी सड़क पर सुरक्षा घेरा | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

बरसिया गांव के एर निवासी मोरसिंह गुर्जर ने कहा, ‘जब हमें वो नज़र आते हैं तो हम हल्ला-गुल्ला करते हैं और उन्हें भगाते हैं, ज़रूरत पड़े तो कभी कभी डंडे और पत्थर भी इस्तेमाल करते हैं’.

चीतों को पेश होने वाले किसी भी ख़तरे को कम करने के लिए, एमपी वन विभाग ने पार्क से सटे गांवों से ‘चीता मित्र’ भर्ती किए हैं. सेसैपुरा गांव के एक चीता मित्र भरत सिंह गुर्जर ने कहा, ‘हमें करना ये होगा कि इस बारे में जागरूकता फैलानी होगी, लोगों को चीते का व्यवहार समझाना होगा और किसी हमले की स्थिति में वन विभाग के साथ समन्वय करना होगा’.

कार्यक्रम को मात्र एक हफ्ता हुआ है, और ‘चिता मित्रों’ को अभी कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं दी गई है.

कूनो से लगे एक गांव में रहने वाले कालू आदिवासी ने कहा कि स्थानीय लोगों में डर है कि चीते मवेशियों को नुक़सान पहुंचा सकते हैं, और ग्रामीणों पर हमला कर सकते हैं. उसने कहा, ‘मुझे लगता है कि वन विभाग हम आदिवासियों को चीता मित्र योजना में शामिल करने के और प्रयास कर सकता था, जो पार्क के सबसे नज़दीक रहते हैं’.

लेकिन चीतों के स्थानांतरण के नतीजे में श्योपुर ज़िले में, जहां औसत साक्षरता दर 61.32 प्रतिशत है, वहां के स्थानीय लोगों को लगता है कि इससे क्षेत्र के विकास को बढ़ावा मिल सकता है.

पर्यटकों की आमद की प्रत्याशा में कुनो के पास निर्माणाधीन एक होटल | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

यही भावनाएं गोपी आदिवासी की हैं. मोरावान गांव के निवासी गोपी ने अपने खेत का एक हिस्सा एक स्थानीय गुर्जर परिवार को बेच दिया था, जिसने बाद में उसे डेवलपर्स को बेच दिया. स्थानीय लोगों के अनुसार, इस क्षेत्र में एक पांच सितारा होटल बन रहा है, और गोपी अब उसमें मज़दूरी का काम करता है.

गोपी के पड़ोसी विष्णु गुज्जर ने, जो उसी की तरह प्रोजेक्ट में बतौर मज़दूर काम करता है, दिप्रिंट से कहा, ‘उसे (गोपी) पैसे की ज़रूरत थी, इसलिए उसने ज़मीन बेच दी. एक होटल बन रहा है. ये हर किसी के लिए एक अच्छी ख़बर है. हमें उम्मीद है कि उससे ज़्यादा रोज़गार आएगा, ज़्यादा काम मिलेगा’.

उसने आगे कहा, ‘अगर चीते भी ये (अधिक रोज़गार) लाते हैं, तो अच्छे रहेगा’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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