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क्या स्वीकार नहीं की गई रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है :न्यायालय

नयी दिल्ली, 12 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों के लिए ‘कोटा’ के सवाल पर विचार करते हुए बुधवार को कहा कि सरकार द्वारा खारिज कर दी गई या स्वीकार नहीं की गई एक जांच आयोग की रिपोर्ट का क्या परिणाम है तथा एक संवैधानिक मुद्दे पर विचार करते समय क्या रिपोर्ट का आधार तय करने वाले अनुभवजन्य आंकड़ों पर गौर किया जा सकता है।

न्यायालय ने रंगनाथ मिश्रा आयोग की उस रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए यह बात कही, जिसमें दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति (एससी) की सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई थी। सरकार ने रिपोर्ट स्वीकार नहीं की थी और इसे ‘त्रुटिपूर्ण’ बताया था।

शीर्ष न्यायालय उन याचिकाओं की सुनवाई कर रही है जिनमें आरोप लगाया गया है कि संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश,1950 भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समता) और अनुच्छेद 15 (धर्म, नस्ल, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करना) का हनन करता है क्योंकि यह हिंदू, सिख और बौद्ध धर्मों को छोड़कर अन्य धर्मों को अपनाने वाले अनुसूचित जाति के लोगों से भेदभाव करता है।

संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश,1950 में समय-समय पर संशोधन किया गया है। इसमें कहा गया है कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म को छोड़कर अन्य धर्म अपनाने वाले किसी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से न्यायालय में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने न्यायमूर्ति एस. के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि सरकार ने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की 2007 में आई रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने कहा कि इसमें दलित ईसाइयों और दलित मुस्लिमों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई थी, तथा देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक नया आयोग गठित किया गया था।

पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति ए अमानउल्ला और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार भी शामिल हैं।

भूषण ने पीठ से कहा, ‘‘अब, वे (सरकार) कह रहे हैं कि उन्होंने एक और आयोग नियुक्त किया है। विषय पर आगे बढ़ने के लिए अदालत के पास पर्याप्त मात्रा से अधिक सामग्री है। क्या इस न्यायालय को बार-बार इंतजार करना चाहिए कि सरकार एक आयोग नियुक्त करे।’’

केंद्र की ओर से न्यायालय में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) के. एम. नटराज ने कहा कि न्यायमूर्ति बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाला आयोग अपना कार्य कर रहा है और प्रासंगिक सामग्री एवं आंकड़े एकत्र किये गये हैं।

नटराज ने शीर्ष न्यायालय के एक पिछले फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक विशेष अध्ययन की जरूरत है और न्यायालय को इस मुद्दे पर विचार के लिए गठित नये आयोग के जवाब का इंतजार करना चाहिए।

एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से न्यायालय में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सी यू सिंह ने दलील दी कि महज यह कहना कि सरकार ने एक और आयोग गठित किया है, कोई मायने नहीं रखता।

पीठ ने सवाल किया, ‘‘सरकार ने आयोग की जो रिपोर्ट स्वीकार नहीं की थी उसकी क्या स्थिति है?’’

न्यायमूर्ति कौल ने जानना चाहा, ‘‘मेरा सवाल है, यदि एक रिपोर्ट स्वीकार नहीं की गई, तो रिपोर्ट के निष्कर्ष या अनुभवजन्य आंकड़ों की क्या स्थिति है। क्या हम एक रिपोर्ट से प्राप्त हुए अनुभवजन्य आंकड़े पर भरोसा कर सकते हैं, जिसे संवैधानिक प्रश्न से निपटने के लिए स्वीकार नहीं किया गया है।’’

भूषण ने कहा कि याचिकाएं 2004 में दायर की गई थीं।

पीठ ने कहा कि याचिकाओं में यह कहने की कोशिश की गई है कि एक अवधि के दौरान, अलग-अलग आयोग हो सकते हैं और राजनीतिक विचार-विमर्श भी होता है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘समस्या यह है कि लगभग दो दशक बीत गये हैं। सरकार ने न्यायमूर्ति मिश्रा आयोग की रिपोर्ट स्वीकार नहीं की और कई आयोगों को भी इसी स्थिति का सामना करना पड़ा है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘सवाल यह है कि कितने आयोग गठित किये जाएंगे?’’

न्यायालय ने कहा कि सामाजिक कलंक और धार्मिक कलंक अलग-अलग चीजें हैं तथा व्यक्ति के अन्य धर्म अपना लेने के बाद भी सामाजिक कलंक बना रह सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘संवैधानिक प्रश्नों पर विचार करते समय हम अपनी आंखें नहीं मूंद सकते।’’

भूषण ने कहा कि रिपोर्ट का सरकार द्वारा स्वीकार करना या नहीं करना कोई विषय नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘दूसरा मुद्दा यह उठाया गया है कि आयोग की रिपोर्ट का क्या परिणाम है, जिसे सरकार ने खारिज कर दिया या स्वीकार नहीं किया। क्या रिपोर्ट का आधार रहे अनुभवजन्य आंकड़ों पर गौर किया जा सकता है…।’’

न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 11 जुलाई तय की।

भाषा सुभाष देवेंद्र

देवेंद्र

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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