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जीएम फसलों के प्रतिबंध के खिलाफ महाराष्ट्र के किसानों को मिला भाजपा सांसद का समर्थन

महाराष्ट्र के वर्धा से बीजेपी सांसद रामदास तडास ने लोकसभा में इस मुद्दे को उठाया था, उन्होंने कहा कि किसानों को यह चुनने का अधिकार होना चाहिए कि वे अपने खेतों में क्या बोएं.

कपास लिए हुए किसान | ब्लूमबर्ग

मुंबई: महाराष्ट्र में किसानों ने जेनेटिकली-मॉडिफाइड (जीएम) बीजों पर प्रतिबंध का विरोध करते हुए खुलेआम बुवाई की है. उन्हें अब राजनीतिक समर्थन भी मिल गया है.

विदर्भ क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद रामदास तडस ने किसानों के पक्ष में जीएम तकनीक की मांग की है. वर्धा के सांसद ने पिछले हफ्ते लोकसभा में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाया था.

रामदास तडस ने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरा कहना था कि किसानों को प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने में सक्षम होना चाहिए. अपने खेतों में क्या बोना है, यह किसानों का अधिकार होना चाहिए उनको चुनना चाहिए की वो क्या बोएं. जीएम तकनीक पर वर्तमान प्रतिबंध में ढील दी जानी चाहिए.’

वर्तमान में कपास एक मात्र जीएम फसल है. जिसे सरकार ने भारत में बेचने की अनुमति दी है. जीएम बीटी बैंगन को व्यावसायिक रूप से जारी करने का प्रयास किया गया था. लेकिन, पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस पर अस्थायी रोक लगा दी थी.

हर्बिसाइड टोलरेंट (एचटी) कपास की किस्म है. जिसकी बुवाई महाराष्ट्र भर के किसान पिछले कुछ हफ्तों से खुलेआम कर रहे हैं. हालांकि, उन्हें अभी भी इसकी मंजूरी नहीं मिली है.

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हर्बिसाइड टोलरेंट बीजों को कुछ विशिष्ट हर्बिसाइड्स को सहन करने के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है. इसलिए, यहां तक कि हर्बिसाइड आसपास के बीजों को ख़त्म कर देता है. वे खेती की गई फसल को बरकरार रखते हैं.

‘वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए, किसानों को प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है’

रामदास तडस ने कहा, ‘किसानों को यह चुनने का संवैधानिक अधिकार है कि उन्हें खेत में क्या बीज बोना है. लेकिन कुछ प्रकार के बीज पर अभी भी प्रतिबंध है.’

उन्होंने यह भी कहा कि आज की दुनिया में, हमारे किसानों को अन्य देशों के किसानों के साथ वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी है. जिनके पास इस तरह की तकनीक है और यह उनके उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करता है. जिस तरह से अन्य देशों की सरकारों ने किसानों को तकनीकी स्वतंत्रता दी है. हमारी सरकार को भी करना चाहिए.

सांसद ने कहा, ‘चूंकि जीएम तकनीक पर प्रतिबंध है, जिससे किसानों को अपने उत्पादन में सुधार लाने के लिए उचित दिशा नहीं मिल रही है और इसलिए उन्हें बहुत कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है.’

तडस ने कहा कि उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से उनके सवाल पर जवाब नहीं मिला है.

किसानों ने विरोध में एचटी कपास के बीज लगाए

किसान वर्षों से निराई के लिए मैनुअल श्रम पर खर्च को बचाने के लिए प्रतिबंधित एचटी कपास के बीजों का उपयोग कर रहे थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों में, राज्य भर के काश्तकार विशेषकर विदर्भ के कपास उगाने वाले क्षेत्रों से प्रतिबंध की अवहेलना करने और जीएम तकनीक की भी मांग करने के लिए खुले तौर पर इन बीजों को बोने के लिए तैयार किया गया है.

इसकी शुरुआत अकोला ज़िले के अकोली बहादुर गांव के एक किसान ललित बहाले के साथ हुई थी. जिन्होंने इस महीने के शुरू में लगभग एक हज़ार अन्य किसानों की उपस्थिति में एचटी कपास के बीज बोए थे.

बहाले के बाद अहमदनगर ज़िले के आनंदवाड़ी गांव के महादेव खामकर अकोला ज़िले के बुद्रुक गांव के अमोल मसूरकर और अमरावती जिले के पुसड़ा गांव में महिला किसानों के एक समूह ने मुट्ठी भर अन्य किसानों को सोशल मीडिया पर अपनी अवहेलना की घोषणा की.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य सरकार से मामले की जांच करने और कार्रवाई करने को कहा है. अकोला कलेक्टर के कार्यालय ने बीज का एक नमूना प्रयोगशाला में भेजा है जिसको बहाले ने अपने खेत में बोया था. ताकि, यह पता लगाया जा सके कि यह एक अपरिष्कृत जीएम बीज है या नहीं.

महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों ने आधिकारिक तौर पर अभी तक विरोध प्रदर्शन पर ध्यान नहीं दिया है, इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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