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‘बांग्लादेशी हिंदू वो भारतीय जिन्हें हमने पीछे छोड़ दिया’ — अल्पसंख्यकों के जीवन की पड़ताल करती है ये किताब

दीप हलदर और अभिषेक बिस्वास की ‘बीइंग हिंदू इन बांग्लादेश’ के लॉन्च पर अर्थशास्त्री-लेखक संजीव सान्याल और दिप्रिंट के एडिटर-एन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ समाज में उनके (बांग्लादेशी हिंदुओं) स्थान पर चर्चा हुई.

(बाएं से दाएं) लेखक और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल, लेखक दीप हलदर, दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता, लेखक अविषेक बिस्वास सोमवार को किताब के लॉन्च पर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
(बाएं से दाएं) लेखक और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल, लेखक दीप हलदर, दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता, लेखक अविषेक बिस्वास सोमवार को किताब के लॉन्च पर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

नई दिल्ली: अर्थशास्त्री, लेखक और भारत सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने सोमवार को बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर चर्चा करते हुए कहा, बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न “एक बार का जातीय सफाया नहीं बल्कि बार-बार होने वाली प्रक्रिया है”.

पत्रकार दीप हलदर और अकादमिक अविषेक बिस्वास द्वारा लिखित Being Hindu in Bangladesh: An Untold Story (इसे हार्पर कॉलिन्स ने प्रकाशित किया है) के लॉन्च पर बोलते हुए — सान्याल ने 1947 में बंगाल के विभाजन और स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली हिंदुओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का भी ज़िक्र किया. दिल्ली के विदेशी संवाददाता क्लब के कार्यक्रम में दिप्रिंट के एडिटर-एन-चीफ शेखर गुप्ता भी शामिल हुए.

हलदर और बिस्वास की किताब बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के जीवन और उन आवाज़ों की पड़ताल करती है, जो 1947 में भारत के विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान (जो 1971 में बांग्लादेश बन गया) में रह गए थे — उन्हें संख्या और आंकड़ों से परे ले जाकर राजनीति, समाज-संस्कृति में उनकी भूमिका की खोज की गई है. किताब में बांग्लादेश ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के हवाले से कहा गया है कि 2015 में बांग्लादेश में 17 मिलियन हिंदू रहते थे, लेकिन यह भी कहा गया है कि हिंसा या हमलों की धमकियों के कारण वे देश छोड़ रहे हैं.

सान्याल ने कहा, “बांग्लादेश में हिंदू वे भारतीय हैं जिन्हें हम पीछे छोड़ आए हैं.”

इस बीच गुप्ता ने किसी भी देश में अल्पसंख्यक समुदायों के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “वे किसी भी समाज के किनारों को सुचारू बनाते हैं और संतुलन प्रदान करने में मदद करते हैं. इसलिए, बांग्लादेश में हिंदू समुदायों को सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण है और भारत को ढाका के साथ उस दिशा में काम करने की ज़रूरत है.”

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हलदर के अनुसार, बांग्लादेश में हिंदू “विनाश की भावना” से पीड़ित हैं, देश की राजधानी ढाका में समुदाय के कई लोगों को डर है कि अगले तीन दशकों में बांग्लादेश में कोई भी हिंदू नहीं बचेगा.

लेखक ने पूर्व और पश्चिम में भारत के विभाजन और उसके बाद बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने की तुलना करते हुए कहा, “पश्चिम में, यह एक बार हुआ, जबकि पूर्व में यह दशकों तक होता रहा”.

पिछले कुछ साल में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों द्वारा झेले गए हिंसा और उत्पीड़न पर प्रकाश डालते हुए हलदर ने देश में अपने परिवार की जड़ों और उनके और बिस्वास के “शरणार्थी रक्त” के बारे में भी बताया.

20 साल से अधिक अनुभव वाले पत्रकार हलदर दिप्रिंट में एक कॉलमनिस्ट हैं, जो बांग्लादेश में धर्म, जाति, राजनीति समेत अन्य विषयों पर लिखते हैं. वह Blood Island: An Oral History of the Marichjhapi Massacre (2019) and Bengal 2021: An Election Diary (2021) के लेखक भी हैं.

इस किताब के उनके सह-लेखक, बिस्वास, कलकत्ता यूनिवर्सिटी के विद्यासागर कॉलेज में अंग्रेज़ी साहित्य के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. जादवपुर यूनिवर्सिटी से पीएचडी होल्डर, वह विभाजन के इतिहास के मौखिक आख्यानों को संग्रहीत करने पर काम कर रहे हैं.


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‘आने वाले साल में बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा’

Being Hindu in Bangladesh: An Untold Story यह सवाल भी उठाती है कि “(प्रधानमंत्री) हसीना के बाद क्या?”, बिस्वास को लगता है कि अगर देश में अगले साल होने वाले चुनाव में विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) सत्ता में आती है तो बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय की दुर्दशा और खराब हो जाएगी.

बिस्वास ने कहा, “बांग्लादेश से हिंदू प्रवास का सबसे बड़ा साल 2001 के चुनाव के बाद था जब बीएनपी सत्ता में आई थी. प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग की आलोचना के बावजूद देश में हिंदुओं के लिए शेख हसीना आखिरी उम्मीद हैं. यह कहां तक सच है इसके लिए अधिक शोध की ज़रूरत है, लेकिन यही भावना है. अंततः, वे सत्ता में एक कट्टर दक्षिणपंथी इस्लामी पार्टी नहीं चाहते.”

उन्होंने आगे कहा, “‘हसीना के बाद कौन?’ के बजाय मैं कहूंगा, ‘हसीना के बाद क्या?’ हिंदुओं के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण सवाल है.”

उस समय का उदाहरण देते हुए जब 1967 में तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने रेडियो पर रबींद्रनाथ टैगोर के गाने बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया था, बिस्वास ने आशंका व्यक्त की कि आज देश में हिंदुओं की घटती संख्या को देखते हुए वर्तमान बांग्लादेश भी उसी ओर बढ़ रहा है.

बांग्लादेश में 2022 की राष्ट्रीय सरकारी जनगणना के अनुसार, देश में हिंदुओं का प्रतिशत 2011 में कुल जनसंख्या के 10 प्रतिशत से घटकर 2022 में 8 प्रतिशत हो गया.

लेखक ने बांग्लादेश के भीतर धर्म के विरोधाभासों पर भी चर्चा की और इस बात पर प्रकाश डाला कि सुप्रीम कोर्ट ने देश के संविधान में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बहाल किया — जिसे पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान के समय में किए गए संशोधन द्वारा हटा दिया गया था — राज्य धर्म इस्लाम ही बना हुआ है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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