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पार्क, CCTV – कैसे प्रोफेसर से सरपंच बने इस शख्स ने 5 साल में हरियाणा के एक गांव की कायापलट कर दी?

खुर्दबन के 32 वर्षीय सरपंच युवराज सिंह का मानना है कि उनकी शिक्षा की वजह से उन्हें अधिकारियों के सामने अपनी मांगों को व्यक्त करने और ग्रामीणों तक सरकारी योजनाओं के बारे में जानकायी पहुंचाने का आत्म-विश्वास मिलता है.

दिल्ली में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के मौके पर अवॉर्ड सेरेमनी के दौरान युवराज शर्मा (दाएं) । फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट

यमुनानगर: करीब पांच साल पहले हरियाणा के यमुनानगर जिले के छोटे से गांव खुर्दबन में कुछ खास नहीं था – सार्वजनिक सुविधाएं बिल्कुल प्राथमिक स्तर की थीं और सामान्य तौर पर जीवन की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं थी. पर अब यहां काफी कुछ बदल गया है.

आज, खुर्दबन के निवासियों के पास सार्वजनिक सुविधाओं की एक लम्बी श्रृंखला है, जिसमें एक बैडमिंटन हॉल, फिटनेस सेंटर (जिम), दो सामुदायिक पार्क (जिनमें से एक दिन के अधिकांश समय के दौरान महिलाओं और बच्चों के लिए आरक्षित रहता है), और पंचायत द्वारा निर्मित कई दुकानें भी शामिल हैं, जो यहां के लोगों को सुविधा और रोजगार दोनों प्रदान करती हैं.

गांव में चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरे निवासियों में सुरक्षा का अहसास जगाते हैं, और चटकीले रंगों से रंगी आंगनवाड़ी खिलौनों, और यहां तक कि एक एलसीडी स्क्रीन, के साथ अच्छी तरह से सजी हुई है.

तो आखिर पिछले पांच साल में क्या बदला? जब आप ग्रामीणों से खुर्दबन के इस कायापलट की व्याख्या करने के लिए कहते हैं, तो उनकी बातों से जो एक सामान्य सूत्र सामने आता है वह यह है कि: एक युवा, शिक्षित सरपंच (ग्राम प्रधान) जो यहां के निवासियों को अपने गांव के विकास में भाग लेने के लिए प्रेरित करने में कामयाब रहा है.

खुर्दबन में कलाकृतियों से सजी हुईं प्राइमरी स्कूल की दीवारें । फोटोः मनीषी मोंडल । दिप्रिंट

युवराज शर्मा केवल 27 वर्ष के थे जब उन्हें 2016 में इस गांव के सरपंच के रूप में चुना गया था. विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त इस शख्श ने अपनी सरपंच वाली भूमिका पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, अंबाला के मुलाना में महर्षि मार्कंडेश्वर (डीम्ड) विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रॉनिक्स के सहायक प्रोफेसर के रूप में अपनी नौकरी छोड़ दी.

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उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने पंचायत का चुनाव उस गांव की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए लड़ा, जहां उनका परिवार अभी भी रहता है.

अब 32 साल के हो चुके शर्मा कहते हैं, ‘मेरी अपनी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है और राजनीति में आने या सरपंच बनने का मेरा कभी कोई इरादा नहीं था. लेकिन, गांवों से पलायन एक ऐसा मुद्दा था जिसने मुझे परेशान कर रखा था और मैंने सोचा कि यह केवल इसलिए होता है क्योंकि गांवों में लोगों के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं.’

शर्मा के नेतृत्व में इस ग्राम पंचायत ने केंद्र सरकार के पंडित दीन दयाल उपाध्याय ग्राम सशक्तीकरण पुरस्कार (2017, 2019), और नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार (2018) के अलावा राज्य सरकार के सिक्स स्टार पंचायत पुरस्कार (2019) भी जीते हैं.

पंचायती राज मंत्रालय द्वारा हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में नव-निर्वाचित पंचायत सदस्यों को प्रशिक्षित करने के लिए यहां के ग्राम प्रधान को दो बार आमंत्रित भी किया गया है.

 

साफ दिखाई देने वाले परिणाम

हरियाणा के व्यस्त शहर यमुनानगर से एक संकरी सड़क यहां से लगभग 30 किमी दूर स्थित खुर्दबन गांव की ओर जाती है. हरे-भरे खेतों से घिरे इस गांव में लगभग 2,500 लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकांश परिवार कृषि और पशुपालन में लगे हुए हैं.

एक दोपहर जब दिप्रिंट इस गांव में पहुंचा, तो यहां के कई निवासी एक शादी के लिए उस सामुदायिक केंद्र में इकठ्ठा हुए थे जिसे ग्राम सभा द्वारा बनाया गया था. यह गांव के कई मनोरंजक गतिविधियों वाले स्थानों में से एक है.

इस सामुदायिक केंद्र के ठीक पीछे दो कोर्टों के साथ एक बैडमिंटन हॉल, जहां कोई भी खेल सकता है, (हालांकि खिलाड़ियों को अपने लिए रैकेट और शटलकॉक खुद लाना होता है) और एक फिटनेस सेंटर, जिसकी मासिक सदस्यता शुल्क 150 रुपये है, बने हुए हैं.

हरियाणा के खुर्दबन गांव में बैडमिंटन हॉल एंड फिटनेस सेंटर । फोटोः मनीषा मोंडल । दिप्रिंट

इस गांव का एक और आकर्षण 2 एकड़ में फैला पार्क है जिसमें अच्छी तरह से कटी घास, फव्वारे, बच्चों के लिए झूले और यहां तक कि एक खुला जिम भी है. यह पार्क दीवारों से घिरा हुआ है और इसमें एक बड़ा सा प्रवेश द्वार भी है जो निर्धारित समय पर खुलता और बंद होता है. सुबह और देर रात की दो छोटी समयावधियों को छोड़कर यह पार्क पूरी तरह से महिलाओं और बच्चों के लिए आरक्षित है.

पार्क में नियमित रूप से आने वाली इसरो देवी और अंगरेजो देवी का कहना है कि उन्हें खुले जिम का आनंद लेना अच्छा लगता है. इसरो देवी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें यहां कुछ अच्छी सुविधाएं मिल रही हैं, खासकर अब जबकि हमारे पास खुद के लिए पार्क है. हम दिन भर काम करने के बाद आराम करने और दोस्तों के साथ गप-शप करने के लिए यहां आना पसंद करती हैं.’

शैक्षिक मोर्चे पर, इस गांव में दो सरकारी स्कूल हैं – कक्षा 1 से 5 के लिए एक प्राथमिक विद्यालय और कक्षा 6 से 12 के लिए एक उच्च माध्यमिक विद्यालय.

एक ओर जहां हरियाणा के कई सरकारी स्कूल बुनियादी ढांचे, जैसे स्वच्छ शौचालय और अच्छे रखरखाव, की कमी की समस्या से ग्रस्त हैं, वहीं खुर्दबन के स्कूलों को अच्छी स्थिति में रखा गया है और इनकी दीवारों पर कलाकृतियां और सूचनात्मक पोस्टर लगे हैं. 0 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों की देखभाल करने वाली आंगनबाड़ी भी रोशन और अच्छी तरह से सुसज्जित है.

8 साल की छात्रा परी ने कहा कि उसे अपने स्कूल जाना अच्छा लगता है क्योंकि इसमें ‘अच्छे शिक्षक, बगीचा, फूल और दीवारों पर पेंटिंग’ हैं.


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‘एक शिक्षित और तकनीक की समझ रखने वाला सरपंच’

इस गांव के रहने वाले सतीश कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि युवराज शर्मा जैसा युवा और जानकार सरपंच का होना उनके लिए एक वरदान जैसा था.

कुमार ने कहा, ‘पहले, गांवों में आमतौर पर एक अशिक्षित सरपंच होता था, इसलिए सरकार की कोई भी नई योजना अक्सर किसी के भी ध्यान नहीं आती थी. लेकिन जब एक शिक्षित और तकनीक की समझ रखने वाला व्यक्ति सरपंच बन जाता है, तो वे जानते हैं कि कौन-कौन सी योजनाएं शुरू की गई हैं और वे डिजिटल तकनीक की मदद भी लेते हैं ताकि उन्हें जनता तक पहुंचाया जा सके.

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाया, और यहां तक कि ग्रामीणों की समस्याओं के बारे में एक सर्वेक्षण भी किया ताकि वे उनका समाधान कर सकें.

वे बताते हैं कि एक युवा सरपंच के होने की वजह से गांव के युवाओं को सामुदायिक मामलों में भागीदारी करने और ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेने के लिए अधिक प्रोत्साहन मिला.

शर्मा कहते हैं, ‘इससे कई जीवंत विचारों को सामने लाने में मदद मिली. उदाहरण के लिए, वे गांव में खेलों को बढ़ावा देना चाहते थे, तभी बैडमिंटन हॉल और फिटनेस सेंटर बनाये जाने का विचार उत्पन्न हुआ.’

शर्मा के अनुसार, महिलाओं ने भी बढ़चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया और उन्होंने अपने सामाजिक मेलजोल और सैर के लिए एक अलग क्षेत्र की आवश्यकता व्यक्त की. शर्मा ने ग्रामीणों को उनके समर्थन और ग्राम सभा के मामलों को गंभीरता से लेने का श्रेय देते हुए कहा, ‘हमने उनके विचारों को गांव के विकास के लिए अपने रोड मैप में शामिल किया है.’

खुर्दबन में 2-एकड़ के पार्क में खेलते हुए बच्चे । फोटोः मनीषा मोंडल । दिप्रिंट

एक सरपंच के रूप में उनके सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर, शर्मा कहते हैं : ‘मुख्य समस्या यह थी कि चुनाव के समय के आसपास पंचायत का काम लगभग छह महीने के लिए बंद हो जाता है. कोविड ने भी एक बड़ी बाधा की भूमिका निभाई, लेकिन इस दौरान भी हम डिजिटल रूप से जुड़े रहे ताकि ग्राम सभा का काम न रुके.’

एक रोचक तथ्य यह भी है कि कोरोना महामारी के दौरान ई-पंचायत आयोजित करने वाला हरियाणा का पहला गांव खुर्दबन ही था. इस वर्चुअल बैठक में हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और सुधीर राजपाल, प्रमुख सचिव, विकास एवं पंचायत विभाग समेत करीब तीन सौ लोग शामिल हुए थे.

लेकिन, सार्वजनिक सेवा के लिए अपने स्थायी करियर को त्यागने से जुड़े व्यक्तिगत नुकसान के बारे में क्या? जवाब में शर्मा कहते हैं, ‘अगर हर कोई आराम के बारे में सोचता रहेगा, तो बदलाव कैसे आएगा?’

शर्मा, जिनकी दो छोटी बेटियां हैं, के लिए एक सहायक प्रोफेसर के रूप में अपनी आरामदायक नौकरी छोड़ना और 40,000 रुपये प्रति माह के अपने वेतन को छोड़कर सरपंच के रूप में 3,000 रुपये के वेतन से काम चलाना कोई आसान निर्णय नहीं था, लेकिन यह एक ऐसा जोखिम था जिसके बारे उन्होंने महसूस किया कि यह लेने लायक था.

शर्मा कहते हैं, ‘मेरी पत्नी की राय थी कि मैं एक बड़ा जोखिम उठा रहा हूं और अगर मैं अपनी नौकरी को ही जारी रखता तो उसमें ही बेहतर प्रगति कर सकता था.’

शर्मा ने आगे कहा, ‘मेरे सहकर्मी इस पांच साल की अवधि में मुझसे बहुत आगे निकल जायेंगे. लेकिन अगर हर कोई केवल आराम के बारे में सोचता है, तो बदलाव कैसे आएगा?’ शर्मा यह भी बताते हैं कि स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं.

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि वह अपने सामने आने वाली समस्याओं को चुनौतियों के रूप में देखते हैं. वे बताते हैं, ‘विश्वविद्यालय में हम प्रोफेसरों के बीच गांवों से शहरों की ओर पलायन जैसे विषयों पर चर्चा होती थी. मैं भी एक साल दिल्ली-एनसीआर में रहा और मैंने देखा कि यह (पलायन) शहर के संसाधनों पर बहुत दबाव डालता है. लेकिन कई लोगों का इन चीजों के प्रति रुखा-सूखा रवैया होता है और वे मानते हैं कि इस व्यवस्था में बदलाव लाना बहुत मुश्किल है. पर मैंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया.’

इस तरह के मुद्दों पर गहन विचार विमर्श ने शर्मा को किसी तरह की राजनीतिक पृष्ठभूमि या समर्थन न होने के बावजूद पंचायत चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि उनकी शिक्षा ने उन्हें सरकारी अधिकारियों के सामने अपने विचारों और मांगों को स्पष्ट रूप से रखने का विश्वास दिलाया.

उन्होंने कहा, ‘मैंने देखा है कि शिक्षा की कमी व्यक्ति को दब्बू अथवा असहाय बना देती है. हमारे पिछले कुछ सरपंच अपनी मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं थे. लेकिन मैंने अपनी पृष्ठभूमि और अपने ज्ञान का उपयोग सरकारी योजनाओं पर ऑनलाइन शोध करने और उनसे लाभ उठाने के लिए किया.’

अगले साल जनवरी में होने वाले पंचायत चुनावों की वजह से यह ग्राम सभा वर्तमान में नई योजनाओं पर सक्रिय रूप से काम नहीं कर रही है, और शर्मा ने जिला परिषद में एक परियोजना अधिकारी के रूप में पद संभाल लिया है.

उनका आगामी पंचायत चुनाव लड़ने की योजना नहीं है क्योंकि उनका मानना है कि अब किसी और को नेतृत्व करने का मौका मिलना चाहिए. शर्मा ने कहा, ‘मैं उसका पूरा समर्थन करूंगा.’

हालांकि, ग्रामीण खुर्दबन में सुधार लाने के मिशन को जारी रखने के प्रति तत्पर हैं. उनकी प्राथमिकता सूची में गांव को एक स्वच्छ स्थान बनाना काफी ऊपर बना हुआ है. इस युवा सरपंच के पिता और ग्राम सभा के मामलों में काफी मदद करने वाले सुरेंद्र शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि गांव के तालाबों का सौंदर्यीकरण और यहां एक कचरा स्थल बनाना उनके एजेंडा में शामिल है. शर्मा सीनियर ने कहा, ‘हमने समूचे जिले में एक अच्छा उदाहरण स्थापित किया है और कई अन्य ग्राम प्रधान भी हमसे सीखने आते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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