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5G को लेकर उत्साहित हैं? COAI प्रमुख ने कहा- ‘असली’ चीज़ के लिए थोड़ा और लंबा हो सकता है इंतज़ार

सेल्युलर्स ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक एसपी कोचर कहते हैं, कि शुरू में स्टैण्ड अलोन 5G होने का कोई ‘मतलब नहीं’ बनता, और वो इसके रोल-आउट से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा करते हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. एसपी कोछर की फाइल फोटो

नई दिल्ली: भारत के तेरह शहर 5जी टेक्नॉलजी के रोल-आउट के लिए कमर कस रहे हैं. लेकिन टेलीकॉम उद्योग की बॉडी सेल्युलर्स ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएओएआई) के महानिदेशक डॉ एसपी कोचर के अनुसार, ‘असली’ 5जी का अनुभव करने के लिए भारतीय उपभोक्ताओं को थोड़ा और इंतज़ार करना पड़ सकता है.

दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में कोचर ने समझाया, कि एक स्टैण्डअलोन (एसए) 5जी के बजाय, जिसका मतलब मुख्य 5जी उपकरण पर नेटवर्क से होता है, भारतीय उपभोक्ताओं को पहले वो 5जी सेवाएं मिलेंगी जो 4जी टेलीकॉम इनफ्रास्ट्रक्चर पर चलती हैं, जिसे नॉन-स्टैण्डअलोन (एनएसए) 5जी भी कहा जाता है.

कोचर का कहना था कि ये एक विवेकपूर्ण नज़रिया है.

कोचर ने कहा, ‘अगर मैं उनकी (टेलीकॉम कंपनियों) जगह होता, तो मैं नॉन-स्टैण्डअलोन से शुरुआत करता’. उन्होंने आगे कहा कि आम उपभोक्ताओं के लिए 5जी नेटवर्क नॉन-स्टैण्ड अलोन होना चाहिए.

कोचर ने कहा, ‘मैं ऐसी (5जी मुहैया कराने वाली) एप्लिकेशंस पर पैसा क्यों ख़र्च करूं जो मौजूद ही नहीं हैं? मैं अपेक्षा करता हूं कि उद्यम अपने परिसरों के भीतर इस्तेमाल के लिए स्टैण्ड अलोन 5जी रखेंगे. लेकिन जब वो 5जी के बाहर इंटरफेस करेंगे, तो वो नॉन-स्टैण्डअलोन होगा.’

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इसका मतलब दरअसल ये है कि किसी कंपनी के निजी नेटवर्क को बाहर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध 5जी नेटवर्क के साथ जुड़ना होगा, भले ही कंपनी किसी दूसरी जगह स्थित अपनी ही किसी शाखा से संचार का प्रयास कर रही हो.

ये पूछे जाने पर कि क्या वोडाफोन-आईडिया (वीआई) जियो और एयरटेल से पिछड़ रहा है- जिन्होंने अक्तूबर में 5जी के रोल आउट का ऐलान किया है- कोचर ने कहा कि सभी तीनों कंपनियों के पास इंडिया मोबाइल कांग्रेस (आईएमसी) 2022 के दौरान 5जी का कोई वर्जन होगा, जिसका पीएम मोदी द्वारा उद्घाटन किए जाने की अपेक्षा है.

कोचर ने कहा, ‘वो तीनों एक ही दिन रोल आउट करने जा रहे हैं…तीनों की 5जी सेवाएं एक ही दिन से उपलब्ध हो जाएंगी.’

सीओएआई प्रमुख ने आगे कहा कि टेलीकॉम उद्योग ‘आईएमसी (इंडिया मोबाइल कांग्रेस) के आसपास कुछ घोषणाएं किए जाने’ की अपेक्षा कर रहे हैं, जो 1 अक्तूबर को शुरू होने जा रही है.

दिप्रिंट के साथ बातचीत में कोचर ने इसका भी इज़हार किया, कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि 5जी ‘हर चीज़ के लिए रामबाण’ नहीं है, और उन्होंने टेक्नॉलजी से जुड़े कुछ राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर भी बात की.


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‘शुरू से SA 5G रखने का कोई मतलब नहीं बनता’

दूसरे देशों की मिसाल देते हुए, जिन्होंने एक स्टैण्ड अलोन नेटवर्क के ज़रिए केवल 5जी सेवाएं मुहैया कराने से शुरुआत नहीं की, कोचर ने कहा कि शुरू से SA 5G रखने का कोई मतलब नहीं बनता.

उनके अनुसार, नॉन-स्टैण्ड अलोन नेटवर्क रहने से 5जी उपभोक्ताओं को ‘कुछ रफ्तार मिल जाएंगी.’

उन्होंने आगे कहा कि रफ्तार ‘रेडियो पर निर्भर’ होती है (जो टेलीकॉम नेटवर्क का एक अंग होता है), और टेक्नॉलजी वही होती है चाहे वो स्टैण्ड अलोन हो या नहीं.

एनएसए 5जी की कमियों को समझाते हुए कोचर ने कहा: ‘नॉन-स्टैण्ड अलोन में नेटवर्क स्लाइसिंग और एज कंप्यूटिंग जैसा विशेषताओं का दोहन थोड़ा सीमित होता है, लेकिन स्टैण्ड अलोन में ये पूरी तरह उपलब्ध होती हैं.’

नेटवर्क स्लाइसिंग से टेलीकॉम कंपनी एक ही इनफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करते हुए, अपने हर उद्यमी ग्राहक के लिए अलग-अलग 5जी नेटवर्क स्थापित कर सकती है, जबकि एज कंप्यूटिंग वो होती है जब एंड यूज़र उपकरण किसी सेंट्रल सर्वर प्रोसेसिंग के बिना, अपने बल पर कंप्यूटिंग तथा संचालन में सक्षम हों, और यूज़र डिवाइस को डेटा भेज सकें.

स्टैण्ड अलोन 5जी से एक नेटवर्क के किनारे पर ज़्यादा कंप्यूटिंग की जा सकती है, क्योंकि इसमें इतनी क्षमता होती है कि ‘प्रति वर्ग किलोमीटर 10 लाख उपकरणों’ को इससे सीधे जोड़ा जा सकता है, जो 4जी में नहीं होता.

कोचर ने कहा, ‘अगर किसी उद्यम को केवल स्टैण्ड अलोन की ज़रूरत है, और वो इन विशेषताओं का भरपूर इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उन्हें स्टैण्ड अलोन फीचर्स दी जाएंगी. ये उस पूंजी पर निर्भर करता है जो वो निवेश करना चाहते हैं.’


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5G स्थापित करने में चुनौतियां

इस बात पर बल देते हुए कि 5जी में भी समस्याएं हैं, और ये ‘हर चीज़ के लिए रामबाण’ नहीं है, कोचर ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में 5जी ऐसी फ्रीक्वेंसीज़ पर काम करेगा, जो दीवारों को भेदने में उतनी प्रभावी नहीं हैं, जितनी आज की 4जी फ्रीक्वेंसी है.

कोचर ने कहा कि इमारतों के भीतर कवरेज सुनिश्चित करने के लिए, पीकोसेल और फेमटोसेल (कम शक्ति के सेल्युलर बेस स्टेशन) जैसे अपेक्षाकृत छोटे उपकरण स्थापित करने की ज़रूरत है, या फिर 5जी सेवाओं को एक ऐसे राउटर से जोड़ना होगा, जो वाई-फाई स्टैण्डर्ड (वाई-फाई 6) के अनुकूल हो. उन्होंने आगे कहा, ‘किसी न किसी को इस उपकरण का ख़र्च उठाना होगा… अगर ये ख़र्च टेलीकॉम कंपनियां उठाती हैं तो उससे टैरिफ प्रभावित होगा.’

इस साल जुलाई में एरिक्सन में बिज़नेस एरिया नेटवर्क के स्ट्रैटजी हेड हान्स एक्सट्रॉम ने एक ब्लॉग में कहा था कि ये उद्योग डिजिटलाइज़ेशन ही है जो सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए राजस्व की नई धाराओं का रास्ता साफ करेगा’.

लेकिन उद्योग डिजिटलाइज़ेशन में समय लगता है, और ये तभी हो सकता है जब व्यवसायों को वैध एप्लिकेशंस मिल गए हों, और वो केसेज़ के आधार पर आंकलन करें, कि क्या उनके लिए 5जी नेटवर्क के खर्च उठाने का कोई मतलब बनता है.

भूमिगत ऑप्टिकल फाइबर तारों के लिए टेलीकॉम कंपनियां कितना पैसा अदा करें, ये एक और मुद्दा है जो 5जी रोलआउट से पहले भारतीय टेलीकॉम उद्योग के सामने खड़ा है.

कोचर के अनुसार, देश में केवल 35 प्रतिशत मोबाइल टॉवर्स ऑप्टिकल फाइबर तारों से जुड़े हैं- जो तांबे को तारों या वायु तरंगों के मुक़ाबले, डेटा भेजने का एक ज़्यादा तेज़ साधन है.

उन्होंने कहा कि 5जी नेटवर्क्स इस तरह से डिज़ाइन किए गए हैं, कि ये यूज़र डिवाइस से 4जी की अपेक्षा कहीं अधिक डेटा एकत्र करते हैं, जो आंशिक रूप से उस स्पेक्ट्रम की वजह से है जिसे वो इस्तेमाल करते हैं, और यही कारण है कि टेलीकॉम कंपनियां डेटा भेजने का सबसे तेज़ तरीक़ा अपनाती हैं, ताकि उस भीड़ से बचा जा सके जो सेवा की गुणवत्ता को कम करती है.

स्थानीय अधिकारियों से भूमिगत ऑप्टिकल फाइबर तार बिछाने की मंज़ूरी लेने के लिए, टेलीकॉम कंपनियों को एक फीस अदा करनी पड़ती है, जो ‘राइट ऑफ वे’ नियमों के अंतर्गत ली जाती है.

कोचर ने कहा, ‘राज्यों और केंद्र के बीच जुड़ाव नहीं है. केंद्र ने राइट ऑफ वे शुल्क और राइट ऑफ वे नियमों के बारे में स्पष्ट गाइडलाइन्स जारी कीं थीं, जिनका राज्य पालन नहीं कर रहे हैं, और अगर वो कर भी रहे हैं तो उनकी स्थानीय नगरपालिकाएं इन पर अमल नहीं करतीं.’

मुम्बई और पुणे की मिसाल देते हुए उन्होंने आगे कहा, कि कुछ राज्य और नगर निगम टेलीकॉम कंपनियों पर भूमिगत ऑप्टिकल फायबर तारें बिछाने के लिए, ‘हद से ज़्यादा मरम्मत शुल्क’ लगा रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘मुम्बई और पुणे में मरम्मत शुल्क 1 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर से ज़्यादा होता है. इसे तर्कसंगत किए जाने की ज़रूरत है’.

मरम्मत शुल्क वो लागत होती है, जो टेलीकॉम इनफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करते समय, किसी संपत्ति को हुए नुक़सान को ठीक करने में आती है.


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संभावित राजनीतिक अड़चनें

कोचर का मानना है कि 5जी को लागू करना राजनीतिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा बन सकता है.

मसलन, भारत की टेलीकॉम कंपनियां पूरे भारत में 4जी के लिए विशिष्ट डेटा गति मुहैया नहीं करातीं. उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ जगहों पर वो महैया कराती है, कुछ पर नहीं करातीं. और इसका कारण टेक्नॉलजी नहीं है’.

‘दिक़्क़त ये है कि भारतीय क़ानून हमें उन स्तरों पर ट्रांसमिट करने की इजाज़त नहीं देते, जिनकी डब्लूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) अनुमति देता है.

इस मामले में ट्रांसमिशन लेवल्स से मतलब किसी टावर की पावर आउटपुट से होता है. भारत में 1/10 पावर आउटपुट लेवल की अनुमति है, जोकि वैश्विक मानकों के अनुरूप है.

किसी सिग्नल टावर से अनुमत पावर लेवल को बढ़ाए जाने पर कोचर ने दिप्रिंट से कहा: ‘हम सरकार से इसकी समीक्षा करने के लिए कहते आ रहे हैं. ये राजनीतिक रूप से संवेदनशील स्थिति है’.

इसकी और व्याख्या करते हुए, उन्होंने सेल टावर्स से होने वाले रेडिएशन के संभावित असर से जुड़ी चिंताओं का ज़िक्र किया और कहा: ‘ज़रा ऐसी हेडलाइन सोचिए जिसमें कहा गया हो, कि सरकार को नागरिकों के स्वास्थ्य की परवाह नहीं है, जबकि हर कोई जानता है, पढ़े-लिखे लोग जानते हैं कि इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा. इसलिए राजनीतिक हितों के लिए इसका दुरुपयोग किया जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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