पटना, 11 जून (भाषा) बिहार में सत्तारूढ़ जद यू के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को पार्टी की ओर से राज्यसभा में जाने का मौका नहीं मिलने के बाद उन्हें मंत्री पद के अलावा पटना का सरकारी बंगला भी गंवाना पड़ सकता है । यह बंगला पिछले कुछ समय से उनके कब्जे में था।
भवन निर्माण विभाग द्वारा इस सप्ताह के शुरुआत में एक अधिसूचना जारी की गई थी जिसमें कहा गया था कि सात स्ट्रैंड रोड स्थित मंत्री का बंगला अब राज्य के मुख्य सचिव को आवंटित किया जाएगा।
भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने स्पष्ट किया कि उक्त बंगला आरसीपी सिंह को आवंटित नहीं किया गया था, उसे जदयू के विधान पार्षद संजय गांधी को आवंटित किया गया था, जिन्होंने आरसीपी को वहां रहने की अनुमति दी थी।
उन्होंने कहा कि हमने अब उसी मार्ग पर संजय गांधी जी को दूसरा बंगला आवंटित कर दिया है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसेमंद सहयोगी माने जाने वाले चौधरी ने जोर देकर कहा कि इसका कोई राजनीतिक मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए और मुख्य सचिव को सात सर्कुलर रोड वाला बंगला आवंटित किया गया था, जो वर्तमान में खुद मुख्यमंत्री के पास है ।
उन्होंने कहा कि यह सर्वविदित है कि मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास एक अणे मार्ग 100 वर्ष से अधिक पुराना है और व्यापक मरम्मत कार्य से गुजर रहा है, इसलिए मुख्यमंत्री सात सर्कुलर रोड पर चले गए हैं।
चौधरी ने कहा कि इसी के मद्देनजर मुख्य सचिव को एक नया घर सौंपने का निर्णय लिया गया।
नरेंद्र मोदी सरकार में महत्वपूर्ण इस्पात विभाग संभालने वाले सिंह का मंत्री पद खतरे में है क्योंकि उनका राज्यसभा का कार्यकाल अगले महीने समाप्त हो रहा है।
उत्तरप्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी रहे आरसीपी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहते हुए नीतीश का उस समय विश्वास अर्जित किया था वे रेल मंत्री थे। बिहार में नीतीश के सत्ता संभालने के बाद आरसीपी लंबे समय तक उनके प्रधान सचिव रहे थे ।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा निवासी और कुर्मी जाति से ताल्लुक रखने वाले आरसीपी ने राजनीति में प्रवेश करने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी और 2010 में जदयू में शामिल हो गए थे । इसके बाद उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था । केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल होने के कुछ महीने बाद उन्होंने पार्टी का शीर्ष पद छोड़ दिया।
ऐसी अटकले लगायी जा रही हैं कि मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र रहे आरसीपी का सहयोगी पार्टी भाजपा की ओर झुकाव ने नीतीश को असहज कर दिया है।
नीतीश तीन दशकों से भाजपा के सहयोगी रहे हैं लेकिन अपनी विशिष्ट वैचारिक स्थिति को बनाए रखना पसंद करते हैं और अपनी समाजवादी पृष्ठभूमि पर जोर देते हैं।
भाषा अनवर रंजन
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