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डॉक्टरों की आत्महत्या पर एम्स फैकल्टी और छात्रों ने कहा, ‘हमने नहीं उठाए पर्याप्त कदम’

एम्स ने 5 जून से अब तक छह लोगों को आत्महत्या करते देखा है-इनमें से 3 डॉक्टर थे. रेजिडेंट डॉक्टरों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा निरंतर शैक्षणिक दबाव से जुड़ा हुआ हो सकता है.

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एम्‍स की फाइल फोटो । फेसबुक

नई दिल्ली: पिछले 2 महीनों में राष्ट्रीय राजधानी स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में छह लोगों ने आत्महत्या की है, जिनमें तीन डॉक्टर शामिल हैं.

ताजा मामला शुक्रवार को सामने आया जब पीडियाट्रिक्स विभाग के 40 वर्षीय रिसर्च ऑफिसर डॉ. मोहित सिंगला का शव गौतम नगर स्थित उनके घर से तब बरामद किया गया जब पड़ोसियों ने पुलिस से शिकायत की कि वहां से कुछ बदबू आ रही है.

प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान पिछले कुछ वर्षों से नियमित रूप से छात्रों की आत्महत्याओं की घटनाओं से जूझ रहा है लेकिन गंभीर कोविड महामारी के बीच हाल में हुई मौतों- 5 जून से 14 अगस्त के बीच—ने छात्रों और फैकल्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है.

संस्थान के फैकल्टी एसोसिएशन ने इस हफ्ते के शुरू में एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया को पत्र लिखकर कहा था कि यहां ‘छात्रों के विकास को ध्यान में रखकर उपयुक्त माहौल तैयार करने के लिए सामूहिक रूप से मंथन करने और उपयुक्त कदम उठाने की जरूरत है.’

एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राकेश यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने प्रशासन से अपील की है कि वे इसे अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाएं. आत्महत्या एक बहु-कारक समस्या है और यह कहना मुश्किल है कि आत्महत्या की इन घटनाओं की वजह क्या रही है. यह एक संकेत जरूर है कि कहीं न कहीं हम असफल रहे हैं.’

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जून से अब तक एम्स में भर्ती तीन मरीज-जिसमें पत्रकार तरुण सिसोदिया भी शामिल थे- अज्ञात कारणों से परिसर में आत्महत्या कर चुके हैं.


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एक के बाद एक आत्महत्याएं

मोहित सिंगला 1998 एम्स के टॉपर थे जो पीडियाट्रिक्स विभाग में एक रिसर्च ऑफिसर के तौर पर नौकरी कर रहे थे. उनकी रुचि टीबी और एचआईवी में थी.

अपने कथित सुसाइड नोट में उन्होंने लिखा, ‘मैं 60-70 साल का होने तक जीकर क्या करूंगा.’ साथ ही उन्होंने यह भी लिखा था कि वह अपनी जान ले रहे हैं क्योंकि वह ‘अपनी मानसिक स्थिति को अब और नहीं छिपा सकते.’

दिल्ली पुलिस सुसाइड नोट की सत्यता की पुष्टि कर रही है.

पीडियाट्रिक्स विभाग में एक जूनियर रेजिडेंट, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा, ‘वह बहुत अच्छा इंसान था. एम्स में ज्यादातर लोगों के पास किसी की मदद करने का समय नहीं होता. अगर आपको कभी भी रिसर्च प्रोजेक्ट में मदद की जरूरत हो तो वह नि:स्वार्थ मदद को तैयार रहते थे. यह बहुत दुख की बात है. उन्होंने कभी यह पता नहीं चलने दिया कि उन्हें मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है.’

सिंघला की मौत 22 वर्षीय छात्र विकास जी के आत्महत्या करने के कुछ ही दिन बाद हुई है, जिसने गत 10 अगस्त को कथित तौर पर एक छत से छलांग लगा दी थी. विकास को पूर्व में मनोचिकित्सा वार्ड में भर्ती कराया गया था और मानसिक स्वास्थ्य के लिए उसका इलाज चल रहा था.

इससे पहले एक रेजीडेंट डॉक्टर अनुराग कुमार ने आत्महत्या कर ली थी. उनका भी मनोरोग विभाग में इलाज चल रहा था.

रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आदर्श प्रताप सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन दोनों पर कड़ी नजर रखी जा रही थी. इसके बावजूद वे ऐसा कदम उठाने में सफल रहे. इसका मतलब है कि हमने पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं और हमें यह सुनिश्चित करने के लिए और काम करने की जरूरत है कि फिर से ऐसा नहीं होगा. हमें नहीं पता कि अचानक ऐसी घटनाओं में तेजी का कारण क्या है—इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है.’

19 अप्रैल को दंत चिकित्सा विभाग की एक दलित महिला रेजीडेंट डॉक्टर ने कथित रूप से आत्महत्या का प्रयास किया था क्योंकि उसे एक वरिष्ठ चिकित्सक की तरफ से जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था.

दलित समुदाय से ही आने वाले विकास जी. के अपनी जान देने से ठीक एक महीने पहले 10 जुलाई को डॉ. अनुराग कुमार ने इमारत से कूदकर खुदकुशी करने से पहले अवसाद के साथ अपनी लड़ाई को लेकर एक ब्लॉग पोस्ट लिखा था.

एम्स की समस्याएं

दिप्रिंट ने संस्थान में कई डॉक्टरों से बात की और उन सभी ने कहा कि बेहतर प्रदर्शन का दबाव बहुत अधिक हो सकता है.

सिंह ने कहा, ‘दबाव बहुत अधिक हो सकता है क्योंकि जो कोई भी यहां आता है वह मेधावी छात्र होता है. जब आप एम्स पहुंचते हैं तो नियमित शैक्षणिक दबाव होता है, इसलिए इससे प्रभावित होना स्वाभाविक है. यदि उनमें कोई मानसिक समस्या है तो यह उनकी बीमारी को और बढ़ा सकता है.’

मनोचिकित्सा विभाग के एक वरिष्ठ निवासी ने नाम न देने की शर्त पर बताया कि यह दबाव तब और भी बढ़ जाता है यदि छात्र अल्पसंख्यक पृष्ठभूमि से हो या फिर दिल्ली का निवासी न हो.


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उन्होंने कहा, ‘जाति-आधारित भेदभाव, गलत भाषा के इस्तेमाल और यहां तक कि भाई-भतीजावाद के बारे में कई शिकायतें आई हैं लेकिन इनमें कुछ सार्थक नतीजा नहीं निकला. जो लोग बाहर से आते हैं उनकों यहां के माहौल में ढलने तक कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.’

उन्होंने कहा, ‘इन मुद्दों को व्यवस्थित तरीके से निपटाने की जरूरत है. केवल बयान जारी करना पर्याप्त नहीं है.’

पहले भी एम्स में जाति आधारित उत्पीड़न की शिकायतें और आत्महत्या की घटनाएं एक मुद्दा बनती रही हैं. ऐसे मामलों के अलावा संस्थान कथित तौर पर साल में कम से कम आत्महत्या की एक घटना का तो गवाह बनता ही है.

महामारी को देखते हुए संस्थान ने अपने डॉक्टरों के लिए एक मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन शुरू की है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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