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लॉकडाउन के बाद पब्लिक ट्रांसपोर्ट से कतराएंगे लोग, दिल्ली मेट्रो को 13% कहेंगे ‘ना’

लॉकडाउन समाप्त होने के बाद बेंगलूरु, दिल्ली और कोलकाता के 35-40 फीसदी लोग कोविड-19 संक्रमण से बचने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सवारी छोड़ने की बात कह रहे हैं.

फोटो साभार : सूरज सिंह बिष्ट/ दिप्रिंट

नई दिल्ली: लॉकडाउन के बाद भारत बदला-बदला होगा. ऑफिस आने-जाने और किसी काम से पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करने वाले देश के तीन बड़े शहरों के 35-40 फीसदी लोग लॉकडाउन के बाद कोविड-19 संक्रमण से बचने के लिए इसकी सवारी छोड़ने की बात कह रहे हैं. यात्रियों के ट्रेवल की मांग में भारी बदलाव देखने को मिलेगा.

द इनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) ने देश के मेट्रो सिटीज़ पर किए गए शोध में बताया है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट में चढ़ने वालों में अकेले दिल्ली में न केवल 13 फीसदी की कमी दर्ज होगी साथ ही सड़क पर दोपहिया वाहनों की संख्या में भी काफी इज़ाफा हो जाएगा. शोध में यह भी सामने आया है कि कोरोना के संक्रमण से बचने की चाहत रखने के बावजूद 64 फीसदी लोगों के लिए मेट्रो की यात्रा मजबूरी ही होगी.

पड़ेगा मेट्रो पर असर

सेंटर फॉर सस्टेनेबल मोबिलिटी, टेरी में परिवहन विशेषज्ञ शरीफ कमर कहते हैं,’ देश के तीन मेट्रो शहर जिनमें बैंगलूरू, कोलकाता और दिल्ली शामिल हैं वहां प्रतिदिन मेट्रो की सवारी करने वाले लोगों में गिरावट देखी जाएगी. इससे मेट्रो की आय पर असर पड़ सकता है.’

लॉकडाउन 1 और लॉकडाउन 3.0 के बीच हुए सर्वे में यह सामने आया है कि कार या दोपहिया वाहन रखने में सक्षम  लोग निजी वाहनों के इस्तेमाल पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. इससे दिल्ली सहित अन्य बड़े राज्यों की सड़कों पर परिवहन का दबाव बढ़ सकता है और वायु प्रदूषण में भी बढ़ोतरी हो सकती है.

शरीफ बताते हैं, ‘दिल्ली मेट्रो में प्रतिदिन करीब 24-25 लाख लोग सफर करते हैं उनमें जो भी पांच लाख और उससे अधिक की आय वाला व्यक्ति होगा वह अपने ट्रेवल के लिए ऑटो, टैक्सी या फिर निजी वाहन का प्रयोग करेगा. हालांकि महिला यात्रियों में यह गिरावट 3-5 फीसदी की ही होगी.’

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बता दें कि जब मेट्रो ने किराए में बढ़ोतरी की तो इससे भी उसके यात्रियों पर बड़ा असर पड़ा था और दिन के 2 से 3 लाख लोगों ने मेट्रो की सवारी छोड़ दी थी.

ट्रांसपोर्ट और सड़क में बदलाव के सुझाव

हालांकि इन सब के बीच टेरी ने सरकार को भी छह सूत्री योजना भेजी है जिसमें सड़क में किस तरह के बदलाव किए जाएं और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कैसे बदलावों की जरूरत है कि भी बात की गई है. जिसमें परिवहन सेवा के फेरे बढ़ाने, बसों की संख्या बढ़ाने से लेकर ड्राइवर और कंडक्टर के लिए केबिन की सुविधा, ई-पेमेंट जैसी सुविधाओं की बात की गई है.

जबकि मेट्रो में फेरे बढ़ाने और कोच की संख्या बढ़ाने पर भी बल दिया गया है. यही नहीं सड़क की डिजाइन में भी बदलाव की बात की गई है. जिसमें पेवमेंट, साइकिल लेन अलग करने की बात पर बल दिया गया है.

दिल्ली मेट्रो में सफर के दौरान एक युगल | फोटो- सूरज सिंह बिष्ट, दिप्रिंट

लॉकडाउन के बाद सार्वजनिक परिवहन पर असर

दिल्ली : चूंकि दिल्ली सबसे ज्यादा प्रदूषण वाला शहर है ऐसे में 13 फीसदी लोगों का अपने व्हेकिल से निकलता वातावरण के लिए भी परेशानी वाला सबब बनेगा. कोविड से पहले और बाद में किए गए शोध में पता चला है कि दिल्ली एनसीआर में काम करने वाली 16 फीसदी महिलाएं मेट्रो में सवारी नहीं करेंगी. वर्क फ्रॉम होम के आंकड़े में तेजी से बदलाव होगा और संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होगी. साथ ही अपने कर्मचारियों के लिए कंपनियां अपनी गाड़ियां मुहैया कराएंगी. ऑटोरिक्शॉ में चलने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतर होगी.

बेंगलुरू में भी शेयरिंग मोड परिवहन में लोगों की रुची घटेगी. सर्वे में यह भी पता चला है कि 50 फीसदी लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट से हटकर अपनी कार और दोपहिया वाहन की तरफ मुड़ेंगे. जबकि 25 फीसदी लोग घर से काम करेंगे और बचे हुए 25 फीसदी कार पूल इनमें से 3-5 फीसदी लोग टैक्सी और ऑटोरिक्शा को अपना ट्रेवल मोड बनाएंगे. जबकि 14 फीसदी महिलाएं ऑटो की तरफ अपना रुख करेंगी.

कोलकाता में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करने की लोगों की रुची 12 फीसदी कम होगी इसमें बस और मेट्रो दोनों शामिल है. जबकि 10 फीसदी लोग अपनी गाड़ियों से सफर करना पसंद करेंगे.

महिलाओं और युवाओं की रहेगी पसंद मेट्रो

500 लोगों पर किए गए इस शोध में हर आयु वर्ग और ट्रैवलर को शामिल किया गया है. जबकि महिला पुरुषों के अनुपात को 55: 45 का रखा गया है.

हालांकि, इन सबके बीच एक रोचक बात भी सामने आई है कि मेट्रो प्रेमी युगल की पहली पसंद फिरभी बनी रहेगी. युवाओं का कहना है कि कोरोनावायरस रहे या जाए हम तो मेट्रो में ही सवारी करेंगे.

हालांकि, इस शोध में बारीकी से जुड़े रहे शरीफ यह भी कहते हैं कि फिलहाल लोगों के मन में फिजिकल डिस्टेंसिंग का डर है जिसकी वजह से लोग भीड़-भाड़ वाली जगहों और परिवहन का इस्तेमाल करने से तो बचेंगे लेकिन चार महीने से लेकर 2 साल के भीतर ही लोग वैसे ही ट्रैवेल करेंगे जैसे लॉकडाउन से पहले करते रहे हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार को पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाना चाहिए, लोगों में विश्वास वापस लाने की जरूरत है. अगर सरकार ये करने में असफल होती है तो प्रदूषण का स्तर राज्यों में तेजी से बढ़ेगा.

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