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अकाली दल के बाद अब JD(U) कृषि विधेयकों में चाहती है बदलाव, MSP की गारंटी की मांग

जद(यू) भाजपा की दूसरा सहयोगी है जो फार्म बिल पर सरकार के खिलाफ गई है और अब बिल में वह एमएसपी से कम में किसानों से उत्पाद खरीदने वाली कंपनियों को दंडित करने वाले प्रावधान शामिल करने की मांग कर रही है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार | फोटो: एएनआई

नई दिल्ली: हाल ही में संसद में पास किए गए कृषि बिलों पर अपनी असहमिति जाहिर करने वाला जद(यू) शिरोमणि अकाली के बाद दूसरा एनडीए का घटक दल बन गया है.

जद(यू) के महासचिव केसी त्यागी ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया कि पार्टी किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी चाहती है और एक प्रावधान जो एमएसपी के नीचे किसानों के उत्पाद खरीदने पर निजी कंपनियों के लिए दंडनीय अपराध बनाता हो.

त्यागी ने कहा, ‘हमने संसद में इन बिलों का समर्थन किया है, लेकिन यह भी तथ्य है कि पुराना सहयोगी अकाली दल इन बिलों पर सरकार से अलग हो गया.’

उन्होंने कहा, ‘कई किसान संगठन एमएसपी दरों से नीचे कृषि उत्पाद खरीदने से निजी खिलड़ियों को रोकने वाले प्रावधानों में कानून या परिवर्तन की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोई भी उल्लंघन दंडनीय अपराध होना चाहिए.’

वह कहते हैं, ‘यह सवाल उठता है कि निजी खिलाड़ी किसानों का शोषण कर सकते हैं और बिल में सुरक्षा उपाय होने चाहिए. हम केवल इस बात पर जोर दे रहे हैं कि बिल को अधिक व्यावहारिक बनाया जाए.’

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त्यागी ने आगे कहा कि पार्टी चाहती है कि एमएसपी के लिए स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट लागू की जाय.

जद(यू) के महासचिव ने कहा, ‘एमएसपी की कीमत स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले पर आधारित होनी चाहिए.’ ‘सरकार कांट्रैक्ट खेती का बिल लाना चाहती है, लेकिन किसानों के मन में हमेशा संदेह रहेगा कि निजी खिलाड़ी उनका शोषण करेंगे. इस चिंता का समाधान किया जाना चाहिए.

इस मुद्दे पर जद(यू) की यह चिंता भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी, मोदी मंत्रिमंडल में एसएडी (SAD) की अकेली अकाली सदस्य हरसिमरत कौर बादल के बाहर जाने के मद्देनजर आई है.

हरसिमरत कौर ने 17 सितंबर को ‘अध्यादेशों और कानून के विरोध में’ केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था.


यह भी पढे़ं: कृषि सुधारों की सिफारिश करने वाले भाजपा के बुजुर्ग नेता ने कहा, केवल 6% ‘कुलीन’ किसान विधेयकों का विरोध कर रहे


जद(यू) ने अधिक विचार-विमर्श मांग की

जद(यू) कानून पर अधिक विचार-विमर्श के लिए भी कह चुकी है.

त्यागी ने पूछा, ‘इन विधेयकों के जरिए भंडारण, वितरण और प्रसंस्करण पर सरकारी नियंत्रण कम हो जाएगा. किसानों के लिए यह कैसे लाभदायक होगा?’ उन्होंने कहा, ‘क्या सरकार ऐसे में व्यापक स्तर पर निःशुल्क अनाज वितरित करने में सक्षम होगी जैसा कि कोविड के समय में किया गया? यह ऐसे सवाल हैं जिन पर विचार-विमर्श की जरूरत है.’

उन्होंने आगे कहा कि कृषि क्षेत्र में बिहार से सबक लिया जा सकता है जिसने खरीद प्रक्रिया में बिचौलिये को हटाने के लिए 2006 में अपनी कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) अधिनियम को निरस्त कर दिया था.

‘मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री के साथ अपने आखिरी वीडियो कॉन्फ्रेंस में विस्तार से बताया था कि कैसे बिहार ने खरीद प्रक्रिया से बिचौलियों को हटाने के लिए कदम उठाए हैं.’ त्यागी ने कहा, ‘लेकिन विरोध कई वर्गों का है. पंजाब से लेकर हरियाणा और अन्य हिस्सों से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.’

जदयू का इन विधेयकों का विरोध अक्टूबर या नवंबर में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के कारण भी है. पार्टी चुनावी साल में किसानों से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहती.

पार्टी, लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले प्रमुख विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के दबाव में भी है, जिसने 25 सितंबर को किसान बिलों के विरोध में प्रदर्शन का ऐलान किया है, इसी दिन कांग्रेस ने इसके खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन करने का फैसला किया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

1 टिप्पणी

  1. Jesa BJP wesa Hi JDU

    खजाने को वह रद्दी समझ कर बेच डालेगा
    वह चंदन को अगरबत्ती समझ कर बेच डालेगा
    और हुकूमत हमने दे दी चाय बेचने वाले को
    वह भारत को चाय की पत्ती समझ कर बेच डालेगा

    वह पागल नीम की लकड़ी को भी चंदन समझता है
    बड़ा नादान है जो दिल्ली को लंदन समझता है अरे अकबर कोई उस चाय वाले को समझाओ
    जो गरीबों की कमाई को भी काला धन समझता है

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