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26 साल बीत गए, अधिकांश आरोपी और गवाहों की मौत हो गई- माल्टा नाव त्रासदी मामला CBI अदालत में लटका

26 दिसंबर 1996 को माल्टा के पास नाव पलटने से 170 भारतीय प्रवासी डूब गए थे. CBI ने 1997 में आरोप पत्र दायर किया था, लेकिन अब तक अभियोजन पक्ष के 206 गवाहों में से केवल 11 से पूछताछ की गई है.

भूमध्य सागर पार करने वाली नाव पर शरणार्थियों की प्रतीकात्मक तस्वीर | कॉमन्स

नई दिल्ली: 26 वर्षों से, पंजाब के होशियारपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता, बलवंत सिंह खेड़ा का एक ही लक्ष्य रहा है – उन 170 भारतीयों के लिए न्याय, जो 26 दिसंबर 1996 को भूमध्य सागर में एक द्वीप देश माल्टा के पास नाव पलटने से डूब गए थे.

कुल 565 लोग – मुख्य रूप से भारतीय, पाकिस्तानी, श्रीलंकाई और बांग्लादेशी जो बेहतर जीवन की उम्मीद में यूरोप की ओर रवाना हुए थे. वे अवैध रूप से इटली में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे, जब उनमें से कई को एक छोटी नाव में स्थानांतरित कर दिया गया, जो अंततः पलट गई, जिससे 290 यात्रियों की मौत हो गई. मारे गए लोगों में अधिकतर भारतीय थे और उनमें से ज़्यादातर पंजाब के थे.

घटना के तुरंत बाद माल्टा बोट त्रासदी जांच मिशन की स्थापना करते हुए, खेड़ा ने न केवल भारत में मामले की लगातार निगरानी की, बल्कि पीड़ितों के परिवारों को कुछ राहत देने की उम्मीद में इटली की कई यात्राएं भी कीं.

लेकिन आज शायद उम्र उनका साथ नहीं दे रही है और उनकी याददाश्त कमजोर होती जा रही है.

खेड़ा अब 86 वर्ष के हैं, उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि “यह बहुत पहले हुआ था. मैं जब तक लड़ सकता था तब तक लड़ता रहा, मैं इटली गया और इटली स्थित ट्रैवल एजेंटों के लिए केवल दो वर्षों में सजा सुनिश्चित की जो इस मामले का हिस्सा थे. यहां भारत में मामला अभी भी चल रहा है.”

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पिछले हफ्ते, मछली पकड़ने वाली एक नाव पर सवार 750 प्रवासी उस समय मारे गए जब उनकी नाव ग्रीक के पानी में डूब गई. यह घटना, जिसमें बड़ी संख्या में पाकिस्तानी भी मारे गए, 1996 की माल्टा नाव त्रासदी की याद दिलाती है.

माल्टा त्रासदी के महीनों बाद, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 1997 में धोखाधड़ी, जालसाजी और मानव तस्करी के लिए भारतीय दंड संहिता और उत्प्रवास अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत 29 लोगों पर मामला दर्ज किया. एजेंसी के अनुसार, पीड़ितों ने सितंबर 1996 में दिल्ली छोड़ दी थी, जब उन्हें ट्रैवल एजेंटों ने आश्वासन दिया था कि उन्हें यूरोप के विभिन्न हिस्सों में तस्करी कर ले जाया जाएगा.

लेकिन तब से यह मामला लटका हुआ है. 2009 तक दिल्ली की किसी अदालत ने आरोप तय करने का आदेश नहीं दिया था और 2018 के बाद से मामला ‘अभियोजन साक्ष्य’ चरण पर अटका हुआ है.

मामले में अभियोजन पक्ष के 206 गवाहों में से केवल 11 – जिनमें मामले की जांच करने वाले अधिकारी और मरने वालों के परिवार के सदस्य शामिल हैं – से अब तक पूछताछ की गई है.

इस बीच, इस मामले के 29 आरोपियों में से 15 – जिन्होंने कथित तौर पर प्रवासियों को नौकरी देने का वादा किया था और उन्हें यूरोप ले जाने की कोशिश की थी, और कई गवाह – दिल्ली की सीबीआई अदालत में मुकदमा शुरू होने के बाद से मर चुके हैं.

मामले में आरोपी अवतार सिंह की ओर से पेश बचाव पक्ष की वकील विपाशा शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “आरोप तय करने में 20 साल लग गए. मुकदमा बहुत धीमी गति से चल रहा है. कई गवाह मर चुके हैं, कई आरोपी भी मर चुके हैं और बाकी बहुत बूढ़े हैं. अगर मुकदमा इसी गति से चलता रहा तो यह अगले 30 वर्षों तक भी ख़त्म नहीं होगा.”


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बाधाएं- मृत्यु और बुढ़ापा

वकील विपाशा शर्मा के अनुसार, प्रत्येक सुनवाई एक नई मौत की खबर लाती है – या तो एक आरोपी की या एक गवाह की.

यदि किसी आरोपी या गवाह की मृत्यु हो जाती है तो कानून ‘मृत्यु सत्यापन’ प्रक्रिया को अनिवार्य बनाता है. इसके तहत जांच अधिकारी (आईओ) को उस क्षेत्र के पुलिस स्टेशन को लिखना होगा जहां मृतक रहता था. फिर स्थानीय पुलिस मृतक के घर पर एक कांस्टेबल भेजेगी और आईओ को एक रिपोर्ट सौंपेगी, जो इसे अदालत में पेश करेगी.

इस प्रक्रिया के बाद ही अगले गवाह से पूछताछ की जा सकती है.

शर्मा ने कहा, “पिछली बार अदालत ने 10 से अधिक गवाहों को बुलाया था, लेकिन न्यायाधीश को सूचित किया गया कि उनमें से कुछ की मृत्यु हो गई है. हम आधे समय से केवल मृत्यु सत्यापन ही कर रहे हैं.”

उन्होंने इस तरह की देरी का एक उदाहरण दिया कि कुछ महीने पहले, जिन आरोपियों के खिलाफ गवाह का बयान दर्ज किया गया था उनमें से एक की अगली अदालत की सुनवाई के समय तक मृत्यु हो गई थी.

उन्होंने कहा, “तो, उस बयान का उद्देश्य विफल हो गया था.”

एक बार सभी 206 गवाहों की जांच हो जाने के बाद, अदालत अगले चरण में आगे बढ़ेगी – पहले अभियुक्तों के बयान दर्ज करना, और फिर बचाव पक्ष के गवाहों को सुनना.

बचाव पक्ष के एक दूसरे वकील ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ”यह कवायद अभी खत्म नहीं हुई है. यहां तक कि अगर हम 20 या 30 गवाहों (प्रत्येक आरोपी के लिए दो) की सूची भी देते हैं, तो उनकी जांच करने में कई साल लग जाएंगे. यह अगले 20 वर्षों तक भी चल सकता है.”

वह आदमी जो अकेले लड़ा

बलवंत सिंह खेड़ा, जो माल्टा नाव त्रासदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए अभियान का नेतृत्व करने वालों में से थे – ने अब शायद सभी उम्मीदें छोड़ दी हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को फोन पर बताया, “आधे अभियुक्तों की मृत्यु हो चुकी है, अन्य अब बहुत बूढ़े हो चुके हैं और मुकदमा समाप्त होने तक वे भी चले जाएंगे. मुझे नहीं लगता कि इन आरोपियों की मौत के बाद भी यह किसी नतीजे पर पहुंचेगा.”

उन्होंने कहा कि पीड़ितों के परिवार भी या तो आगे बढ़ गए हैं या मर गए हैं. “जो लोग लड़ रहे थे उनमें से अधिकतर पंजाब से आए युवाओं के माता-पिता थे और उनमें से अधिकांश की मृत्यु भी हो चुकी है… कुछ मामलों में, उनकी पत्नियां या बच्चे अभी भी आशान्वित थे, लेकिन मुकदमे की गति को देखते हुए, वे भी आगे बढ़ गए हैं.”

घटना की कुछ यादों में से एक एमबीटी त्रासदी गैलरी है जिसे खेड़ा ने बड़ी मेहनत से तैयार किया है. यहां, उन्होंने पीड़ितों की तस्वीरें और सामान रखे हैं, जो समय-समय पर उनके परिवारों से एकत्र किए गए थे.

उन्होंने कहा, “यह गैलरी, जिसे मैंने एक संग्रहालय में बदलने का सपना देखा था, अब खंडहर हो गई है. इसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है. यह अभी भी वहीं है क्योंकि मैंने इसे रखा हुआ है. मेरे चले जाने पर यह भी लुप्त हो जाएगा. मैंने वास्तव में भारत में उन युवाओं को न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की, लेकिन शायद यह पर्याप्त नहीं था.”

(संपादन: अलमिना खातून)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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