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महाराष्ट्र में हर दिन पैदा हो रहा 15 टन कोविड कचरा, बायोमेडिकल वस्तुओं को लेकर नहीं बरती जा रही गंभीरता

महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक राज्य में हर दिन करीब 15 टन कोविड कचरा पैदा हो रहा है. अप्रैल के मुकाबले मई में इस किस्म का कचरा दोगुनी मात्रा में पैदा हो रहा है.

कचरा हाथ में लिए खड़ी महिला | फोटो: शिरीष खरे

पुणे: कोरोना विषाणु के प्रसार को रोकने के लिए नागरिकों द्वारा जहां मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग बढ़ रहा है, वहीं इन वस्तुओं को उपयोग करने के बाद उत्पन्न कचरे की वृद्धि एक प्रमुख समस्या के रूप में उभर रही है.

महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक राज्य में हर दिन करीब 15 टन कोविड कचरा पैदा हो रहा है. अप्रैल के मुकाबले मई में इस किस्म का कचरा दोगुनी मात्रा में पैदा हो रहा है.

महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉक्टर अमर सुपाते बताते हैं, ‘रोगियों की बढ़ती संख्या के साथ कोविड कचरे की मात्रा बढ़ती जा रही है.’

उन्होंने कहा, ‘इस अप्रैल के पहले सप्ताह में यह मात्रा तीन टन थी. फिर, अप्रैल के तीसरे सप्ताह में यह सात टन के करीब तक बढ़ गया. अब मई में हर दिन लगभग 14.58 टन कोविड कचरे का निपटान किया जा रहा है.’

हालांकि, राज्य सरकार द्वारा इस कचरे के निपटान के लिए दिशानिर्देश पहले ही जारी किए जा चुके हैं. लेकिन, चिंता इस बात की है कि बड़ी मात्रा में इस कचरे को नागरिकों द्वारा रोजमर्रा के कामों से निकलने वाले कचरे के साथ मिलाया जा रहा है.

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केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 20 मार्च को कोविड संक्रमण के उपचार के दौरान उत्पन्न बायोमेडिकल कचरे के निपटान के लिए अलग-अलग नियम जारी किए थे. इसके बाद, इस कचरे का पृथक्करण द्वारा अलग से निपटान किया जाता है. इसके लिए राज्य में 30 स्थानों पर सुविधाएं उपलब्ध हैं.


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बरती जा रही है लापरवाही

दूसरी तरफ, नागरिक स्तर पर कचरे का अलग से निपटान नहीं किया जाता है. इसलिए, कचरे के रखरखाव और ढुलाई के दौरान कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए इस किस्म के कचरे को कवर करना अनिवार्य होता है. साथ ही, इस दौरान सुरक्षा के लिए दस्ताने और अन्य उपकरणों का भी उपयोग करना आवश्यक होता है.

डॉक्टर अमर सुपाते कहते हैं कि गैर-कोरोना संक्रमित व्यक्तियों द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं को अच्छी तरह से निपटाने की आवश्यकता है और इसके लिए पहले से ही दिशानिर्देश दिए गए हैं.

वो कहते हैं कि इस कचरे को अलग से एकत्र करने की आवश्यकता है. लेकिन, इस मामले में लापरवाही बरती जा रही है.

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सबसे ज्यादा खतरा

इधर, जैवचिकित्सीय कचरा निपटान केंद्र संघ ने इससे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को होने वाले जोखिम को देखते हुए केंद्र सरकार की स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत सुरक्षा देने की मांग की है. वहीं, संघ की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उन्हें अभी तक सरकार की तरफ से कोई आश्वासन नहीं मिला है.

दिल्ली के उदाहरण से समझें तो एम्स के ठेका कर्मचारियों को मास्क, सैनिटाइजर और दस्ताने मुहैया कराने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था.

दिल्ली एम्स ठेका मजदूर यूनियन के जनरल सेक्रेटरी मृगांक कहते हैं, ‘कचरा एकत्रित और उसका पृथक्कीकरण के दौरान मजदूरों के लिए सबसे जरूरी है कि वे कोविड संक्रमित कचरे के संपर्क में न आएं. लेकिन, देश भर के उदाहरणों से देखा जा सकता है कि इस मामले में जितनी गंभीरता बरती जानी चाहिए उतनी बरती नहीं जा रही है.’


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मुंबई जैसे महानगरों में लगभग 75 किमी. के दायरे के लिए एक बायोमेडिकल कचरा निपटान केंद्र है और इस पूरी व्यवस्था को निजीकरण के माध्यम से चलाया जा रहा है.

बता दें कि पूरे देश में लगभग 13,000 कर्मचारियों के साथ 198 निपटान केंद्र हैं.

(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)

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