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सुनिश्चित करें पिछड़े समुदायों के बेगुनाह लोगों के नाम हिस्ट्रीशीट में न आएं : न्यायालय

उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी | एएनआई
इसरो वैज्ञानिक एन. वलारमथी | ट्विटर/@DrPVVenkitakri1

नयी दिल्ली, सात मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस से यह सुनिश्चित करने को कहा कि पिछड़े समुदायों के बेगुनाह लोगों के नाम हिस्ट्रीशीट में न आयें।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवायी की और कहा कि ऐसे कुछ अध्ययन सामने आये हैं जो ‘अनुचित, पूर्वाग्रहपूर्ण और अत्याचारी’ मानसिकता का खुलासा करते हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पिछड़े समुदायों, अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले निर्दोष व्यक्तियों के नाम बिना सोचे समझे हिस्ट्रीशीट में न डाले जाएं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि हिस्ट्रीशीट एक आंतरिक सार्वजनिक दस्तावेज है, न कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रिपोर्ट। उसने कहा कि पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए कि हिस्ट्रीशीट में नाबालिग की पहचान का खुलासा न किया जाए जिसका प्रावधान कानून में है।

अदालत ने कहा, ‘‘यह आरोप लगाया गया है कि केवल जातिगत पूर्वाग्रह के आधार पर विमुक्त जातियों से संबंधित व्यक्तियों की चुनिंदा रूप से पुलिस डायरी रखी जाती हैं, जैसा कि औपनिवेशिक काल में होता था।’

उसने कहा, ‘‘इसलिए सभी राज्य सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसे समुदायों को पूर्वाग्रहपूर्ण व्यवहार से बचाने के लिए आवश्यक निवारक उपाय करें।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि ये पूर्वकल्पित धारणाएं अक्सर उन्हें उनके समुदायों से जुड़ी प्रचलित रूढ़ियों के कारण ‘अदृश्य पीड़ित’ बना देती हैं, जो अक्सर उनके आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार में बाधा डाल सकती हैं।’

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक आवधिक ऑडिट तंत्र हिस्ट्रीशीट में की गई प्रविष्टियों की समीक्षा और जांच करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के तौर पर काम करेगा। उसने कहा, ‘‘ऑडिट के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से, हम ऐसी अपमानजनक प्रथाओं का उन्मूलन सुनिश्चित कर सकते हैं और उम्मीद जगा सकते हैं कि अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीशुदा मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार अच्छी तरह से संरक्षित है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम इस तथ्य से अवगत हैं कि दिल्ली एनसीटी के अलावा अन्य राज्य या केंद्र शासित प्रदेश हमारे सामने नहीं हैं। उनकी बात नहीं सुनी गई है। इस प्रकार उन्हें कोई सकारात्मक परमादेश जारी नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, हम मौजूदा विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में प्रचलित नियम/नीतियां या स्थायी आदेशों के बारे में नहीं जानते।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, हम इस स्तर पर, सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी नीति व्यवस्था पर फिर से विचार करने और इस बात पर विचार करने के लिए निर्देशित करना उचित समझते हैं कि क्या ‘दिल्ली मॉडल’ के स्वरूप पर उपयुक्त संशोधन किए जाने की आवश्यकता है ताकि इस आदेश के पैराग्राफ 14 से 16 में हमारी टिप्पणी को सही अर्थों में प्रभावी बनाया जा सके।”

शीर्ष अदालत ने अपनी रजिस्ट्री को इस फैसले की एक प्रति सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को भेजने का निर्देश दिया ताकि वे उपरोक्त बातों पर जल्द से जल्द विचार और अनुपालन करें, लेकिन छह महीने के भीतर।’’

शीर्ष अदालत की ये टिप्पणी आप विधायक अमानतुल्ला खान की उस याचिका पर फैसले में आईं, जिसमें उन्होंने उन्हें ‘खराब चरित्र’ वाला व्यक्ति घोषित करने के दिल्ली पुलिस के फैसले को चुनौती दी थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा लिया गया निर्णय कि हिस्ट्रीशीट केवल एक आंतरिक पुलिस दस्तावेज है और इसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा, काफी हद तक चिंता का समाधान करता है।

उसने कहा, ‘‘दूसरा, अब एक पुलिस अधिकारी द्वारा यह सुनिश्चित करते हुए बरती जाने वाली अतिरिक्त सावधानी कि कानून के अनुसार एक नाबालिग की पहचान का खुलासा नहीं किया जाएगा, अपीलकर्ता की शिकायतों के समाधान के लिए एक आवश्यक कदम है। यह निश्चित रूप से इस मामले में नाबालिगों के अवांछित विवरण को रोकेगा।’’

उसने कहा, ‘‘हम दिल्ली पुलिस के आयुक्त को संयुक्त आयुक्त स्तर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को नामित करने का निर्देश भी देते हैं जो हिस्ट्रीशीट की सामग्री की समय-समय पर समीक्षा का ऑडिट करेगा और गोपनीयता सुनिश्चित करेगा और ऐसे किशोरों के नाम हटाने की छूट देगा जो जांच के दौरान निर्दोष पाए गए।”

उसने कहा कि यदि दिल्ली पुलिस के किसी अधिकारी को संशोधित स्थायी आदेश या ऊपर दिए गए निर्देशों के विपरीत काम करते हुए पाया जाता है, तो ऐसे दोषी अधिकारी के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जाएगी।

उच्च न्यायालय ने पिछले साल 19 जनवरी को खान को ‘खराब चरित्र’ घोषित करने के दिल्ली पुलिस के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी। उसने हालांकि, खान को इसकी स्वतंत्रता दी थी कि वह खराब चरित्र का ‘टैग’ हटवाने के लिए संबंधित अधिकारियों के समक्ष अभ्यावेदन दे सकते हैं।

दिल्ली पुलिस ने ओखला से आम आदमी पार्टी के विधायक खान को पिछले साल ‘खराब चरित्र’ वाला घोषित किया था।

भाषा अमित नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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