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बिल्कीस बानो की याचिका पर सुनवाई के लिए जल्द पीठ गठित करने का आग्रह खारिज

नयी दिल्ली, 14 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बिल्कीस बानो की उस याचिका पर सुनवाई करने के लिए नयी पीठ का जल्द गठन करने के अनुरोध को बुधवार को खारिज कर दिया, जिसमें उससे (बिल्कीस से) सामूहिक दुष्कर्म के मामले में गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों की सजा माफ करने को चुनौती दी गयी है।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ से बानो की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने अनुरोध किया कि मामले पर सुनवाई के लिए एक अन्य पीठ का गठन किए जाने की आवश्यकता है।

सीजेआई ने कहा, ‘‘रिट याचिका को सूचीबद्ध किया जाएगा। कृपया एक ही चीज का जिक्र बार-बार मत करिए। यह बेहद चिढ़ पैदा वाली बात है। ’’

अधिवक्ता ने कहा कि याचिका मंगलवार के लिए सूचीबद्ध थी, लेकिन इस पर सुनवाई नहीं की गई।

सीजेआई ने कहा कि इसे सूचीबद्ध किया जाएगा।

उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बेला एम. त्रिवेदी ने मंगलवार को बानो द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया था।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अगुवाई वाली पीठ ने आदेश दिया था, ‘‘यह मामला एक ऐसी पीठ के समक्ष रखा जाए, जिसमें हम में से एक न्यायाधीश शामिल नहीं हो।’’ हालांकि, उन्होंने न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी के सुनवाई से खुद को अलग करने के पीछे किसी कारण का उल्लेख नहीं किया।

सीजेआई को अब बानो के मामले की सुनवाई के लिए एक नयी पीठ का गठन करना होगा जिसमें न्यायमूर्ति त्रिवेदी शामिल न हो।

बानो ने उच्चतम न्यायालय एक और याचिका दायर की है जिसमें उसने 11 दोषियों की सजा माफ करने की अर्जी पर गुजरात सरकार से विचार करने के लिए कहने संबंधी आदेश की समीक्षा का अनुरोध किया है।

समीक्षा याचिका को भी मंगलवार को न्यायमूर्ति रस्तोगी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ के समक्ष विचार के लिए पेश किया गया था। समीक्षा याचिका पर आदेश अभी अपलोड नहीं किया गया है।

शीर्ष न्यायालय दोषियों की रिहाई के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाउल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की जनहित याचिकाओं पर पहले से ही सुनवाई कर रहा है।

गुजरात सरकार ने मामले में सभी 11 दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें इस साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया था।

बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। घटना के वक्त बानो की उम्र 21 साल थी और वह पांच महीने की गर्भवती थी।

मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी और उच्चतम न्यायालय ने मुकदमे की सुनवाई महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित की थी।

मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी। बाद में बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने भी उनकी सजा बरकरार रखी थी।

मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोग 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से रिहा हुए थे। गुजरात सरकार ने राज्य की सजा माफी नीति के तहत इन दोषियों को रिहा करने की अनुमति दी थी।

भाषा

गोला पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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