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तमिलनाडू आर. के. नगर उपचुनाव: दिनाकरण की जीत ने बढ़ाईं भाजपा की दुविधाएं

आर.के. नगर से शशिकला के भतीजे की जीत के बाद भाजपा के लिए समीकरणों को साधना चुनौतीपूर्ण. 2019 के मद्देनजर तमिलनाडू भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण.

2019 के महा-मुकाबले में विजेता बनने की ख्वाहिश रखने वाली भाजपा को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपना रुख तय करने के लिए एक और शशिकला की विरासत से सामना करना पड़ेगा, तो दूसरी ओर आर.के. नगर सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे ने तमिलनाडु की राजनीति को ऐसी दिशा में मोड़ दिया है कि भाजपा को इस राज्य के लिए अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ेगा. मुकाबला-2019 के लिए उसकी तैयारियों के मद्देनजर यह राज्य काफी महत्व रखता है.

टी.टी.वी. दिनाकरण की जीत का संदेश यही है कि अन्नाद्रमुक की सुप्रीमो रहीं जयललिता के उत्तराधिकार का विवाद अभी शांत नहीं हुआ है. इससे यह तो निश्चित हो ही गया है कि शशिकला विरोधी ताकतों को अन्नाद्रमुक के बैनर तले एकजुट करके उनकी राजनीतिक पूंजी पर दावा करने के भाजपा के इरादों को झटका लगा है.

आर.के.नगर उपचुनाव का परिणाम अन्नाद्रमुक जैसी व्यक्ति केंद्रित पार्टी में सत्ता के समीकरण को बदल देगा और वहां दिनाकरण को ज्यादा समर्थन मिल सकता है, खासकर इसलिए कि उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार मधुसूदनन को हराया है.

भाजपा के चतुर राजनीतिक रणनीतिकारों को संभवतः इसका पूर्वाभास हो गया था. शायद इसीलिए उन्होंने तमिलनाडु की राजनीति की एक और बड़ी ताकत द्रमुक से पींगें बढ़ाने की पहल कर दी. इसके तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्रमुक सुप्रीमो एम. करुणानिधि से मुलाकात की. भाजपा ने इसके कार्यकारी अध्यक्ष एम.के. स्टालिन से भी मेलजोल बनाए रखा है, हालांकि पिछले कुछ चुनावों में द्रमुक ने कांग्रेस के साथ रहना ही पसंद किया.

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लेकिन 2जी घोटाले में ए. राजा और करुणानिधि की बेटी कनिमोई को बरी किए जाने के अदालती फैसले से पूरा मामला और उलझ गया है. भाजपा 2जी घोटाले के खिलाफ जोरदार अभियान चला चुकी है और यूपीए सरकार को कठघरे में खड़ा कर चुकी है. अब अदालत के इस फैसले ने द्रमुक को नैतिक जीत का दावा करने का मौका दे दिया है. अब अगर केंद्र सरकार इस फैसले के खिलाफ ऊंची अदालत में अपील करने या दूसरे उपाय करने का कदम उठाती है तो द्रमुक को रिझाने की भाजपा की राजनीतिक कोशिशों को झटका लगेगा.

अपनी 39 लोकसभा सीटों के कारण तमिलनाडु पिछले दो दशकों से केंद्र में सरकार गठन में अहम भूमिका निभाता रहा है. 2014 एक अपवाद था, जब भाजपा पहली बार अकेले ही पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल रही थी. इस बार उसने सभी प्रमुख राज्यों में अपनी सीटों की संख्या अधिकतम पर पहुंचा दी थी. इस लोकसभा में उसने पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों से कुछ ज्यादा सीटें हासिल की. उसे अगर उन राज्यों में, जहां वह ताकतवर है, थोड़ी भी कम सीटें मिलतीं तो पार्टी के भीतर तथा बाहर भी उसके लिए हालात जटिल हो जाते. इसलिए, अब अग्रणी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में भाजपा को किसी भी हाल में तमिलनाडु में विजयी पक्ष के रूप में उभरना होगा.

लेकिन इसके लिए मुश्किल यह होगी कि उसे भ्रष्टाचार विरोधी अपने तेवर को भी संभालना पड़ेगा. 2014 के चुनाव के बाद से इस मुद्दे पर उसने एक जैसा रुख बनाए रखा है. वास्तव में, इसी वजह से वह नीतीश कुमार को लालू यादव से अलग कर पाई और बिहार में विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद सत्ता में वापसी कर पाई.

आर.के. नगर चुनाव के बाद, शशिकला के मामले में अपना रुख बदले बिना अन्नाद्रमुक के साथ मेलजोल करना भाजपा के लिए मुश्किल ही होगा. इसी तरह, भविष्य में 2जी मामलों पर अपना तेवर बदले बिना द्रमुक के साथ तालमेल कर पाना भी उसके लिए एक चुनौती होगी. इस बीच तमिलनाडु में जाति केंद्रित उप-क्षेत्रीय दलों की संख्या बढ़ने से वहां की राजनीति में शक्तियों का बिखराव हुआ है. इसी के साथ, रजनीकांत तथा कमल हासन सरीखे सुपरस्टारों ने वहां की राजनीतिक गहराइयों का जिस तरह स्वतंत्र रूप से अंदाजा लगाने की पहल की है, उस पर भी गौर करें तो लगेगा कि कुल मिलाकर वहां एक नई खिचड़ी ही पक रही है.

जो भी हो, इतना तो साफ है कि तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों ने राज्य के राजनीतिक खिलाड़ियों को 2019 के चुनावों से पहले ही अपनी क्षमता से भी ज्यादा दावे करने का मौका प्रदान कर दिया है, जैसा कि वे 2014 में नहीं कर पाए थे.

प्रणब धल सामंता दिप्रिंट के एडिटर हैं.

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