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‘चीनी दमन’ से दुनिया को अवगत कराना चाहती हूं: तिब्बती लड़की

उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी | एएनआई
इसरो वैज्ञानिक एन. वलारमथी | ट्विटर/@DrPVVenkitakri1

(मानस प्रतिम भुइयां)

धर्मशाला, 28 अप्रैल (भाषा) महज 15 साल की उम्र में ‘स्वतंत्र तिब्बत’ की मांग को लेकर चीन में जेल जा चुकी एक तिब्बती लड़की ने कहा है कि वह ‘चीनी दमन’ से दुनिया को अवगत कराना चाहती है।

दलाई लामा के चित्रों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने और तिब्बत को ‘स्वतंत्र’ करने की मांग के कारण तिब्बती लड़की नामकी और उसकी बहन को चीनी अधिकारियों ने तिब्बती काउंटी नगाबा में 21 अक्टूबर, 2015 को पकड़ लिया और उन्हें तीन साल के लिए जेल में बंद कर दिया। तब नामकी की उम्र केवल 15 साल थी।

नामकी ने बताया कि तिब्बत में ‘चीनी दमन’ के बारे में दुनिया भर के लोगों को जागरूक करने के अपने ‘दृढ़’ संकल्प के साथ 10 दिनों की कठिन पैदल यात्रा के बाद नेपाल में प्रवेश करने के कुछ सप्ताह बाद पिछले साल जून में वह भारत पहुंचीं।

नामकी अब 24 साल की हो चुकी हैं और फिलहाल हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार द्वारा संचालित एक शैक्षणिक संस्थान ‘शेरब गैटसेल लिंग’ की छात्रा हैं।

उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘चीनी सरकार तिब्बत के बारे में पूरी दुनिया को जो दिखा रही है वह हकीकत के बिल्कुल उलट है। तिब्बती लोग बढ़ते भय और दमन के तहत जी रहे हैं।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि चीन तिब्बत की पहचान को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।

तिब्बती कार्यकर्ता चीन पर धार्मिक स्वतंत्रता से इनकार करने और तिब्बत की सांस्कृतिक विरासत और पहचान को खत्म करने की कोशिश करने का आरोप लगाते रहे हैं। बीजिंग आरोपों को खारिज करता रहा है।

नामकी ने कहा, ‘‘मैं दुनिया को बताना चाहती हूं कि तिब्बत में क्या हो रहा है। मैं तिब्बती लोगों की आवाज बनकर दुनिया को उनके दर्द एवं पीड़ा तथा चीनी दमन के बारे में बताना चाहती हूं।’’

चारो गांव के एक विशिष्ट खानाबदोश परिवार में जन्मीं नामकी ने नगाबा के एक प्रमुख इलाके में ‘स्वतंत्र तिब्बत’ का आह्वान करने और दलाई लामा की तिब्बत में शीघ्र वापसी की मांग को लेकर प्रदर्शन करने के बाद उसे और उसकी बहन तेनजिन डोलमा को हिरासत में लिये जाने की उस घटना की याद को साझा किया।

उन्होंने 21 अक्टूबर, 2015 के विरोध प्रदर्शन के बारे में कहा, ‘‘हमारे मार्च को 10 मिनट से ज्यादा नहीं हुए थे कि चार. पांच पुलिस अधिकारी आए और हमारे हाथों से (दलाई लामा की) तस्वीरें छीन लीं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने तस्वीरें अपने हाथ से नहीं जाने दीं और पुलिस की कार्रवाई का विरोध किया। आखिरकार, पुलिस ने हमें खींचकर सड़क पर गिरा दिया और चुप रहने के लिए कहा। लेकिन हमने लगातार नारे लगाए।’’

नामकी ने कहा, ‘‘इसके बाद उन्होंने हमारे हाथों में हथकड़ी लगा दी और पुलिस के वाहन में डाल दिया। हमें नगाबा काउंटी के हिरासत केंद्र में ले गए। फिर वे हमें बरकम शहर के दूसरे हिरासत केंद्र में ले गए। मुझे और मेरी बहन को गंभीर यातनाएं दी गईं।’’

उन्होंने कहा कि दोनों बहनों से एक छोटे से कमरे में पूछताछ की गई जहां अत्यधिक गर्मी उत्पन्न करने के लिए हीटर चालू किया गया था। दोनों से अलग-अलग पूछताछकर्ताओं ने विभिन्न सवाल पूछे जैसे कि हमें विरोध प्रदर्शन करने के लिए किसने उकसाया, हमें दलाई लामा के चित्र कहां से मिले आदि।

उन्होंने कहा, ‘‘मानसिक और शारीरिक यातना के बावजूद, हमने केवल इतना जवाब दिया कि हम दोनों ने स्वतंत्र रूप से विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया और किसी ने हमें उकसाया नहीं। हमने यह भी कहा कि हमारे परिवार के सदस्यों को इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था।’’

नामकी ने कहा कि गिरफ्तारी के लगभग एक साल बाद सुनवाई शुरू हुई। उन्होंने कहा कि सुनवाई शुरू होने के दिन अपनी गिरफ्तारी के बाद पहली बार उन्होंने अपनी बहन को देखा, लेकिन अदालत ने दोनों को जेल भेज दिया।

उन्होंने कहा कि तीन महीने जेल में रहने के बाद उन्होंने एक श्रमिक शिविर में काम किया जहां तांबे के तारों का उत्पादन किया जाता था और उनकी बहन ने पहले सिगरेट के डिब्बे बनाए। इसके बाद दोनों बहनों को एक कलाई-घड़ी बनाने निर्माण शिविर में स्थानांतरित कर दिया गया।

उन्होंने कहा कि 21 अक्टूबर 2018 को दोनों बहनों को सजा पूरी करने के बाद जेल से रिहा कर दिया गया।

नामकी ने आरोप लगाया कि चीनी अधिकारियों ने उनके और उनकी बहन के प्रदर्शन के मद्देनजर उनके परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों को ‘परेशान’ किया।

उन्होंने कहा कि 13 मई, 2023 को उन्होंने बिना किसी को बताए अपनी चाची त्सेरिंग की के साथ पलायन करने के मकसद से यात्रा शुरू की और सबसे पहले एक सीमा को पार कर नेपाल पहुंचीं।

नामकी ने कहा कि वह पिछले साल 28 जून को धर्मशाला पहुंचीं थीं। भारत में करीब 10 महीने रहने के बाद अब उन्हें चिंता सता रही है कि वहां उनके परिवार को निशाना बनाया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘तिब्बत में लोग दयनीय स्थिति में रह रहे हैं। मैं दुनिया के सामने उनकी आवाज बनना चाहती हूं। मैं विभिन्न देशों का दौरा करना चाहती हूं और प्रचार करना चाहती हूं और उन्हें बताना चाहती हूं कि तिब्बत में क्या चल रहा है।’’

1959 में एक असफल चीन विरोधी विद्रोह के बाद 14वें दलाई लामा तिब्बत से भागकर भारत आ गए थे जहां उन्होंने निर्वासित सरकार की स्थापना की।

चीनी सरकार के अधिकारियों और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधि के बीच 2010 के बाद से कोई औपचारिक वार्ता नहीं हुई है। बीजिंग कहता रहा है कि उसने तिब्बत में क्रूर धर्मतंत्र से ‘मजदूरों और दासों’ को मुक्त कराया और इस क्षेत्र को समृद्धि और आधुनिकीकरण के रास्ते पर ले गया।

चीन ने अतीत में दलाई लामा पर तिब्बत को विभाजित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।

भाषा संतोष नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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