नयी दिल्ली, आठ मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने देश में ‘डीपफेक’ प्रौद्योगिकी का नियमन नहीं किये जाने के खिलाफ वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा की एक जनहित याचिका पर बुधवार को केंद्र से जवाब मांगा।
शर्मा ने इस तरह की सामग्री बना सकने वाले ऐप्लीकेशन (ऐप) और सॉफ्टवेयर की लोगों को उपलब्धतता निषिद्ध करने के लिए भी अदालत से निर्देश देने का आग्रह किया है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी एस अरोड़ा ने याचिका पर केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को नोटिस जारी किया है।
तस्वीर या वीडियो में किसी व्यक्ति के चेहरे या शरीर को डिजिटल रूप से बदलने की तकनीक को ‘डीपफेक’ कहते हैं। ‘मशीन लर्निंग’ और कृत्रिम मेधा (एआई) से बने ये वीडियो और तस्वीरें असली जैसी नजर आती हैं और कोई भी व्यक्ति इन्हें देखकर धोखा खा सकता है।
पीठ ने कहा कि यह एक बड़ी समस्या है और केंद्र सरकार से जानना चाहा कि क्या यह मुद्दे पर कार्रवाई करने को इच्छुक है।
अदालत ने कहा, ‘‘राजनीतिक दल भी इस बारे में शिकायतें कर रहे हैं। आप कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं…।’’
इंडीपेंडेंट न्यूज सर्विज प्राइवेट लिमिटेड (इंडिया टीवी) के अध्यक्ष एवं प्रधान संपादक रजत शर्मा ने जनहित याचिका में कहा है कि ‘डीपफेक’ प्रौद्योगिकी का प्रसार समाज को गंभीर खतरा पैदा करता है। याचिका में कहा गया है कि इसके जरिये गलत सूचना का प्रसार किया जाता है और यह सार्वजनिक विमर्श एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा को कमतर करता है।
याचिका में कहा गया है कि धोखाधड़ी, पहचान चुराने और ब्लैकमेल करने, व्यक्ति की प्रतिष्ठा, निजता एवं सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने, मीडिया व सार्वजनिक संस्थाओं में विश्वास घटाने और बौद्धिक संपदा अधिकार एवं निजता का अधिकार के हनन में इस प्रौद्योगिकी का संभावित दुरूपयोग होने का खतरा है।
याचिका में कहा गया है कि इन खतरों के मद्देनजर, इस प्रौद्योगिकी के दुरूपयोग से जुड़े संभावित नुकसान में कमी लाने के लिए सख्ती एवं सक्रियता से कार्रवाई करने की जरूरत है।
याचिका में कहा गया है कि ‘डीपफेक’ प्रौद्योगिकी के दुरूपयोग के खिलाफ उपयुक्त नियमन एवं सुरक्षा का अभाव देश के संविधान के तहत प्रदत्त मूल अधिकारियों को गंभीर खतरा पैदा करता है। इन अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता का अधिकार और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार शामिल है।
इसमें कहा गया है कि सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह एक ऐसा नियामक ढांचा तैयार करे जो ‘डीपफेक’ और कृत्रिम मेधा सामग्री को वर्गीकृत करे और दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए उन्हें बनाये जाने, उनके वितरण एवं प्रसार को निषिद्ध करे।
भाषा सुभाष पवनेश
पवनेश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.