होम देश इतिहास लेखन में पेशेवर, साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण अपनाना जरूरी: रोमिला थापर

इतिहास लेखन में पेशेवर, साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण अपनाना जरूरी: रोमिला थापर

(जीवन प्रकाश शर्मा)

नयी दिल्ली, 15 जनवरी (भाषा) इतिहासकार रोमिला थापर ने इतिहास लिखते वक्त पेशेवर और साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा है इतिहास लेखन धर्म के आधार पर उत्पीड़न के बारे में अप्रशिक्षित इतिहासकारों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए।

थापर ने शनिवार को यहां ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ में ‘‘ऑवर हिस्ट्री, योअर हिस्ट्री, हूज हिस्ट्री’’ विषय पर एक वार्षिक व्याख्यान देते हुए राष्ट्रवाद के साथ इतिहास के संबंध पर ध्यान केंद्रित किया और उत्पीड़न के नजरिये को नकारने के लिए विभिन्न ऐतिहासिक साक्ष्यों का हवाला दिया।

उन्होंने तर्क दिया कि पहले के दिनों में कोई ‘‘लव जिहाद’’ नहीं था और राजनीति के अलावा, वैवाहिक गठजोड़ का उद्देश्य सामाजिक मेल मिलाप को मजबूत करना था।

‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा मुस्लिम पुरुषों पर शादी का झांसा देकर हिंदू महिलाओं का धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाने के लिए किया जाता है।

थापर ने प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार एरिक हॉब्सबॉम को उद्धृत करते हुए अपना व्याख्यान शुरू किया कि राष्ट्रवाद के लिए इतिहास वैसा ही है, जैसे एक हेरोइन के आदी व्यक्ति के लिए अफीम है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद का लक्ष्य स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देखे गए सपने के अनुरूप एक राष्ट्र का निर्माण करना है, जहां नागरिक उपनिवेशवाद से मुक्त हों।

थापर ने दलील दी कि पृथक राष्ट्रवाद का उद्देश्य उस समूह को प्राथमिक दर्जा देना है जो बहुमत में आता है और प्राचीन इतिहास से संबंध का दावा करके इसे वैध ठहराया जाता है । यह पेशेवर इतिहासकारों और अप्रशिक्षित इतिहासकारों के बीच टकराव का कारण बनता है।

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स मिल ने 1817 में इस देश का पहला आधुनिक इतिहास ‘‘द हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया’’ लिखा था – उनका कहना था कि भारतीय इतिहास दो राष्ट्रों का था , हिंदुओं और मुसलमानों का, एक दूसरे से पूरी तरह जुदा और एक दूसरे के साथ लगातार संघर्षरत ।

थापर ने कहा, ‘‘भारतीय इतिहास को दो काल में विभक्त किया गया था- शुरुआती हिंदू काल, जब हिंदू धर्म शक्तिशाली था और उसके बाद इस्लामी शासकों के वर्चस्व का काल। इस कालक्रम ने भारतीय इतिहास की व्याख्या को गहरे तक प्रभावित किया, यद्यपि इसे अब पेशेवर इतिहासकारों द्वारा खारिज कर दिया गया है, ।’’

उन्होंने कहा, ‘‘धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्रवाद ने केवल स्वतंत्रता के लिए आंदोलन पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि दो धार्मिक राष्ट्रवाद – मुस्लिम और हिंदू – ने देश को आपस में बांट लिया। मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाया और हिंदू, एक हिंदू राष्ट्र की ओर बढ़ रहे हैं। औपनिवेशिक इरादा सफल हो रहा है।’’

उन्होंने कहा कि पेशेवर इतिहासकारों द्वारा ऐतिहासिक स्रोतों पर शोध अलग तरह से किया जाता है और वे औपनिवेशिक इतिहासकारों के दृष्टिकोण को फिर से जीवंत नहीं करते।

थापर ने कहा, ‘‘मुगल अर्थव्यवस्था वजीर राजा टोडरमल के भरोसेमंद हाथों में थी, जबकि आमेर के राजा मान सिंह ने हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना की कमान संभाली थी। उन्होंने एक और राजपूत – महाराणा प्रताप को हराया – जो मुगलों के विरोधी थे। प्रताप की सेना में अफगान सैनिकों की सबसे बड़ी टुकड़ी थी जिसकी कमान शेरशाह सूरी के वशंज हकीम खान सूरी के हाथों में थी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी पूछ सकता है कि क्या लड़ाई पक्के तौर पर हिंदू-मुस्लिम टकराव थी। एक जटिल राजनीतिक संघर्ष में दोनों धार्मिक पहचानों के लोग प्रत्येक पक्ष से भागीदार थे।’’

राजनीति की पेचीदगियों से परे जाकर, उन्होंने उन विवाह संबंधों पर भी प्रकाश डाला, जिनका उद्देश्य सामाजिक मेलजोल को मजबूत करना था।

उन्होंने कहा कि फर्जी समाचार अत्यधिक समस्याएं पैदा कर रहे हैं। उन्होंने दलील दी की कि विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास विश्वसनीय साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए।

भाषा

देवेंद्र सुरेश नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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