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UP के इस गांव में कोविड से एक के बाद हुईं 25 और मौतें, लेकिन ख़ामोश है ऑफिशियल डेटा

शाहजहांपुर में काम कर रहे डॉक्टरों का कहना है, कि गांववासी टेस्ट कराने में झिझकते हैं, हालांकि गांव वाले इससे इनकार करते हैं. स्थानीय अधिकारी भी मानते हैं, कि टेस्ट रिपोर्ट्स देरी से आती हैं.

शाहजहांपुर कस्बे में कब्रगाह में नई बनी कब्रें । उर्जिता भारद्वाज । दिप्रिंट

मेरठ: पिछले महीने तक, उत्तर प्रदेश में पठानों के एक क़स्बे के लिए, कोविड-19 एक दूर की बात थी. पहला झटका उसे तब लगा, जब 8 अप्रैल को 46 वर्षीय आसिम ख़ान की मौत हो गई, जो पांच दिन पहले दिल्ली से अपने क़स्बे में लौटकर आया था.

आसिम को तेज़ बुख़ार, खांसी, बदन दर्द, और सांस फूलने की शिकायत थी, जो सब कोविड-19 के लक्षण हैं. 6 अप्रैल को उसकी तबीयत बिगड़ गई, और उसे 25 किलोमीटर दूर, मेरठ शहर के आनंद अस्पताल में भर्ती कराया गया. उसकी कोविड टेस्ट रिपोर्ट, जिसमें संक्रमण की पुष्टि हुई, उसकी मौत के अगले दिन आई. यहां के निवासियों का कहना है, कि उसके बाद से क़स्बे में 25 से अधिक मौतें हो चुकी हैं, जहां हर कोई एक दूसरे का रिश्तेदार है.

यहां के एक निवासी शानू ख़ान ने कहा, ‘ये सब आसिम ख़ान के साथ शुरू हुआ. वो बीमार होकर घर आया था. उसके बाद, एक और आदमी- शुजात मंद ख़ान, 57- की कोविड (उसका टेस्ट पॉज़िटिव था) से अस्पताल में मौत हुई. उसके बाद से गांव में क़रीब 25 मौतें हो चुकी हैं. बाक़ी जो लोग मरे, उनके टेस्ट नहीं हुए थे’.

दो घरों की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने कहा: ‘मुशाहिदा ख़ान की मौत एक हफ्ता पहले हुई, उन्हें गंभीर लक्षण थे. दो-तीन दिन बाद मुमताज़ बेगम की भी, सांस फूलने से मौत हो गई’.

क़स्बे में हाल ही में आई मौतों की बाढ़ का अंदाज़ा, छोटे-छोटे क़ब्रिस्तानों में बनी ताज़ा क़ब्रों को देख कर होता है, जो गांव के लगभग हर चौराहे पर देखे जा सकते हैं. लेकिन, बहुत से मामलों में, टेस्ट न कराने का मतलब था, कि वो कोविड मौतों के तौर पर दर्ज नहीं हुईं.

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शाहजहांपुर में काम कर रहे डॉक्टरों का कहना है, कि गांववासी टेस्ट कराने में झिझकते हैं- उन पर ये डर सवार रहता है, कि पॉज़िटिव रिपोर्ट उन्हें अस्पतालों में पहुंचा देगी, जिसे वो ‘सज़ाए मौत’ समझते हैं. उनका कहना है कि इस कारण से, कोविड के लक्षण होने पर बहुत से परिवार, अपने मरीज़ का घर पर इलाज कराना पसंद करते हैं.

लेकिन क़स्बे के निवासियों के साथ बातचीत में, एक अलग कहानी निकलकर आती है. उनका कहना है कि स्वास्थ्य अधिकारी, पर्याप्त संख्या में टेस्ट नहीं करा रहे हैं. उनका ये भी दावा है कि टेस्ट अक्सर बेकार साबित होते हैं, क्योंकि रिपोर्ट आने में 4-6 दिन तक लग जाते हैं, जब तक कुछ मरीज़ तो मर ही चुके होते हैं.

स्थानीय अधिकारी इस आरोप को स्वीकार करते हैं, कि रिपोर्ट्स में देरी हो रही है. उनका कहना था कि ये गंभीर चिंता का विषय है, और संक्रमण में आई उछाल के पीछे, वो ज़िले की सीमित टेस्टिंग क्षमता का हवाला देते हैं.

कुल मिलाकर, इन घटकों ने मेरठ से आ रही मौतों की संख्या पर, सवालिया निशान लगा दिया है, जहां अप्रैल में 65 कोविड मौतें दर्ज की गई हैं.

शव को नहलाना

2011 की जनगणना के अनुसार, शाहजहांपुर, जिसका नाम मुग़ल सम्राट शाहजहां के नाम पर पड़ा, की आबादी 17,000 से अधिक है जिसमें 80 प्रतिशत लोग मुसलमान हैं. कहा जाता है कि 60 प्रतिशत मुसलमान, पठानों के उसी ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते हैं, जो उपरोक्त क़स्बे में रहता है, जिसका अलग से कोई नाम नहीं है.

क़स्बे में इस बात पर तक़रीबन आमराय लगती है, कि आसिम ‘ज़ीरो मरीज़’ था, और इस इलाक़े में संक्रमित होने वाला पहला शख़्स था. उनका कहना है कि इनफेक्शन इसलिए फैला, क्योंकि उसके परिवार ने उस प्रोटोकोल का पालन नहीं किया, जो किसी कोविड मरीज़ के शव को, हैण्डल करने के लिए तय किया गया है.

कोविड-19 से मरने वाले लोगों के शवों को, एक लीक-प्रूफ बॉडी बैग में रखना होता है, ताकि उसके आसपास के लोगों के, संक्रमित होने के जोखिम को कम किया जा सके. शवों के नहलाने की, जिसका बहुत से समुदायों में रिवाज है, अनुमति नहीं है और शव के साथ, किसी भी तरह के शारीरिक संपर्क की भी मनाही है. अंतिम क्रिया कर रहे परिवार के सदस्यों, और शवों को हैण्डल कर रहे वर्कर्स को, पीपीई किट पहने होना चाहिए.

बहुत से स्थानीय निवासियों के मुताबिक़, आसिम के शव को बॉडी बैग से निकाला गया, और दफ्नाने से पहले उसे नहलाया गया था.

45 वर्षीय नसीम ख़ान ने कहा, ‘आसिम भाई के परिवार के सदस्यों ने, बॉडी बैग को खोलकर उन्हें ग़ुस्ल दिया था. उन्होंने मास्क और ग्लव्ज़ पहने हुए थे, लेकिन वायरस को इस तरह नहीं रोका जा सकता’. उन्होंने आगे कहा, ‘उसके बाद से इस पूरे रमज़ान, हमने सिर्फ मुर्दा जिस्म देखे हैं, वो लोग जिनकी मौत कोविड से हुई है’.

43 वर्षीय शोएब ख़ान ने बताया कि शव को, इस्लामी रीति रिवाज के हिसाब से नहलाया गया था. शोएब ने आगे कहा, ‘उसके बाद से, लोग कोविड से मरे हैं, जिन्हें सांस फूलने और बुख़ार वग़ैरह की शिकायत थी’. उन्होंने कहा, ‘अब तक़रीबन हर घर में एक मरीज़ है, जिसे बुख़ार और खांसी है. दिनभर, वो ऑक्सीजन सिलिंडर की तलाश में रहते हैं’.

डॉ मोहम्मद यूसुफ ख़ान, जिनके पास यूनानी मेडिसिन एंड सर्जरी में बेचलर डिग्री है, और जो शाहजहांपुर में एक क्लीनिक चलाते हैं, ने कहा कि आसिफ की मौत के बाद उसकी बीवी, बीवी के भाई ज़ाकिर की बीवी, और आसिम की 14 साल की बड़ी बेटी के, कोविड-19 टेस्ट पॉज़िटिव पाए गए. उन्होंने आगे कहा, ‘ज़ाकिर का कोविड-19 टेस्ट बाद में पॉज़िटिव आया. अब वो ठीक हो गए हैं’.

डॉ ख़ान ने कहा कि दूसरी पुष्ट कोविड मौत शुजात ख़ान के भाई, तालेमन ख़ान का टेस्ट पॉज़िटिव आया, और अब वो मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘उनके बाक़ी परिवार, जिसमें उनकी पत्नी और बेटा शामिल हैं, का टेस्ट निगेटिव निकला, लेकिन वो क्वारंटीन में थे’.

दिप्रिंट से बात करते हुए, ज़ाकिर ने इस बात से इनकार किया, कि उसने अपने बहनोई के बॉडी बैग को खोलकर, शव को ग़ुस्ल दिया था, और इससे भी इनकार किया, कि उसके और परिवार के दूसरे सदस्यों के टेस्ट पॉज़िटिव आए थे, लेकिन बाद में स्थानीय निवासियों के मनाने पर, उसने इस बात को मान लिया.


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इनकार में जी रहे हैं

डॉ ख़ान ने कहा कि क़स्बे के सभी बाशिंदे डरे हुए हैं. ख़ान के मुताबिक़ यहां के पठान ‘इनकार में जी रहे हैं’, और उन्हें ज़बर्दस्ती टेस्ट कराने के लिए राज़ी करना पड़ता है.

डॉ ख़ान ने कहा, ‘यहां पर लोग हर रोज़ मर रहे हैं. वो बस टेस्ट कराना ही नहीं चाहते. हमें उन्हें मजबूर करना पड़ता है, उनपर दबाव डालना पड़ता है. आसिम की मौत के बाद वो सब हिल गए हैं, और उन्हें लगता है कि अगर उनके टेस्ट पॉज़िटिव आ गए, तो उन्हें भी अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा. यहां लोगों को लगता है कि अस्पताल जाने से मौत होती है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मछरा ब्लॉक का जन स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), हर दूसरे दिन गांवों में टीमें भेजता है, लेकिन टेस्टिंग कम होती है, क्योंकि ‘पठान लोग सहयोग ही नहीं करते’.

मछरा ब्लॉक पीएचसी को चलाने वाले, डॉ आलोक नायक भी उनसे सहमत थे. उन्होंने कहा, ‘यहां पर लोग सहयोग करने से मना कर देते हैं. डॉ ख़ान नियमित रूप से उन्हें समझाते रहते हैं, कि टेस्ट कराना क्यों ज़रूरी है, लेकिन वो नहीं सुनते. हमारी टीमें नियमित रूप से वहां जाती हैं’.

नायक ने आगे कहा, ‘शाहजहांपुर में बहुत तादाद में सक्रिय मामले हैं. 14 अप्रैल के बाद से, 25 लोगों के टेस्ट पॉज़िटिव निकल चुके हैं, और ये संख्या सिर्फ उन लोगों की है, जिन्हें हम राज़ी कर पाए’. उन्होंने कहा, ‘ज़्यादातर मामले पठान परिवारों से हैं. कुछ लोगों कहते हैं कि उन्हें कोविड-19 जांच पर भरोसा नहीं है, जब कुछ दूसरे लोगों का कहना है, कि टेस्ट करवाकर वो अपना रोज़ा नहीं तोड़ना चाहते’. उनका आशय रमज़ान के महीने से था, जो चल रहा है.

ख़ान ने कहा कि यहां लोग ‘लगातार एक डर में जी रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ लोग अस्पतालों के डॉक्टरों और नर्सों के, ख़राब रवैये की शिकायत करते हैं. वो बस ये चाहते हैं कि घर पर रहें, और ऑक्सीजन सिलिंडर का इंतज़ाम करते रहें’.

लोगों के टेस्ट नहीं हो रहे

लेकिन, शाहजहांपुर के ज़्यादातर दूसरे लोग, टेस्ट नहीं कराने के लिए, सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. एक स्थानीय निवासी शाहदुल्लाह ख़ान ने कहा, ‘वो लोगों के इस तरह से टेस्ट नहीं कर रहे, जैसे करने चाहिएं. कॉन्टेक्ट क्रेसिंग ऐसी नहीं हो रही, जैसी होनी चाहिए’.

ऐसे भी दावे किए गए हैं, कि लोगों को अस्पतालों से वापस लौटाया जा रहा है. शनिवार को जब दिप्रिंट वहां के निवासी मोहसिन ख़ान के यहां पहुंचा, तो उनके 23 वर्षीय भाई आतिफ को, एक ऑक्सीजन सिलिंडर की सख़्त ज़रूरत थी. आतिफ तेज़ बुख़ार और सांस फूलने की शिकायत कर रहा था, लेकिन मोहसिन उसके लिए एक ऑक्सीजन सिलिंडर नहीं जुटा पाए.

उनकी मां मोमिना ख़ान को भी, जो डायबेटिक थीं, तेज़ बुख़ार था, लेकिन परिवार में किसी ने भी टेस्ट नहीं कराया था. उस समय मोहसिन ने कहा था, ‘हमने उनका टेस्ट नहीं कराया है, क्योंकि बुख़ार चढ़ता है और उतर जाता है. वो कुछ दवाएं लेते हैं और ये कम हो जाता है.’

आतिफ और मोमिना दोनों ख़त्म हो गए- आतिफ की रविवार रात ऑक्सीजन लेवल गिरने पर मौत हो गई, और मोमिना सोमवार दोपहर चल बसी.

सोमवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, ‘मोहसिन ने कहा कि उन्होंने ‘कोई टेस्ट नहीं कराए’. ‘उससे क्या हो जाता? मैं आतिफ को मेरठ के एक अस्पताल (छत्रपति शिवाजी सुभारती अस्पताल) ले गया, लेकिन उन्होंने उसे भर्ती नहीं किया. उसकी नब्ज़ हल्की थी, इसलिए हम उसे घर ले आए’.

दिप्रिंट ने केस के बारे में पूछने के लिए, अस्पताल से संपर्क किया, लेकिन इस ख़बर के छपने तक, उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था.

ये पूछने पर कि क्या परिवार अब टेस्ट कराएगा, मोहसिन ने कहा, ‘हमने अभी दो लोगों को खोया है, टेस्टिंग के बारे में हम अब देखेंगे, जल्द ही कराने का इरादा है.’

शोएब ख़ान, जिनके ससुर और साले को लक्षण हैं, और वो आइसोलेशन में हैं, लेकिन जिन्होंने टेस्ट नहीं कराए हैं, टेस्टिंग के बारे में पूछने पर मज़ाक़ उड़ाने लगे.

शोएब ने कहा, ‘अगर लोग टेस्ट करा भी लें, तो फायदा क्या? रिपोर्ट्स 4-6 दिन के बाद आती हैं, आदमी उससे पहले ही मर चुका होता है’.

वरिष्ठ सरकारी अधिकारी इससे सहमत थे, कि रिपोर्ट्स आने में 4-6 दिन लग रहे हैं. इसका कारण उन्होंने ये बताया, कि मेरठ शहर में कोविड ‘मामलों और नमूनों की संख्या बहुत अधिक है’.

कस्बा में मोहसिन के परिवार का घर । उर्जिता भारद्वाज । दिप्रिंट

डिप्टी ज़िला निगरानी अधिकारी, डॉ बिपिन कुमार ने कहा, ‘टेस्ट रिपोर्ट्स में देरी हो रही है, लैब्स और टेक्नीशियंस पर दबाव बढ़ रहा है. हमारे यहां मेरठ ज़िले में तीन सरकारी लैब्स हैं- लाला लाजपत राय मेमोरियल (एलएलआरएम) मेडिकल कॉलेज, एनसीआर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, और छत्रपति शिवाजी सुभारती अस्पताल. 6-7 निजी लैब्स भी हैं, लेकिन उनकी क्षमता इन तीन से बहुत कम है’.

एलएलआरएम में, एक बार में 4,000 आरटी-पीसीआर टेस्ट किए जा सकते हैं. बाक़ी दो की क्षमता 800 की है’. उन्होंने आगे कहा, ‘दिल्ली और दूसरी बहुत सी जगहों से, लोग मेरठ वापस आए हैं, जिसकी वजह से मामलों में उछाल आया है’.

डॉ ख़ान और डॉ नायक दोनों का कहना था, कि रिपोर्ट्स में देरी गंभीर ‘चिंता का विषय है.’


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आंकड़ों में विसंगति

दिप्रिंट के हाथ लगे सरकारी डेटा से पता चला, कि मेरठ में अप्रैल में (29 अप्रैल तक) 2,17,951, और मार्च में 1,10,005 टेस्ट किए गए. मेरठ में मार्च में एक कोविड मौत दर्ज हुई, जबकि अप्रैल में ये संख्या 65 पहुंच गई. 1 से 30 अप्रैल के बीच, मेरठ में सक्रिय कोविड मामलों की संख्या, 395 से बढ़कर 12,679 पहुंच गई.

कोविड मौतों के वर्गीकरण के बारे में बात करते हुए, मेरठ मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) दफ्तर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘लोगों में लक्षण होते हैं, लेकिन वो बिना जांच के ही मर जाते हैं, इसलिए हम उन्हें कोविड मौतों में नहीं जोड़ते. कुछ मामलों में आरटी-पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आती है’.

मेरठ में मौतों का आधिकारिक आंकड़ा, शक के घेरे में आ गया है, चूंकि इस महीने न्यूज़लॉण्ड्री ने ख़बर दी, कि कोविड मौतों की जो संख्या, सीएमओ ऑफिस और मेरठ के सबसे बड़े श्मशान घर में दर्ज है, उसमें कम से कम सात गुने का फर्क है. रिपोर्ट में सीएमओ का ये कहते हुए हवाला दिया गया था, कि ‘विसंगति’ इसलिए थी, कि मेरठ में मरने वाले कुछ लोग दूसरे ज़िलों से थे, और कुछ ऐसे थे जिनमें लक्षण थे, लेकिन जिनके टेस्ट निगेटिव थे.

जब शाहजहांपुर की कोविड मौतों के लिए, दिप्रिंट ने सीएमओ रिकॉर्ड्स की छानबीन की, तो उसे आसिम और शुजात के नाम नज़र नहीं आए, हालांकि दोनों की कोविड रिपोर्ट पॉज़िटिव थी.

इन पत्रकारों ने अलग अलग स्पेलिंग से उनके नाम तलाश किए, उन अस्पताल के नामों से जहां उनकी मौत हुई, उन लैब्स से जहां उनके नमूने गए थे, और उनके फोन नंबरों से भी.

इस बारे में पूछने पर, डॉ कुमार ने कहा, ‘उनके टेस्ट नोएडा की लैब्स में हुए थे, मेरठ की लैब्स में नहीं. अस्पतालों ने शायद उन्हें पोर्टल पर अपलोड नहीं किया, इसलिए हमारे पास रिकॉर्ड नहीं है’.


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