होम देश अर्थजगत योगा चटाई, BBQ ग्रिल्स- 2020 में दिल्ली के लोगों ने मास्क के...

योगा चटाई, BBQ ग्रिल्स- 2020 में दिल्ली के लोगों ने मास्क के अलावा क्या खरीदा

दिप्रिंट एक नज़र डालता है भारत में सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ों पर, एक ऐसे साल में, जिसमें एक महामारी ने उपभोग के स्वरूप, और आदतों में एक बड़ा बदलाव ला दिया.

दिल्ली में शराब की दुकान के बाहर खड़े लोग | पीटीआई

नई दिल्ली: इस साल जनवरी के पहले सप्ताह में, नॉवल कोरोनावायरस के पहली बार सामने आने के बाद से भारत में अभी तक कोविड-19 के क़रीब एक करोड़ मामले और 1.45 लाख से अधिक मौतें दर्ज हो चुकी हैं. आंकड़ों से संकेत मिलता है कि कोविड कर्व शायद अब नीचे की ओर जा रहा है चूंकि हाल ही में रोज़ाना के मामले कम दर्ज हो रहे हैं.

लेकिन सामान्य हालात के जैसे कि हम 2020 से पहले देखते थे, निकट भविष्य में लौटने की संभावना नहीं लगती.

ऐसे सामान्य हालात का न होना, अपने साथ बहुत सी चुनौतियां लेकर आया है, जिनमें सबसे प्रमुख है अर्थव्यवस्था. जहां हॉस्पिटैलिटी और पर्यटन सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, वहीं दवा जैसे उद्योगों को एक अभूतपूर्व बढ़ावा मिला है.

मास्क, सैनिटाइज़र्स, इम्यूनिटी बूस्टर्स की बेतहाशा बिक्री हुई और शराब की भी, ये देखते हुए कि उपभोक्ताओं को मजबूरन, साल का ज़्यादातर समय घर के अंदर बिताना पड़ा. दिल्ली-एनसीआर के तक़रीबन 20 दुकानदारों, और अमेज़ॉन व फ्लिपकार्ट से बात करने के बाद दिप्रिंट एक नज़र डालता है, भारत में इस साल सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ों पर.


यह भी पढ़ें: सर्वे में पता चला 10 में से 9 भारतीयों के नेटवर्क में कोई न कोई कोविड पॉजिटिव मरीज है


सैनिटाइज़र्स और मास्क

चूंकि कोरोनावायरस एक ऐसी बीमारी है जो बुनियादी तौर पर ‘किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने और बोलने के समय, मुंह से निकलने वाली बेहद छोटी बूंदों से’ फैलता है, इसलिए दुनिया भर के प्रोटोकॉल्स में मास्क लगाने, हाथों को धोने, या सैनिटाइज़ करने को बढ़ावा दिया जाता है. हालांकि ये दोनों चीज़ें भारत में पहले भी बिकती थीं, लेकिन मार्च के बाद इनकी बिक्री आसमान छूने लगी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

हरियाणा के गुरुग्राम में फार्मेसी स्टोर चलाने वाले सौरभ गुप्ता ने बताया कि 24 मार्च को लॉकडाउन में जाने से पहले, सैनिटाइज़र्स और मास्क की ज़बर्दस्त मांग थी. गुप्ता ने कहा, ‘फरवरी में लोगों ने घबराहट में सैनिटाइज़र्स ख़रीदना शुरू कर दिया. हमारे पास चार सबसे लोकप्रिय ब्रांड थे- हिमालय, 3एम, डेटॉल, और लाइफ़ब्वॉय’. उन्होंने आगे कहा कि लाइफब्वॉय की सप्लाई अधूरी थी, और वो मांग की भरपाई नहीं कर सका. उन्होंने ये भी कहा, ‘अभी तक, सैनिटाइज़र्स बिक्री में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. लेकिन मार्च-अप्रैल में, ये 1000 प्रतिशत थी’.

गुप्ता का मानना है कि मांग में इतनी वृद्धि के बाद, चीज़ों की कालाबाज़ारी एक स्वाभाविक परिणाम होती है. उन्होंने कहा, ‘सरकार ने सैनिटाइज़र्स की क़ीमतों पर 250 रुपए की सीमा तय कर दी, जिसके बाद कालाबाज़ारी बंद हो गई. उनकी तरफ से ये एक बहुत अच्छा क़दम था’.

नई दिल्ली के मालवीय नगर में एक फार्मेसी चलाने वाले, मनीष अग्रवाल के भी ऐसे ही विचार थे. ‘शुरू में जब कोविड की ख़बर फैली तो लोग सैनिटाइज़र्स और मास्क ख़रीदने के लिए लाइनें लगाने लगे. जल्द ही मेरा स्टॉक ख़त्म हो गया और चूंकि हमने ऑर्डर्स की डिलीवरी भी शुरू कर दी थी, इसलिए फिर से भरा हुआ स्टॉक भी जल्दी ख़त्म हो गया. पूरे साल बिक्री बहुत अधिक रही है, लेकिन ज़ाहिर है कि अब हमारे पास पर्याप्त स्टॉक है’.

ब्लूमबर्गक्विंट की एक रिपोर्ट कहती है, ‘नए प्रतियोगी और स्थानीय ब्रांड्स, अब भारत के सैनिटाइज़र मार्केट में छा गए हैं, जो नॉवल कोरोनावायरस प्रकोप के फैलने के बाद, चार गुना से अधिक बढ़ गया है’. 2019 में सैनिटाइज़र मार्केट का आकार, 10 करोड़ रुपए का था, लेकिन मार्च 2020 में ये फैलकर 43 करोड़ हो गया. निएलसन इंडिया का हवाला देते हुए, जो अपने आपको ‘उपभोक्ता की पूरी बुद्धिमता का सबसे भरोसेमंद स्रोत’ बताती है, ब्लूमबर्गक्विंट रिपोर्ट में कहा गया है, कि सैनिटाइज़र्स की मांग ‘17 से 19 मार्च के बीच 58 प्रतिशत से उछलकर, 10 से 14 अप्रैल के बीच 87 प्रतिशत हो गई’. सैनिटाइज़र्स की इस आसमान छूती मांग को पूरा करने के लिए, मार्च के बाद से 152 नए निर्माता इस क्षेत्र में आ गए और ब्लूमबर्गक्विंट के अनुसार, अब कुल वैल्यू शेयर का 46 प्रतिशत उनके पास है.

सैनिटाइज़र्स के विपरीत राष्ट्रीय राजधानी में, मास्क सीज़न के हिसाब से बिकते हैं, जब पराली जलाने और पटाख़े छोड़ने के साथ, हवा की क्वालिटी ख़राब हो जाती है. लेकिन, ये साल अलग था. गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान, मौसमी संख्या के मुक़ाबले दो गुना मास्क बेंचे गए. उन्होंने आगे कहा, ‘अभी तक, मास्कों की बिक्री 10 प्रतिशत बढ़ी है’.

इम्यूनिटी बूस्टर्स, विटामिन्स और दवाएं

कोरोनावायरस से संक्रमित होने का ख़तरा तो अभी भी है, लेकिन कुछ महीने पहले ये कहीं ज़्यादा था, जब पैथोजन के बारे में बहुत कम जानकारी थी. इम्यूनिटी बनाए रखने और बीमारी से बचने के लिए, लोगों ने इम्यूनिटी बूस्टर्स और विटामिन्स ख़रीदने शुरू कर दिए.

गुप्ता ने कहा, ‘क़रीब दो महीने पहले, जब हम कड़े लॉकडाउन से बाहर आ रहे थे, तो विटामिन सी, ज़िंक और आयुष काढ़ा बहुत बिक रहे थे. इनकी मांग कम से कम 100 प्रतिशत बढ़ गई थी’. उन्होंने आगे कहा कि इनकी बिक्री, अब सामान्य स्तर पर लौट आई है.

ऑनलाइन फार्मेसीज़ के आंकड़े भी उसी की पुष्टि करते हैं, जो गुप्ता के जैसी ईंट-गारे की फार्मेसियों ने देखा है. एक ऑनलाइन फार्मेसी नेटमेड्स के अनुसार, अप्रैल-मई में मल्टीविटामिन्स की बिक्री में फरवरी-मार्च के मुक़ाबले 119 प्रतिशत वृद्धि हुई. इस बीच इसी अवधि में, च्यनवप्राश और मछली के तेल के कैप्स्यूल्स जैसे इम्यूनिटी बूस्टर्स की बिक्री में, 47 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ. मांग इतनी अधिक थी कि नेटमेड्स ने अपनी वेबसाइट पर अलग से एक कोविड-19 सप्लीमेंट्स पेज जोड़ दिया.

दवा विक्रेताओं का कहना है कि जिन लोगों को पहले से डायबिटीज़ और दिल की बीमारियां हैं, उन्होंने नुस्ख़ों पर आधारित दवाएं थोक में ख़रीदनी शुरू कर दीं. गुप्ता ने आगे कहा, ‘पैरासिटेमॉल और एज़िथ्रोमाइसीन की बिक्री भी सामान्य से कहीं ज़्यादा हुई, चूंकि इनका इस्तेमाल उन बीमारियों के इलाज में किया जाता है, जिनके लक्षण कोविड-19 के अनुरूप होते हैं, लेकिन जो सिर्फ नुस्ख़ों पर बिकती हैं.

दिल्ली में कनॉट प्लेस के एक फार्मेसी मालिक आशीष सिंह ने कहा कि मार्च-अप्रैल और फिर सर्दियों के आने पर नवंबर में, लोग पागलों की तरह पैरासिटेमॉल और एज़िथ्रोमाइसीन ख़रीद रहे थे. इसके अलावा भारी संख्या में लोग थर्मामीटर्स, ‘विक्स’ गोलियां, और नाक के ड्रॉप ऑट्रिविन खरीदने भी आ रहे थे.

सिंह ने आगे कहा, ‘तापमान में गिरावट के साथ ही लोग फार्मेसियों में आने लगे. एक फार्मासिस्ट की अपनी 30 साल की ज़िंदगी में मैंने कभी इतनी भारी संख्या में, थर्मामीटर्स और ऑट्रिविन नहीं बेची’. उन्होंने आगे कहा, ‘उसके अलावा, घबराहट में ख़रीदारी की वजह से, पैरासिटेमॉल और एज़िथ्रोमाइसीन की बिक्री भी आसमान पर पहुंच गई’.

दिल्ली के साकेत में एक और फार्मासिस्ट, गोपाल कृष्णन ने कहा कि विटामिन्स की मांग में भी इज़ाफा देखा गया. ‘इस साल विटामिन सी और डी की बिक्री भी बहुत ज़्यादा है. आयरन की गोलियों की भी. लोगों ने जिस चीज़ के बारे में पढ़ा, उसे ख़रीद लिया’.

एल्कोहल

4 मई को जब 45 दिन के बाद, आख़िरकार शराब की दुकानें खोलने की इजाज़त मिली तो सोशल मीडिया पर लंबी लंबी लाइनों की तस्वीरें और वीडियो ख़ूब चल रहीं थीं. दुकानों पर अचानक पाबंदियां लगने से कारोबार बाधित हुआ लेकिन उसके बाद जो हुआ, उसने उसकी कहीं ज़्यादा भरपाई कर दी.

गुरुग्राम में शराब के एक ठेकेदार ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘15 साल में पहली बार, हरियाणा में शराब ठेकेदारों ने देसी शराब का अतिरिक्त कोटा ख़रीदा है. पिछले साल, आयातित शराब के दो लाख केस- जो बेस कोटा है- बिके थे. इस साल, लॉकडाउन के बाद वही मात्रा, चार महीनों के अंदर बिक गई’.

शराब ठेकेदार के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय यात्राएं बिल्कुल न्यूनतम हो जाने की वजह से बहुत से लोग जो अन्यथा एयरपोर्ट ड्यूटी फ्री से शराब ख़रीदते थे वो अब एल-2 स्टोर्स (जो निजी लोगों को बेंचते हैं) का रुख़ कर रहे थे. उसने कहा, ‘इसके अलावा, हरियाणा में शराब सस्ती है, इसलिए दिल्ली, राजस्थान, गुजरात जैसे पड़ोसी राज्यों, यहां तक कि मुम्बई के लोग भी यहां से ख़रीद रहे हैं’.

उन्होंने कहा, ‘पिछले साल, शराब कारोबार में हर कोई नुक़सान उठा रहा था. सोनीपत के अपने स्टोर्स में, हमें 25 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ. लेकिन इस साल बिज़नेस में, हर किसी की बिक्री में इज़ाफा देखा गया है.

दिल्ली के लाजपत नगर इलाक़े में एक और शराब विक्रेता ने कहा कि शुरू में जब कोविड महामारी का प्रकोप फैला, तो लोगों ने एल्कोहल जमा करनी शुरू कर दी थी.

उन्होंने कहा, ‘लॉकडाउन ख़त्म होने पर बिक्री और बढ़ गई. लंबी लंबी क़तारों को संभालना बेहद मुश्किल हो गया और बियर व व्हिस्की के कुछ ख़ास ब्राण्ड्स ख़त्म हो गए. इस साल हमने इम्पोर्टेड शराब की 4 लाख से अधिक पेटियां बेंची हैं’. राष्ट्रीय राजधानी के बहुत से दूसरे हिस्सों में भी शराब विक्रेताओं ने यही बात कही कि बिक्री में कई गुना इज़ाफा हो गया है, क्योंकि लोग ज़्यादा से ज़्यादा जमा कर लेना चाहते थे.

टेक गैजेट्स, जिम उपकरण और अन्य चीज़ें

चूंकि लोगों का अधिकतर समय घर पर गुज़र रहा था इसलिए अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर भी, ऐसी चीज़ों की बिक्री में बढ़ोतरी देखी गई, जैसे ‘घर से काम करने और ऑनलाइन स्कूलिंग के लिए सक्षम करने वाले उपकरण, जैसे लैपटॉप्स, स्मार्ट डिवाइसेज़, हेडफोन्स, एसी जैसे गर्मियों के गैजेट्स आदि’.

अमेज़ॉन के एक प्रवक्ता ने ईमेल पर दिप्रिंट को बताया, ‘हमने व्यक्तिगत सौंदर्य उत्पादों की बिक्री में भी ख़ासी वृद्धि देखी है, जैसे ट्रिमर्स, शेवर्स, बाल साफ करने की चीज़ें और साथ ही तौलने की मशीनें और बीपी मॉनिटर्स जैसे वेलनेस प्रॉडक्ट्स वग़ैरह’.

ख़ाली समय काटने के लिए उपभोक्ता अपने मनोरंजन के साधन भी ख़रीद रहे थे. अमेज़ॉन ने ट्रेडमिल्स, वेट्स, ऑटो टूल्स, बाग़वानी उपकरण और बारबेक्यू ग्रिल्स वग़ैरह की बिक्री में भी बढ़ोत्तरी देखी.

एक फ्लिपकार्ट प्रवक्ता ने दिप्रिंट को बताया कि इन-हाउस जिम उपकरणों की मांग में भी भारी तेज़ी आई. उन्होंने कहा, ‘पाबंदियां हटने के बाद, जब हमें डिलीवरी की अनुमति मिल गई तो बहुत सारे ऑर्डर्स वेट्स, ट्रेडमिल्स, योगा चटाई, ग्लव्ज़ वग़ैरह के थे, जो कि अन्यथा नहीं होता. इसके अलावा लोगों ने बहुत सारी टेबल्स, लैपटॉप स्टैण्ड्स और इयरफोन्स भी ख़रीदे’.

प्रवक्ता ने आगे कहा, ‘अब भी, हमारे पास जिम के सामान के बहुत सारे ऑर्डर्स हैं, क्योंकि लोग अभी भी जिम जाने में सुरक्षित महसूस नहीं करते’. उन्होंने आगे कहा, ‘इनके अलावा, लोग पकाने के बर्तन और बारबेक्यू ग्रिल्स भी बहुत ख़रीद रहे हैं, चूंकि घर पर खाना मंगाने की बजाय ज़्यादातर लोग घर पर पकाने लगे हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘दो बच्चों वाले कानून की भारत को जरूरत नहीं’- NFHS के आंकड़ें बताते हैं कि जनसंख्या विस्फोट का कोई खतरा नहीं


 

Exit mobile version