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एंटीबॉडी से पूरी तरह बचकर नहीं निकलता है ओमीक्रॉन, US में AI टूल के साथ हुई स्टडी में दावा

इस रिसर्च को करने वाले शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में SARS-CoV-2 वायरस वैरिएंट के म्यूटेंट के आधार पर इसकी सरंचना के बारे में जानने के लिए आर्टिफिशियल टूल का इस्तेमाल किया है.

ओमीक्रॉन वैरिएंट के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. प्रतीकात्मक तस्वीर

हाल ही में की गई एक नई स्टडी में बताया गया है कि ओमीक्रॉन पिछले कोरोना संक्रमण से पैदा हुई या टीकों की एंटीबॉडी से पूरी तरह बचने में कामयाब नहीं है.

इस रिसर्च को करने वाले शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में SARS-CoV-2 वायरस वैरिएंट के म्यूटेंट के आधार पर इसकी सरंचना के बारे में जानने के लिए आर्टिफिशियल टूल का इस्तेमाल किया है, जिसमें यह जानने की कोशिश की कि यह वायरस एंटीबॉडी के साथ कैसा व्यवहार करता है.

bioRxiv नाम के एक सर्वर पर पोस्ट की गई इस स्टडी में पाया गया कि ओमीक्रॉन वैरिएंट कुछ एंटीबॉडी के संपर्क में आने पर कमजोर पड़ सकता है, लेकिन इसका असर पूरी तरह से प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से बचने के लिए पर्याप्त नहीं है.

अमेरिका में उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने SARS-CoV-2 जीनोम अनुक्रम के साथ काम किया, जिसे बोत्सवाना-हार्वर्ड एचआईवी संदर्भ प्रयोगशाला ने 22 नवंबर को साझा किया था. इसका सैंपल बोत्सवाना में कोरोना संक्रमित हुए 59 साल के व्यक्ति से लिया गया था.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमीक्रॉन वैरिएंट को लेकर चिंता जाहिर की है.

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यह स्टडी Googleडीपमाइंड द्वारा बनाए एक नेटवर्क-आधारित गहन शिक्षण मॉडल – ‘अल्फाफोल्ड 2’ का इस्तेमाल करके की गई है. जो आनुवंशिक कोड के आधार पर प्रोटीन संरचना की भविष्यवाणी कर सकता है.

प्रोटीन लाइफ ब्लॉक बनाने के लिए अहम हैं. प्रोटीन कैसे काम करता है यह उसके 3डी स्ट्रक्चर पर निर्भर करता है. यही कारण है कि जीव विज्ञान को समझने के लिए यह पता लगाना जरूरी है कि प्रोटीन किस आकार में फोल्ड होता है.

‘प्रोटीन फोल्ड’ को लेकर होने वाली समस्या जीव विज्ञान के लिए 50 सालों तक एक चुनौती रही, लेकिन फिर साल 2008 में एआई टूल अल्फाफोल्ड का विकास हुआ.

एआई का इस्तेमाल कर अल्फाफोल्ड बिना प्रयोगशाला में प्रयोग किए बिना ही प्रोटीन की सरंचना को लेकर भविष्यवाणी करने में समक्ष होता है. इससे वैज्ञानिकों को इसके कामों को जल्दी समझने की अनुमति मिलती है.

कम्प्यूटर के जरिए वैज्ञानिकों ने अमीनो एसिड के अनुक्रम का पता लगाया, जो ओमीक्रॉन वैरिएंट में रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन (आरबीडी) में प्रोटीन के ब्लॉक बनाते हैं. आरबीडी वायरस का मुख्य हिस्सा है जो स्पाइक प्रोटीन में होता है. यही वायरस को कोशिकाओं में जाने की अनुमति देता है और शरीर को इन्फेक्शन की ओर बढ़ाता है.

चूंकि ओमीक्रॉन वैरिएंट एंटीबॉडी के साथ कैसे इंटरैक्ट करता है, इस बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है, इसलिए शोधकर्ताओं ने वैक्सीन प्रभावकारिता में संभावित परिवर्तनों को पेश करने के लिए “स्पाइक प्रोटीन के रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन की उत्परिवर्तित संरचना” का एक मॉडल बनाने के लिए “प्रिडिक्टिव कम्प्यूटेशनल विधियों” की ओर रुख किया.

शोधकर्ताओं की टीम ने पहले ही कोरोना से संक्रमित हो चुके लोगों में एंटीबॉडी के साथ अनुमानित प्रोटीन की संरचना के साथ बाइंडिग एनर्जी की गणना की. बाइंडिग एनर्जी उस एनर्जी का वर्णन करती है जो कणों की एक प्रणाली को तोड़ने के लिए जरूरी होती है. बाइंडिंग एनर्जी जितनी कम होगी, दो कणों के बीच का बंधन उतना ही कम स्थिर होगा.

अध्ययन के मुताबिक, परिणाम बताते हैं कि हालांकि ओमीक्रॉन वैरिएंट के उत्परिवर्तित स्पाइक प्रोटीन की अनुमानित संरचना ने एंटीबॉडी के लिए आत्मीयता को कम कर दिया है, फिर भी वे संस्करण से बंधे रहे.

स्टडी के मुताबिक टीम ने बताया कि नतीजे बताते हैं कि पिछले कोरोना संक्रमण या वैक्सीन ओमीक्रॉन से कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करते हैं.

टीम ने आगे कहा, हालांकि ओमीक्रॉन के आरबीडी में कई उत्परिवर्तन हैं, लेकिन ये उत्परिवर्तन किसी बड़े संरचनात्मक परिवर्तन का कारण नहीं बनते हैं, जो एंटीबॉडी इंट्रैक्शन से पूरी तरह से बच जाएगा.

स्टडी में आए नतीजों का अभी प्रयोगशालाओं के प्रयोग में कन्फर्म किए जाना बाकी है.

स्टडी में कहा गया है, ‘नए SARS-CoV-2 वैरिएंट के प्रभावों को समझने में सार्वजनिक स्वास्थ्य की तात्कालिकता को देखते हुए यह जरूरी है कि हम एक प्रयोगशाला में जितनी जल्दी हो सके उतनी तेजी से काम करें.’


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