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‘कोविड के डर से’ ख़ुद इलाज की कोशिश में जुटे भारतीय, आइवरमेक्टिन, डेक्सामेथासोन और HCQ गटक रहे हैं

ख़ुद दवाएं लेने से, इलाज का सामान्य तरीक़ा प्रभावित हो सकता है, और मरीज़ों को अतिरिक्त साइड-इफेक्ट्स का भी सामना करना पड़ सकता है जिससे उनकी रिकवरी की प्रक्रिया और जटिल हो सकती है.

प्रतीकात्मक तस्वीर | Pexels

नई दिल्ली: एक रुझान व्यापक रूप से देखा जा रहा है कि अब, भारतीय ख़ुद से अपना इलाज करते हुए ऐसी दवाएं गटक रहे हैं, जो आमतौर से कोविड-19 मरीज़ों को, पॉज़िटिव निकलने या कोरोनावायरस संक्रमण के लक्षण दिखने पर, अस्पतालों में दी जाती हैं.

प्रमुख अस्पतालों के डॉक्टरों के अनुसार, ऐसे मरीज़ बाद में अस्पताल पहुंच जाते हैं, और इस बात को स्वीकार करते हैं, कि गंभीर बीमारी की रोकथाम के लिए, उन्होंने हाइड्रोक्लोरोक्वीन (एमचीक्यू), आइवरमेक्टिन, डॉक्सीसाइक्लीन, और डेक्सामेथासोन जैसी, कोविड की लोकप्रिय और ज्ञात दवाएं ली हैं.

गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में, क्रिटिकल केयर विभाग के अध्यक्ष, डॉ यतिन मेहता ने कहा, ‘हर 10 कोविड मरीज़ों में, चार ऐसे आते हैं जो कोविड के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली, एक या दो दवाएं ले चुके होते हैं. ये सारी दवाएं अस्पताल के अंदर प्रशिक्षित फिज़ीशियन की देखरेख में ही लेनी चाहिए. हमने देखा है कि लोग ज़्यादातर ख़ुद से ही आइवरमेक्टिन, डॉक्सीसाइक्लीन ले रहे हैं’.

पिछले एक साल में, ये दवाएं कोविड इलाज के संभावित विकल्पों के तौर पर सामने आईं हैं. लेकिन, जब क्लीनिशियंस के सामने, नॉवल बीमारी के इलाज का ख़ाका स्पष्ट होना शुरू हुआ, तो इन दवाओं की भूमिका, या तो कम कर दी गई, या उसे किसी ख़ास बीमारी के लिए, एक विशेष समयावधि तक सीमित कर दिया गया.

भारत इस समय कोविड की दूसरी ज़बर्दस्त लहर की चपेट में है, और बिस्तरों तथा आईसीयूज़ की भारी कमी है. ऐसे में गंभीर बीमारी की चपेट में आने का ख़ौफ, लोगों को इन दवाओं के इस्तेमाल की ओर ले जा रहा है.

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इसी रुझान की ओर इशारा करते हुए, हरियाणा में रोहतक के पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में, सीनियर रेज़िडेंट आईसीयूज़, डॉ कामना कक्कड़ ने कहा, ‘आधे कोविड मरीज़ ये स्वीकार कर लेते हैं, कि उन्होंने एक दो ऐसी दवाएं ली हैं, जो कोविड के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं. लिस्ट में सबसे ऊपर हैं एमचीक्यू, आइवरमेक्टिन, और डेक्सामेथासोन’.

उन्होंने आगे कहा, ‘जैसे ही लोगों को कोविड के लक्षण महसूस होने शुरू होते हैं, या उनका टेस्ट पॉज़िटिव आता है, वो बस गूगल करते हैं और दवाएं गटकनी शुरू कर देते हैं, वो ये नहीं समझते कि इससे वो अपने ही इलाज, और रिकवरी की प्रक्रिया को जटिल बना रहे हैं. इसके अलावा, नेशनल ट्रीटमेंट प्रोटोकोल्स डॉक्टरों के लिए होते हैं, मरीज़ों के लिए नहीं’.

सिर्फ गूगल ही नहीं, बल्कि कुछ लोग प्राइवेट चिकित्सकों, या अपनी पहचान के डॉक्टरों की सलाह पर भी ये दवाएं ले रहे हैं.

नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के, रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, डॉ अमनदीप ने कहा, ‘आमतौर से ऐसे मरीज़ हल्के लक्षण वाले होते हैं. हमने जिन्हें देखा है उन्होंने आमतौर पर ये दवाएं, या तो स्थानीय डॉक्टरों की सलाह पर ली होती हैं, या इनके बारे में गूगल पर पढ़ा होता है’.


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कैसे नुक़सानदेह हैं ख़ुद के ऐसे नुस्ख़े

मेहता ने कहा कि इस तरह ख़ुद दवाएं लेने से, इलाज का सामान्य तरीक़ा प्रभावित हो सकता है, और मरीज़ों को अतिरिक्त साइड-इफेक्ट्स का भी सामना करना पड़ सकता है (जो कोविड की वजह से नहीं होते), जिससे उनकी रिकवरी की प्रक्रिया और जटिल हो सकती है.

ऐसी ही एक मिसाल है कोलकाता के अपोलो ग्लेनईगल्स की, एक 32 वर्षीय महिला. डॉक्टरों ने उसकी हालत का जायज़ा लिया तो पता चला, कि वो घर पर ही बिना किसी नुस्ख़े के, डेक्सामेथासोन ले रही थी, जो एक ताक़तवर स्टिरॉयड है. उसके सीटी स्कैन से पता चला, कि उसे ‘बिगड़ा हुआ कोविड’ है. अपोलो ग्लेनईगल्स में क्रिटिकल केयर मेडिसिन के कंसल्टेंट, डॉ चंद्राशीष चक्रवर्ती ने बताया, कि अब वो महिला इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में, ज़िंदगी के लिए संघर्ष कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘ऐसे कई मरीज़ हर रोज़ इमरजेंसी विभागों में आते हैं. कोविड के डर से वो घर पर ही, कोविड की लोकप्रिय दवाएं लेना शुरू कर देते हैं. दवाएं अपने साइड-इफेक्ट्स दिखाती हैं, और मरीज़ इलाज का क़ीमती समय गंवा देते हैं, जिससे कोविड गंभीर रूप ले लेता है’.

अमनदीप ने समझाया, ‘दवा और उसकी अवधि, एक ख़ास बीमारी के लिए होती है. बिना नुस्ख़े के इलाज करना हानिकारक हो सकता है. मसलन डेक्सामेथासोन जो एक स्टिरॉयड है, अगर ज़्यादा समय तक ली जाए, तो उससे ऑस्टोपोरोसिस, इम्यूनोसप्रेशन, और अव्यवस्थित ब्लड ग्लूकोज़ जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं. आपको ख़ुद से इलाज शुरू करने में, बहुत एहतियात बरतनी चाहिए’.

ख़ुद से एचसीक्यू खाना जानलेवा साबित हो सकता है, क्योंकि इससे अबनॉर्मल हार्ट रिदम्स, या ह्रदय गति के ख़तरना हद तक तेज़ होने का ख़तरा हो सकता है. इसी तरह, यूएसएफडीए के अनुसार पैरासाइट दवा आइवरमेक्टिन, दूसरे सामान्य साइड-इफेक्ट्स पैदा करने के अलावा, ख़ून में व्हाइट सेल्स की संख्या कम कर सकती है, और लिवर को भी प्रभावित कर सकती है.

अमेरिकी स्वास्थ्य नियामक ने अपनी वेबसाइट पर ये भी चेताया है, कि ‘कोविड-19 के इलाज या रोकथाम के लिए, कोई भी दवा तभी लें जब आपके स्वास्थ्य सेवा प्रदाता ने इसके लिए लिखा हो, और वो किसी वैध स्रोत से ली गई हो’.

जानकारी का ओवरलोड

डॉक्टर्स भी भारी मात्रा में ऑनलाइन, या पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी को लेकर, दबाव महसूस कर रहे हैं, क्योंकि इसकी वजह से मरीज़ और उनके परिवार, एक ख़ास तरह के नुस्ख़ों की मांग करते हैं.

पिछले एक साल से मेदांता के कोविड वॉर्ड में काम कर रहे, डॉ मेहता का कहना था, ‘हर मरीज़ या उसका परिवार, अपने सीटी स्कोर की बात करता है. वो सब चाहते हैं कि हम उन्हें रेमडिसिविर या फैविपिराविर दवा लिखें. ऐसा लगता है जैसे हर कोई, कोविड का इलाज करने के लिए डॉक्टर बन गया है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम कैसे स्पष्ट करें कि सीटी वैल्यूज़ मान्य नहीं की गईं हैं, बल्कि ये सीटी सीविएरिटी स्कोर्स (सीटीएसएस) है, जो आपको गंभीरता के बारे में बता सकता है’.

कक्कड़ ने देखा है कि उनके मरीज़ ‘वो दवाएं ले रहे हैं जो ज़्यादातर नेशनल ट्रीटमेंट प्रोटोकोल में लिखी हुई होती हैं, और जो आसानी से ऑनलाइन मिल जाती हैं’.

उन्होंने कहा, ‘बहुत सारी जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध रहती है. लेकिन, मैं मरीज़ों और उनके परिवारों से आग्रह करूंगी, कि इलाज कर रहे अपने डॉक्टर पर भरोसा रखें. हमारे लिए हर किसी को समझाना मुश्किल है, कि कौनसा ट्रीटमेंट प्रोटोकोल सबसे ताज़ा है, और कौन सा पुराना पड़ गया है’.


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