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कोविड की दूसरी लहर में 70% भारतीयों ने एम्बुलेंस के लिए दोगुने पैसे दिए जबकि 36 % ने ऑक्सीजन के लिए: सर्वे

कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म लोकलसर्किल द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि जिन लोगों ने एम्बुलेंस के लिए अधिक भुगतान किया उनमें से आधे लोगों से नॉर्मल रेट से पांच गुना अधिक वसूला गया.

प्रतीकात्मक तस्वीर, सिविल अस्पताल के बाहर एंबुलेंस/फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

नई दिल्ली: एक शोध से पता चला है कि अप्रैल-मई में कोविड महामारी की आक्रामक दूसरी लहर के दौरान कम से कम 70 फीसदी भारतीयों को एंबुलेंस के लिए, 36 फीसदी को ऑक्सीजन के लिए और 19 फीसदी को दवाओं के लिए अधिक भुगतान करना पड़ा है.

एक कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म लोकलसर्किल द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि जिन लोगों ने एम्बुलेंस के लिए अधिक भुगतान किया उनमें से आधे लोगों से नॉर्मल रेट से पांच गुना अधिक पैसा लिया गया.

सर्वेक्षण के दौरान लगभग 30 प्रतिशत ने कहा कि उनसे ‘वही पैसे लिए गए जो वो नियमित तौर पर देते रहे हैं, हालांकि, 10 प्रतिशत से ‘नियमित मूल्य से 100-500% अधिक’ पैसे वसूले गए, जबकि 50 प्रतिशत ऐसे थे जिनसे रेगुलर प्राइस से 500 प्रतिशत या उससे अधिक पैसे वसूले गए.

ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, सिलेंडर, ऑक्सीमीटर और अन्य वस्तुओं के लिए अधिक भुगतान करने वाले 36 प्रतिशत में से 4 प्रतिशत ने कहा कि उनसे एमआरपी के बीच और नियमित मूल्य से दो गुनी कीमत तक वसूली गई थी. 14 प्रतिशत ने बताया कि उन्हें आम दिनों में दी जा रही कीमत से दो से तीन गुनी कीमत तक भुगतान की जबकि 18 फीसदी से एमआरपी से तीन गुना ज्यादा तक वसूला गया.

यह सर्वेक्षण भारत के 389 जिलों में किया गया जिसमें कुल 38,000 लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी.

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दवाएं और टेस्ट

इस सर्वे में उन दवाओं के बारे में भी पूछा गया जिसकी मांग दूसरी लहर के दौरान बढ़ गई थी. इनमें टोसीलिज़ुमैब, रेमडेसिविर और एएमडी फैबीफ्लू जैसी दवाएं शामिल थीं. ये दवाएं न केवल उस दौरान ब्लैक में मिल रही थीं बल्कि इनकी मांग को देखते हुए इनकी कीमतों में भी बढ़ोतरी कर दी गई थी.

सर्वे में शामिल 30 फीसदी लोगों ने बताया कि इस दौरान कोविड से संबंधित दवाओं पर उन्हें छूट दी गई, जबकि अन्य 30 प्रतिशत को एमआरपी पर ही दवाएं मिलीं.

इस बीच, 5 प्रतिशत ने बताया कि उनसे एमआरपी और नियमित दर से दो गुनी कीमत तक वसूली गई. जबकि अन्य 5 प्रतिशत को नियमित मूल्य से दो से तीन गुना चार्ज किया गया था और उस दौरान 5 प्रतिशत ऐसे थे जिनसे दवाओं के लिए एमआरपी पर तीन से 10 गुना के बीच वसूला गया था.

सर्वेक्षण के अनुसार, 9 फीसदी उत्तर देने वालों ने बताया कि उनसे नियमित कीमत से दस गुना अधिक दवाओं पर भुगतान किया. जबकि 16 प्रतिशत ने ‘कह नहीं सकते’ विकल्प चुना और ऐसा माना गया कि इनसे अधिक शुल्क लिए जाने की संभावना है.

सर्वेक्षण के अनुसार, दूसरी लहर के दौरान आरटी-पीसीआर परीक्षण कराने वाले 13 प्रतिशत भारतीयों से प्राइवेट लैबोरेट्रीज और अस्पतालों द्वारा अधिक शुल्क लिया गया.

इस बीच, नौ प्रतिशत भाग्यशाली रहे जिन्हें सरकारी सुविधा मिली और मुफ्त में टेस्ट हुआ. जबकि 36 फीसदी लोगों ने प्राइवेट अस्पतालों का रुख किया और सरकार द्वारा तय किए गये मूल्य पर ही उनका टेस्ट किया गया और 38 प्रतिशत ने होम सैंपल कलेक्शन सर्विस का उपयोग किया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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