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कैसे खानपान, जीवनशैली ने पंजाब को देश में सर्वाधिक COVID मृत्युदर वाला राज्य बनने की तरफ बढ़ाया

पंजाब में सबसे अधिक मौतें दर्ज करने वाले जिलों पटियाला, लुधियाना, फरीदकोट और अमृतसर में कोविड के कारण जान गंवाने वाले 60% से अधिक लोग या तो मोटापे से पीड़िते था या फिर डायबिटीज या हाइपरटेंशन के शिकार थे.

पटियाला में राजिंद्र अस्पताल के बाहर मरीज | फोटो: रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

लुधियाना: उपयुक्त स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और ऑक्सीजन या दवाओं की कोई खास कमी नहीं होने के बावजूद पंजाब में केस फैटलिटी रेट (सीएफआर) अब भी 2.6 फीसदी बना हुआ है, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है. डॉक्टरों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और यहां तक कि प्रशासकों ने इस सबके पीछे राज्य के लोगों की ‘खानपान की आदतों, जीवनशैली और अक्खड़ रवैये’ को जिम्मेदार ठहराया है.

दिप्रिंट ने पंजाब में सबसे अधिक मौतें दर्ज करने वाले जिलों पटियाला, लुधियाना, फरीदकोट और अमृतसर से डाटा एकत्र किया और पाया कि यहां कोविड के कारण मरने वालों में से 60 प्रतिशत से अधिक लोग या तो मोटापे से पीड़ित थे या फिर डायबिटीज या हाइपरटेंशन के शिकार थे.

इसके अलावा यहां के लोगों के बीच हृदय रोग, किडनी की बीमारी और शराब के कारण लीवर की समस्याएं होना आम है.

दिप्रिंट की तरफ से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 1 जनवरी से 21 मई के बीच पंजाब में सीएफआर 1.3 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 2.6 प्रतिशत रहा और 8,963 मौतें कोविड के कारण हुईं. सीएफआर पुष्ट पॉजिटिव मामलों में मौतों का अनुपात है.

इसके विपरीत, महाराष्ट्र में सीएफआर 1.8 फीसदी, कर्नाटक में 1.2 फीसदी, दिल्ली में 1.7 फीसदी, गुजरात में 1.2 फीसदी और यूपी में 1.3 फीसदी है.

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इसी अवधि में पटियाला में 1,019 मौतें दर्ज की गईं, जो पंजाब में मरने वालों के कुल आंकड़े का 11 प्रतिशत है. पटियाला मेडिकल कॉलेज में 867 मौतें कोविड के कारण हुईं, जिनमें से 501 लोग डायबिटीज, मोटापे या हाइपरटेंशन से पीड़ित थे.

इसी तरह लुधियाना में 21 मई तक हुई कुल 625 मौतों में इन तीन में से कोई न कोई एक बीमारी थी. फरीदकोट में 284 मौतों में से 190 लोगों की स्थिति भी यही थी और अमृतसर में 502 लोगों में से 274 ऐसे थे जो इन तीनों ही चीजों से पीड़ित थे.

डॉक्टरों का कहना है कि ‘पंजाब में आहार बहुत भारी होता है, काफी मात्रा में वसा होता है और नमक और चीनी का भी बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है’ जो कि राज्य की आबादी को मोटापे, डायबिटीज और हाइपरटेंशन का शिकार बना रहा है.

पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन रिसर्च (पीजीआईएमईआर) के 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, पंजाब में 10 में से चार लोग हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं, जिससे यह देश में ऐसे रोगियों की सबसे अधिक संख्या वाला राज्य बन गया है.

पीजीआईएमईआर की ही एक पूर्व रिपोर्ट में बताया गया था कि पंजाब की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी ज्यादा वजन या मोटापे की समस्या से ग्रस्त है, और राज्य में डायबिटीज की व्यापकता दर राष्ट्रीय औसत से पांच प्रतिशत अधिक है.

डॉक्टरों के अनुसार, ज्यादा सीएफआर के अलावा अन्य प्रमुख कारणों में मरीजों का ‘काफी देर से’ अस्पताल पहुंचना, वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट, इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टरों पर निर्भरता, समय पर टेस्ट कराने की अनिच्छा और वायरस को ‘पैसा बनाने के लिए सरकार की साजिश’ समझना आदि शामिल हैं.

विशेषज्ञों के मुताबिक, ‘मौतों के आंकड़े दर्ज करने में निष्पक्षता’ से भी सीएफआर शीर्ष पर बना हुआ है.

‘पंजाब की आबादी ज्यादा जोखिम वाली है’

स्वास्थ्य मामलों पर पंजाब सरकार के सलाहकार डॉ. के.के. तलवार ने कहा कि यह एक ‘तथ्य’ है कि पंजाब में उच्च सीएफआर की वजह ‘उच्च जोखिम वाली आबादी’ रही है.

उन्होंने कहा, ‘पंजाब में मोटापा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन एक बड़ी समस्या है. चाहे खानपान की आदत हो, जीवनशैली हो या व्यायाम न करने की आदत, यह तथ्य तो सभी जानते हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसने राज्य में सीएफआर को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है.’

दयानंद मेडिकल कॉलेज, लुधियाना के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. बिश्व मोहन ने कहा कि अस्पताल आने वाले ज्यादातर मरीज ‘अनियंत्रित डायबिटीज से पीड़ित और मोटापे’ के शिकार थे.

उन्होंने कहा, ‘यहां के लोगों को न केवल डायबिटीज है बल्कि यह अनियंत्रित होने के साथ-साथ मोटापा भी है, जो उनके ठीक होने में एक बड़ी बाधा बन गया और इतनी सारी मौतें हुईं. अगर उन्हें चीनी कम खाने को कहा जाता है तो कहते हैं, ‘मुझे एक टुकड़ा मिठाई खाने दें उसके बाद मैं शुगर की दवा खा लूंगा. खाने में वसा भी काफी ज्यादा होता है, जिसमें मक्खन, घी, तेल शामिल हैं और इनका जरूरत से ज्यादा सेवन स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम सोचते रहे कि हम सब कुछ ठीक कर रहे हैं, फिर इतनी मौतें क्यों हो रही हैं? इसका कारण तो यही है. जब इन स्थितियों वाले ऐसे ज्यादा जोखिम वाले रोगी इस वायरस से संक्रमित होते हैं, तो उनके ठीक होने की संभावना कम ही रहती है.’

एम.एस. राजिंदर कॉलेज, पटियाला के डॉ. हरनाम सिंह रेखी ने कहा कि अस्पताल में भर्ती होने के 75 घंटे के भीतर जिन मरीजों की मौत हुई, वे ऐसी कोमोर्बिडिटी वाले मरीज ही थे.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास आने वाला हर दूसरा मरीज या तो मोटा था, या फिर उसे डायबिटीज या हाइपरटेंशन था या तीनों थे. हमारे डॉक्टरों की टीम के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई. हम मई के मध्य में एक दिन में 35 से अधिक लोगों की मौतें होते देख रहे थे, और इसमें से 65-70 प्रतिशत मरीज इन्हीं बीमारियों के शिकार थे. इसने पंजाब में सीएफआर बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई.’

समस्या इस हद तक बड़ी है कि पटियाला प्रशासन अब उन महिलाओं और पुरुषों की प्रोफाइलिंग कर रहा है जो मोटापे, डायबिटीज या फिर हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं, ताकि उनका परीक्षण किया जा सके और प्रारंभिक अवस्था में चिकित्सकीय देखभाल दी जा सके.

पटियाला के उपायुक्त कुमार अमित ने कहा, ‘ऐसे मामले भी सामने आए जब मरीज के बहुत ज्यादा मोटे होने और उनका पेट निकला हुआ होने कारण हम नहीं उल्टा लिटाने की स्थिति में नहीं थे. हमारे लिए उन्हें इस स्थिति में रखना मुश्किल था. यह अब हमारे लिए चिंता का एक प्रमुख विषय है, और तीसरी लहर की तैयारी करते समय हम ऐसी अवस्था वाले लोगों की प्रोफाइल तैयार करेंगे, ताकि उन्हें शुरुआती चरण में ही चिकित्सा संबंधी देखभाल मिल सके.’

सम्पन्नता, बहुत ज्यादा खाना बीमार बना रहा

डीएमसी, लुधियाना में मुख्य आहार विशेषज्ञ रितु सुधाकर के अनुसार, ‘समृद्धि, उपलब्धता और अत्यधिक उपभोग’ ने पंजाबियों के बीच खराब जीवनशैली वाले गैर-संचारी बीमारियों को बढ़ाया है.

सुधाकर ने कहा, ‘यहां संपन्नता की स्थिति है जिसमें लोग घी, मक्खन खरीद सकते हैं, प्रोटीन युक्त आहार ले सकते हैं और यही कारण है कि अधिक उपभोग किया जाता है. लोग खाते ज्यादा हैं और शारीरिक व्यायाम करते नहीं है. हालांकि बहुत से पंजाबी कृषि से जुड़े हैं, लेकिन उनमें से कोई भी वास्तव में खुद खेतों में काम नहीं कर रहा है क्योंकि उन्होंने इसके लिए मजदूरों को काम पर रखा है. इसलिए, शारीरिक श्रम से जुड़ा कोई बड़ा काम न होने और खानपान की आदतें वही बनी रहने से मोटापा, डायबिटीज बढ़ रहा है.’

सुधाकर ने कहा, शराब का सेवन एक और फैक्टर है. उन्होंने कहा, ‘यहां के लोग चाहे महिलाएं हों या पुरुष उच्च वसा वाले भोजन के साथ-साथ शराब का बहुत अधिक सेवन करते हैं, जिससे मोटापा, डायबिटीज ज्यादा होता है. हमारे पास आने वाले कई मामलों में शराब का ज्यादा सेवन एक प्रमुख कारण रहा है.’

2019 के अध्ययन का नेतृत्व करने वाले पीजीआईएमईआर के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रो जे.एस. ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया कि ‘पंजाब का अति पोषक आहार की तरफ बढ़ना स्थितियों को बदतर बना रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘पंजाब में युवा और बच्चे तक मोटापे और हाइपरटेंशन के शिकार है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अधिक सब्जियां, फल खाने के बजाये पिज्जा और बर्गर ज्यादा खा रहे हैं. इसके अलावा वह पहले ही वसा से भरपूर आहार ले रहे हैं.’

डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में मोटापे और डायबिटीज की समस्या तीसरी लहर में उन्हें गंभीर खतरे में डाल सकती है.

डीएमसी, लुधियाना के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. बिश्व मोहन ने दिप्रिंट को बताया कि बच्चों में मोटापे और हाइपरटेंशन के मामले में पंजाब सर्वोच्च रैंकिंग वाला राज्य है.


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उन्होंने कहा, ‘यह लगभग 5 प्रतिशत है, जो बहुत अधिक है. हमने एक अध्ययन में यह भी पाया कि पंजाब में 49.2 फीसदी लोग मोटापे के शिकार हैं जो उनके कई अन्य बीमारियों की चपेट में आने का जोखिम बढ़ा देता है.

अस्पताल आने में देरी, झोलाछाप डॉक्टरों पर भरोसा

डॉक्टरों का कहना है कि पंजाब में ज्यादा सीएफआर का एक अन्य कारण यह भी है कि लोग अस्पताल आने में बहुत देर करते हैं.

चारों जिलों के डॉक्टरों ने दिप्रिंट को बताया कि ज्यादातर लोग शुरुआती इलाज के लिए ‘झोलाछाप’ डॉक्टरों पर निर्भर थे और हालत खराब होने के बाद ही उन्होंने अस्पतालों का रुख किया.

पटियाला के राजिंदर कॉलेज के डॉ. रेखी ने कहा, ‘भर्ती होने के समय गंभीर अवस्था वाले ज्यादातर मरीजों के बारे में हमने पाया कि उन्होंने शुरू में बिना किसी डॉक्टर को दिखाए दवा ली थी.

उन्होंने कहा, ‘इनमें ऐसे लोग थे जो बीमार होने पर पहले झोलाछाप डॉक्टरों के पास पहुंचे जहां उन्हें टाइफाइड जैसी बीमारियों की दवा दे दी गई. ऐसे लोग भी थे जिन्होंने घर पर ही दवा ली और अस्पताल में एकदम आखिरी चरण में तब पहुंचे जब उनका ऑक्सीजन स्तर घटकर 50 से नीचे चला गया.

डॉ. बिश्व मोहन ने कहा कि यही कारण है कि लुधियाना में ज्यादातर मौतें अस्पतालों की तुलना में घर पर रहने वाले लोगों की हुई हैं.

उन्होंने कहा, ‘यहां के लोगों का व्यवहार भी एक बड़ा मुद्दा है. वे तब तक अस्पताल नहीं जाना चाहते जब तक बहुत देर न हो जाए. बहुत से लोग झोलाछाप डॉक्टरों पर ही भरोसा करते हैं. हमने विश्लेषण में पाया कि घरों में होने वाली मौतों के आंकड़े अस्पतालों में हुई मौतों की तुलना में बहुत अधिक हैं.’

डॉक्टरों ने कहा कि इसके अलावा, सरकारी अस्पतालों में मौतों का आंकड़ा ज्यादा होने का एक कारण यह भी है कि कई निजी अस्पतालों ने गंभीर स्थिति वाले मरीजों को सरकारी अस्पताल रेफर कर दिया था.

डॉ. रेखी ने कहा, ‘निजी अस्पतालों ने गंभीर मरीजों को भर्ती करने से इनकार कर दिया और इससे हम पर भार बढ़ गया और बहुत समय भी बर्बाद हुआ. जब तक वे हम तक पहुंचते तब तक और भी ज्यादा गंभीर हो चुके होंगे.’

पटियाला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी इस बात की पुष्टि की कि निजी अस्पतालों ने गंभीर मरीजों को भर्ती करने से मना कर दिया था. अधिकारी ने कहा कि प्रशासन अब मरीज को भर्ती करने से इनकार करने वाले किसी भी निजी अस्पताल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की योजना बना रहा है.

एक अन्य फैक्टर, जिसने लोगों को अस्पताल जाने से रोका, यह भी था कि ऐसी ‘अफवाहें’ चलती रहीं कि कोविड सिर्फ एक ‘साजिश’ है और सरकार अस्पताल में भर्ती हर मरीज से पैसा कमा रही है.


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डॉ. बिश्व मोहन ने कहा, ‘लोगों ने सोचा कि सरकार लोगों को पॉजिटिव बताकर उनसे पैसे ऐंठ रही है. इसके अलावा, कृषि कानूनों को लेकर सरकार के खिलाफ गुस्से ने खासी भूमिका निभाई क्योंकि लोगों ने टेस्ट कराने कराने या इलाज के लिए अस्पताल जाने से इनकार कर दिया, जिससे ज्यादा नुकसान पहुंचाया.

सीएफआर पॉजिटिविटी रेट पर भी निर्भर

पंजाब भर के डॉक्टरों ने एक बात यह भी कही कि हाई सीएफआर के बावजूद पंजाब में प्रति मिलियन मौतें दिल्ली या महाराष्ट्र से कम ही हैं.

डॉ. तलवार ने दिप्रिंट को बताया कि सीएफआर का टेस्ट की संख्या और पॉजिटिविटी रेट से भी संबंध है. जितने अधिक सकारात्मक मामले, उतना ही कम सीएफआर.

उन्होंने कहा, ‘अन्य राज्य अधिक आरएटी टेस्ट कर रहे हैं, यही वजह है कि उनके यहां टेस्ट की संख्या और पॉजिटिविटी रेट अधिक है. इनमें ऐसे मरीज भी शामिल हैं जो एसिमप्टमैटिक और कम जोखिम वाले हैं. पंजाब में हमने आरटी पीसीआर टेस्ट पर भरोसा किया है, जिसमें ज्यादातर सिमप्टमैटिक और उच्च जोखिम वाले लोग हैं. यदि हमने भी आरएटी किया होता, तो हमारे टेस्ट के आंकड़े अधिक होते, पॉजिटिविटी रेट अधिक होता और सीएफआर कम होता.’

डॉ. बिश्व मोहन ने यह भी कहा कि मौतों का आंकड़ा पारदर्शी ढंग से दर्ज किया जाना भी एक बड़ा कारण रहा है.

उन्होंने कहा, ‘पंजाब में मौतों का आंकड़ा सही-सही दर्ज किया गया था और डाटा पारदर्शी ढंग से रखा गया, जिसके कारण भी सीएफआर अधिक है. कई राज्यों में मौतों तो ज्यादा हो सकती हैं लेकिन उनका सही-सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.’

मरीजों की देखभाल का अभाव

पंजाब में कथित तौर पर कई मौतें अस्पतालों में मरीजों की देखभाल सही तरीके से न होने के कारण भी हुई हैं.

पटियाला स्थित राजिंदर अस्पताल में भर्ती मरीजों के अटेंडेंट का आरोप है कि ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर इस डर से कोविड वार्ड में नहीं जाते कि कहीं उन्हें भी संक्रमण न हो जाए, इसलिए हमारे प्रियजन बिना किसी देखभाल के वहां पड़े रहते हैं.

यद्यपि अस्पताल के अधिकारियों ने इन आरोपों का खंडन किया है, लेकिन दिप्रिंट से बातचीत में अस्पताल में मौजूद डॉक्टरों ने ही इस बात की पुष्टि की कि वास्तव में मरीजों की अनदेखी की गई.

यही नहीं, नाम न छापने की शर्त पर एक डॉक्टर ने दिप्रिंट को यहां तक बताया कि जिन कर्मचारियों को आपातकालीन देखभाल का कोई अनुभव नहीं था, उन्हें आईसीयू में तैनात किया गया था. साथ ही डॉक्टरों ने स्टाफ की तरफ मरीजों को वॉशरूम न ले जाने या उनके डायपर तक न बदलने की भी कई शिकायतें कीं.

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