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कैसे तटीय क्षेत्रों, प्रदर्शनों ने तिरुवनंतपुरम को केरल में फिर से Covid की लहर का केंद्र बना दिया

केरल में कोविड के कारण हुई कुल मौतों में से एक चौथाई अकेले तिरुअनंतपुरम, जहां धारा 144 लागू है, में हुई हैं और कुल मामलों का छठा हिस्सा यहीं का है.

इरानिमुट्टम तिरुवनंतपुरम में गवर्नमेंट होम्योपैथिक कालेज में कोविड केयर सेंटर | ThePrint

तिरुअनंतपुरम: यहां हर तरफ इसके निशान नजर आते हैं.

इरानीमुत्तोम स्थित सरकारी होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज भी कई अन्य अस्पतालों की तरह एक महीने पहले प्रथम श्रेणी के कोविड-19 केंद्र से दूसरी श्रेणी के स्वास्थ्य केंद्र में बदल गया है. मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की हर रोज होने वाली कोविड ब्रीफिंग ऑनलाइन हो चुकी है, कैबिनेट बैठक हर हफ्ते होती है. निषेधाज्ञा लागू होने और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को जल्द बंद करने की समयसीमा के कारण रात 8.30 बजे तक एकदम सन्नाटा छा जाने से यह शहर भूतिया लगने लगता है.

यहां सड़कों पर लगाए गए ‘सक्सेसफुल’ और ‘ब्रेक द चेन’ अभियान, जिसके लिए दुनियाभर में इस राज्य की सराहना भी हुई थी, जैसे संदेश लिखे बोर्ड आज भी नजर आते हैं लेकिन अब उनका रंग उड़ चुका है.

केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम में आपका स्वागत है जो राज्य में महामारी की मौजूदा लहर का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है.

राज्य में अब तक (4 अक्टूबर) हुई 884 मौतों में से एक चौथाई यानी 266 अकेले तिरुअनंतपुरम में हुई हैं. राजधानी में 40,290 मामले दर्ज किए गए हैं जो राज्य में कुल 2,29,886 मामलों का एक छठा हिस्सा है.

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तिरुअनंतपुरम में पिछले दो हफ्तों में पॉजिटिविटी रेट 17-18 प्रतिशत के बीच रहा है, जबकि राज्य में पॉजिटिविटी रेट औसतन 13 फीसदी है.

यह संख्या केरल में तेजी से बढ़ते मामलों को दर्शाती है.


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कोविड-19 के शुरुआती चरण में बेहतर प्रबंधन से देश का पोस्टर बॉय बने केरल में बाद में मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है.

4 अक्टूबर तक राज्य में कुल 2,29,886 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 52,566 मामले 28 सितंबर से 2 अक्टूबर के बीच दर्ज किए गए.

यहां 4 मई तक स्थिति बहुत ही बेहतर थी जब राज्य, जिसने सबसे लंबे समय तक महामारी का सामना किया था, ने सिर्फ दो मौतों की सूचना दी थी. केरल वही जगह है जहां सबसे पहले कोविड-19 का पहला केस जनवरी में सामने आया था, जब एक छात्र को वुहान से लौटने के बाद पॉजिटिव पाया गया था.

केरल सोशल सिक्यूरिटी मिशन के कार्यकारी निदेशक और स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा की कोविड-19 कोर टीम के सदस्य डॉ. मोहम्मद असील बेंगलुरु से समानताएं बताते हुए राज्य में एक हॉटस्पॉट बन चुके तिरुअनंतपुरम की स्थिति समझाते हैं.

वह कहते हैं कि एक राजधानी के ‘केंद्रीय प्रभाव’ ने यह समस्या पैदा की है. वह कहते हैं, ‘पूरे देश और सभी राज्यों से लोग यहां आते हैं, बहुत सारे लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है जो व्यापार के लिए आते हैं, सचिवालय का दौरा करते हैं.’

स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा की कोर कोविड-19 टीम के सदस्य डॉ. मोहम्मद अहील, | Photo: Praveen Jain | ThePrint

राजनीतिक विरोध प्रदर्शनों ने नुकसान पहुंचाया

यह तो रिकॉर्ड में दर्ज है कि 22 सितंबर को समाप्त ओणम त्योहार के बाद मामले में तेजी दर्ज की गई है. यही नहीं मुख्यमंत्री विजयन ने तो ओणम के बाद मामलों में तेजी की चेतावनी भी दी थी. लेकिन शीर्ष सरकारी अधिकारियों ने मामले बढ़ने के लिए राजनीतिक गतिविधियों और सोने की तस्करी के मुद्दे पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को जिम्मेदार बताया है.

मुख्य सचिव डॉ. विश्वास मेहता कहते हैं, ‘अगले साल चुनाव होने हैं और इसलिए बहुत सारी राजनीतिक गतिविधियां चल रही हैं. कभी-कभी लोग आपाधापी में यह भूल जाते हैं कि कोई भी व्यक्ति अमर होकर नहीं आया है, वायरस किसी पार्टी को नहीं पहचानता है. जब यह कानून-व्यवस्था का मुद्दा बनता है तो प्रोटोकॉल से समझौता तक कर लिया जाता है. अंतत: मुख्यमंत्री ने सभी राजनीतिक दलों को बुलाकर बात की और कहा कि संख्या लगातार बढ़ रही है क्या हमें इसे रोक सकते हैं. मुझे खुशी है कि ज्यादातर इस पर सहमत थे. अगर कुछ गलत हो रहा है तो किसी को तो बचाव में आगे आना होगा….मेरे पास पुलिस अधिकारी हैं, विधायक, मंत्रियों तक का टेस्ट पॉजिटिव आ रहा है. इससे कोई बचाव नहीं है.’

मौजूदा समय में तिरुअनंतपुरम की सड़कों पर मास्क लगाने का अनुपालन तो लगभग सौ फीसदी हो रहा है. और पोथिस मॉल जैसी जगहों पर दुकान मालिक एक समय में पांच से ज्यादा लोगों को अनुमति न देने को लेकर बेहद सतर्क हैं.

लेकिन लगता है कि इस बीमारी ने उस राज्य को बेहतर बना दिया है जिसे कभी इसे हराने का श्रेय दिया जाता था. जगह-जगह धारा 144 लागू होने के चलते कहीं भी भीड़ नजर नहीं आती है और दुकानें जल्दी बंद होने लगी हैं. फिर लॉकडाउन होने की अटकलें काफी तेज हैं हालांकि मुख्य सचिव ने स्पष्ट किया कि यह कोई विकल्प नहीं है.

कम्युनिटी ट्रांसमिशन को लेकर मुखर

हालांकि, देश में 66,85,082 मामले होने के बाद भी केंद्र सरकार अब तक देश में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की घोषणा करने से कतरा रही है, जबकि केरल इसके बारे में मुखर है.

डॉ. असील कहते हैं, ‘यदि आप मुझसे पूछें, तो पूरे भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन है. इसमें कुछ बुरा नहीं है, इस शब्द को लेकर शर्मिंदगी महसूस करने जैसा कुछ नहीं है. यह बीमारी का नैसर्गिक चरण है. जब हमने एक सशक्त कंटेनमेंट रणनीति अपनाई तो यह बीमारी की रोकथाम के लिए ही थी. हम इसे लोकल ट्रांसमिशन तक ही सीमित रखना चाहते थे. लेकिन हमने स्वीकार कर लिया है कि पोनतुरा में कम्युनिटी ट्रांसमिशन था. एक सीधी-सी परिभाषा है-जब कई स्वतंत्र क्लस्टर होते हैं तो यह कम्युनिटी ट्रांसमिशन का संकेत होता है. देश भर में यह हो रहा है…’

पोनतुरा तिरुअनंतपुरम में एक तटीय क्षेत्र है जहां मछुआरा समुदाय निवास करता है. मछली पकड़ने का काम होने के कारण यहां काफी ट्रक आते-जाते रहते हैं और आबादी के लिहाज से कोविड नियमों के पालन की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. कुछ लोग कहते हैं कि इसका एक बड़ा कारण यह है कि सत्ता में कोई भी पार्टी हो लेकिन सरकार के प्रति यहां विश्वास का भाव कम रहता है.

डॉ. मेहता कहते हैं, ‘हमारी समस्या (तिरुअनंतपुरम में) तटीय क्षेत्रों से शुरू हुई. मछली व्यवसाय के कारण तमिलनाडु आदि से बहुत से ट्रक आते रहते हैं और हमने पाया कि वे एक प्रमुख स्रोत थे. तटीय क्षेत्रों में लोग बेहद करीबी समुदाय वाले रूढ़िवादी लोग हैं. वे साथ रहते हैं. उनका स्वास्थ्य अच्छा है. लेकिन उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कह रहे हैं…जब हमने उनसे बुजुर्गों की खास देखभाल को कहा तो उन्होंने शुरू में इस पर ध्यान ही नहीं दिया.’

स्वास्थ्य कर्मचारी नाखुश

स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा पर्याप्त न होने को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं, लेकिन विशेष रूप से कर्मचारियों की कमी है. स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा के आश्वासन के बाद डॉक्टरों की हड़ताल वापस हो गई है. वेतन मिलना अनिश्चित है और ऐसे में नाराजगी बढ़ने लगी है.

सरकारी अधिकारी ऑफ-द-रिकॉर्ड बातचीत में मानते हैं कि कोविड के खिलाफ लड़ाई में बहुत सारे निजी अस्पतालों को शामिल न किए जाने से पहले ही जरूरत से ज्यादा काम संभाल रही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा पर बोझ बढ़ गया है.

इरानीमुत्तोम स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत सिस्टर मिनी, जो जून में एसिमप्टमैटिक मरीजों के इलाज के लिए बने 68-बेड वाले इस स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी हैं, बताती हैं कि कैसे पूर्व में 10 दिन की ड्यूटी के बाद सात दिन क्वारंटाइन का नियम अब टूट चुका है. उन्हें क्वारंटाइन के लिए अब केवल एक दिन मिलता है.

इरानिमुट्टम में गवर्नमेंट होम्योपैथिक कालेज के कर्मी | Photo: Praveen Jain, दिप्रिंट

सिस्टर मिनी कैंपस के एक हॉस्टल में रहती है, सुबह 7.30 बजे काम पर आती है और शाम 6.30 बजे तक वहां रहती हैं. उन्होंने कहा, ‘लगभग एक महीने पहले तक पहली श्रेणी का उपचार केंद्र था. जैसे-जैसे मामले बढ़ने लगे और बहुत-से कोमोर्बिडिटी वाले मरीज आने लगे तो इसे दूसरी लाइन के उपचार केंद्र में बदल दिया गया, जहां हमारे पास मामूली लक्षणों वाले मरीज आते हैं. हमारे पास ऑक्सीजन बेड भी हैं लेकिन आईसीयू नहीं है, यही वजह है कि यहां हर समय एंबुलेंस मौजूद रहती है ताकि जरूरत पड़ने पर किसी मरीज को शिफ्ट किया जा सके.’

यह बदलाव इसलिए हुआ क्योंकि जैसे-जैसे मामले बढ़ने लगे केरल ने सभी मरीजों को ऐसे किसी केंद्र में लाने की अपनी नीति को संशोधित कर दिया. अब यह बिना लक्षणों या कोमोर्बिडिटी वाले मरीजों को उनके उपचार की कुछ सुविधाओं का ध्यान रखते हुए घर ही रहने की अनुमति देता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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