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सरकार ने कहा कोविड से मरने वाले डॉक्टरों के 64 परिवारों को इंश्योरेंस के 50 लाख रुपए मिले

सरकार का जवाब तब आया जब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक लिस्ट पेश की, जिसमें दावा किया गया था, कि 382 डॉक्टर्स कोविड-19 की भेंट चढ़े हैं.

पंजाब के मोहाली के अस्पताल में डॉक्टर और नर्स मरीज का इलाज करते हुए/फोटो: प्रवीण जैन / दिप्रिंट

नई दिल्ली: देश में डॉक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से, 382 डॉक्टरों की सूची पेश किए जाने के बाद, जिन्होंने अपनी ड्यूटी के दौरान कोविड-19 के हाथों जान गंवाई, सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा को सूचित किया, कि केवल 155 डॉक्टरों और हेल्थवर्कर्स के परिवारों को ही, ‘कोविड-19 से लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज’ के तहत, वादा की हुई बीमे की रक़म मिली थी.

जिन 155 स्वास्थ्यकर्मियों के परिवारों को, उनकी मौत के बाद 50 लाख रुपए की बीमा राशि मिली, उनमें 64 डॉक्टर थे.

महाराष्ट्र में, जो सबसे अधिक कोविड-19 प्रभावित राज्य है, 21 परिवारों को बीमा सहायता मिली, जो किसी भी दूसरे राज्य से अधिक है.

गुजरात और पश्चिम बंगाल दोनों में, 14-14 परिवारों को ये राशि मिली. 12 लाभार्थी आंध्र प्रदेश में और 10 तमिलनाडु में थे. इस संख्या में आशा वर्कर्स और ऑग्ज़ीलियरी नर्स मिडवाइव्ज़ (एएनएम) भी शामिल हैं.

‘कोविड-19 से लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज’ के अंतर्गत, ये बीमा स्कीम 30 मार्च को घोषित की गई थी. शुरू में ये स्कीम केवल तीन महीने के लिए थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ा दिया गया.

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चित्रण: रमणदीप कौर/दिप्रिंट

सरकार ने कहा- डॉक्टरों के लिए अलग से कोई स्कीम नहीं

स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने शुक्रवार को लोक सभा में कहा,“कोविड के संदर्भ में इन मारे गए डॉक्टरों, नर्सों और अन्य हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए, मुआवज़े या उनके परिजनों की नौकरी के लिए, कोई विशेष स्कीम प्रस्तावित नहीं है”.

ये बयान उस सवालों के जवाब में था, जो तृणमूल कांग्रेस के प्रसुन बनर्जी समेत कई सांसदों ने, ऐसे हेल्थकेयर वर्कर्स के बारे में सरकार की नीतियों पर उठाए थे, जो महामारी के दौरान अगले मोरचे पर काम करते हुए मारे गए थे.

लेकिन आईएमए ने सरकार के इन आंकड़ों पर निराशा व्यक्त की है, कि केवल 64 डॉक्टरों के परिवारों को बीमे की रक़म मिली है.

आईएमए के महासचिव डॉ आरवी अशोकन ने दिप्रिंट से कहा, ‘आज तक, 418 डॉक्टर्स कोविड से मारे जा चुके हैं, और ज़ाहिर है कि उन्हें ये संक्रमण अस्पतालों या क्लीनिक्स में ही लगा, जहां वो काम कर रहे थे. सरकार का ये नज़रिया बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, ख़ासकर ऐसे समय, जब देश ऐसी स्थिति से दोचार है, जो उसने आज़ादी के बाद से नहीं देखी है, बल्कि ऐसी स्वास्थ्य इमरजेंसी, पिछले सौ साल में भी नहीं देखी गई’.

अशोकन ने ये भी कहा, ‘अगर सरकार निजी क्षेत्र में काम करने वाले, 60-70 प्रतिशत डॉक्टरों को अपना नहीं समझेगी, तो आप एक हाथ बांधकर कैसे लड़ सकते हैं? किसी दूसरे देश ने इतनी बड़ी संख्या में डॉक्टर्स नहीं खोए हैं. (अमेरिका में) सीडीसी ने भी केवल 120 की लिस्ट दी है. सरकार इस संख्या को छिपा नहीं सकती’.


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सरकार के पास मारे गए डॉक्टर्स का केंद्रीय डेटा नहीं

कुछ दिन पहले, चौबे ने राज्यसभा को बताया था, कि चूंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, ऐसे स्वास्थ्य कर्मियों का कोई केंद्रीय डेटा नहीं है, जो कोविड-19 से मारे गए हैं.

विपक्षी दलों ने इस बयान की कड़ी आलोचना की, और कांग्रेस लीडर राहुल गांधी ने भी कहा, कि सरकार ‘कोरोना योद्धाओं’ का अपमान कर रही है.

आईएमए ने तुरंत ही 382 डॉक्टरों की सूची जारी की, जो इसके मुताबिक़ कोविड से मारे गए थे.

ये पूछे जाने पर कि इतनी कम संख्या में डॉक्टरों को इंश्योरेंस दिया गया, स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा:’बीमा की प्रक्रिया और दस्तावेज़ रखने का काम राज्य सरकारें करती हैं, इसलिए इस काम की गति अलग अलग होती है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ये भी है, कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की प्रोसेसिंग तो काफी जल्दी हो जाती है, लेकिन निजी अस्पताल सरकार को सूचना भेजने, और ज़रूरी औपचारिकताएं पूरी करने में कहीं ज़्यादा सुस्त होते हैं, जिससे ये प्रक्रिया धीमी हो जाती है, और बीमा राशि मिलने में समय लगता है.’


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