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बिहार में कोविड की संख्या अद्भुत है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कैसे ‘यह समझाना बहुत मुश्किल है’

पोल बाउंड बिहार में देश की दूसरी सबसे कम पाजिटिविटी रेट है और हर दिन 1 लाख से अधिक नमूनों का परीक्षण हो रहा है, जिसमें केवल 0.5 प्रतिशत की फैटेलिटी रेट है.

23 अक्टूबर 2020 को हिसुआ, नवादा में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस-राजद की चुनावी रैली में लोग | एएनआई

नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने एक एडवाइजरी जारी की थी जिसमें मानदण्डों का पालन करके चुनावी रैली में शामिल होने के लिए कहा गया था, इसमें पार्टियों को कोविड से बचने के उपाय को सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था, लेकिन बिहार के कोविड नंबर एक अद्भुत तस्वीर पेश कर रहे हैं.

राज्य दैनिक आधार पर लगभग 1.5 लाख नमूनों का परीक्षण कर रहा है. 18-24 अक्टूबर के बीच यहां का पाजिटिविटी रेट राष्ट्रीय औसत 4.71 प्रतिशत के मुकाबले लद्दाख के बाद 0.9 प्रतिशत था.

राज्य में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की उपलब्धता देश में सबसे खराब है. इसके बावजूद बिहार में देश में सबसे कम मृत्यु दर है. जो कि 0.52 प्रतिशत है. यह राष्ट्रीय औसत 1.51 प्रतिशत से कम है.

नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में कुल 40,649 एलोपैथिक डॉक्टर हैं जबकि देश में 1,169 लोगों के लिए एक डॉक्टर के राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार में 2,435 लोगों के लिए एक डॉक्टर है.

सोमवार तक, राज्य में 2,12,192 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से केवल 10,223 वर्तमान में सक्रिय हैं. राज्य ने सोमवार को 749 मामलों और सात मौतों की सूचना दी और 1,39,218 परीक्षण किए, जिसका अर्थ है कि परीक्षण किए गए नमूनों में से केवल 0.5 प्रतिशत पॉजिटिव थे. राष्ट्रीय स्तर पर सोमवार के लिए यह संख्या 4.8 फीसदी थी. यहां वर्तमान में मरने वालों की संख्या 1,049 है.

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नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए एक वरिष्ठ स्वास्थ्य शोधकर्ता जो पिछले कुछ समय से सूक्ष्म स्तर के कोविड डेटा पर नज़र रख रहे हैं, ने कहा, ‘बिहार का डेटा कागज पर इतना अच्छा दिखता है, यह भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक के लिए अविश्वसनीय है. हमें कुछ कहने के लिए अधिक जानकारी की आवश्यकता है.’

उदाहरण के लिए परीक्षण के अलग-अलग प्रकारों, वे क्षेत्र जहां परीक्षण वास्तव में किए जा रहे हैं आदि से मदद मिलेगी. यदि अब से लगभग दो सप्ताह में मामले सामने नहीं आते हैं, तो यह तो चमत्कारिक होगा.

‘समझाना बहुत मुश्किल’

बिहार के कोविड नंबरों ने विशेषज्ञों को परेशानी में डाल दिया है.

डॉ पी.के. सिंह, निदेशक, एम्स पटना ने दिप्रिंट को बताया ‘यह समझाना बहुत मुश्किल है. यह उसी तरह की कठिनाई है जब हम भारत की तुलना दुनिया से करते हैं और तब हम बिहार की तुलना शेष भारत से करते हैं. मैं जानता हूं कि यहां के लोग मास्क नहीं पहनते हैं, सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन नहीं करते हैं, उनका व्यवहार ऐसा है कि यह संक्रामकता का समर्थन करता है. लेकिन फिर भी संख्या बहुत कम है.’

उन्होंने कहा कि परीक्षण भी पर्याप्त है. ‘आप पर्याप्त परीक्षण नहीं कह सकते क्योंकि पाजिटिविटी बहुत कम है – सिर्फ एक जिले में यह तीन प्रतिशत के आस-पास है, बाकी सभी जगहों पर यह 0.7-0.9 प्रतिशत है. ‘परीक्षण बढ़ाने का कोई कारण नहीं है. आप इसे इम्युनिटी द्वारा भी नहीं समझा सकते हैं क्योंकि बहुत अच्छी इम्युनिटी वाले लोगों में भी, संक्रमण दिखाई देगा परीक्षण सकारात्मक आएगा.’

वह इसे वायरस की संक्रामकता से जोड़ने के लिए या राज्य में एक अलग तनाव होने की संभावना को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने कहा यह पूरी तरह से स्टडी करने का विषय है यहां तक ​​कि यूपी की संख्या भी इससे अधिक है और यूपी और बिहार में तनाव अलग-अलग होने की संभावना है.

प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) प्रत्यय अमृत को भी इस बात का अंदाजा नहीं है कि राज्य में वायरस का स्ट्रेन कम है. मैं वायरस के स्ट्रेन बारे में कुछ नहीं जानता. डॉक्टरों से पूछें. लेकिन कोविड के मानदंडों के अनुपालन के बारे में पूछा गया और क्या वह इसके बारे में खुश हैं, वे कहते हैं, ‘हम कैसे खुश रह सकते हैं? यह एक बड़ी चुनौती है.’

लेकिन राज्य के भाजपा अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल, जो एक प्रैक्टिसिंग डॉक्टर भी हैं, ने कहा संख्याओं के बारे में एक सिद्धांत है. उन्होंने कहा कि बिहार के पास उद्योग नहीं है वास्तव में यह राज्य के लिए फायदा सकता है.

‘यदि आप डेटा को देखेंगे तो आप देखेंगे कि निम्न स्तर बिल्कुल प्रभावित नहीं होता है. हम पर्याप्त टेस्ट कर रहे हैं. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि बिहार में हम सार्वजनिक परिवहन या रेलगाड़ियों का उपयोग नहीं करते हैं. लोग बाजार या खेत में जाते हैं और घर वापस आते हैं. वे या तो बाइक से चलते हैं या पैदल यात्रा करते हैं. शायद ही कोई सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करता है. यही कारण है कि संख्या इस तरह से हो सकती है. यहां कम भीड़ है, बाजार भी अलग-अलग क्षेत्रों में हैं.


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जिलों में ‘घटती प्रवृत्ति’

राज्य में कोविड-19 के आंकड़ों में अगस्त में कुछ समय के लिए उछाल दिखाई दिया और इसके बाद से यह कर्व सपाट हो रहा है.

बिहार पर ट्वीट्स की एक श्रृंखला में स्वास्थ्य अर्थशास्त्री रिजो जॉन ने लिखा, बिहार ने अकेले अब तक 1 करोड़ कोविड परीक्षण (भारत के कुल परीक्षणों का 10%) किया है और 2 महीने से अधिक के लिए इसके टेस्ट पाजिटिविटी रेट को पांच प्रतिशत से कम रखा. अभी यह 2 प्रतिशत के आस-पास है. मामलों में गिरावट निरंतर बनी हुई है.

जॉन ने यह भी ट्वीट किया कि ‘गिरावट का रुझान’ जिलों में देखा गया है.

उन्होंने कहा, ‘एक भी अपवाद नहीं है जहां राज्य की टीपीआर 2% पर है. पटना में 10% से एक प्रतिशत तक कई जिलों में भिन्नता है. जिन जिलों में टीपीआर 3 प्रतिशत से कम है ने अब तक कुल परीक्षणों का 92% परीक्षण किया है. पटना, समस्तीपुर और पूर्वी चंपारण में टीपीआर 5% से कम है इसमें सभी परीक्षणों का केवल 7 प्रतिशत किया है. सभी जिलों का कुल मिलकर डेटा 8.2 लाख दिखा रहा है, जबकि राज्य का डेटा 1 करोड़ बता रहा है.

उन्होंने आगे ट्वीट किया, ‘पटना अब तक कुल मामलों में 16% का योगदान है और फिर भी बिहार में केवल 4.4% परीक्षणों में योगदान है. जबकि, गया जो केवल 3% मामलों में योगदान देता है, ने टीपीआर 1% के साथ 5% से अधिक परीक्षण किए हैं. बिहार के लिए सभी गूगल मोबिलिटी इंडिकेशन्स हैं, जहां वे फरवरी की शुरुआत में थे (https://bit.ly/31ZVcBN) हाल ही में राज्य भर में सभी सोशल डिस्टैन्सिंग और मास्क पहने मानदंडों को धता बताते हुए चुनावी रैलियां की गई थीं. केस काउंट के संदर्भ में इसके अपेक्षित परिणाम अभी तक नहीं देखे गए हैं.’

बिहार कांग्रेस के प्रमुख मदन मोहन झा ने हाल ही में दो राज्य मंत्रियों की मौत आंकड़ों के गड़बड़ी के बारे में बताती है.

उन्होंने कहा, ‘कोविड की मौतों के लिए वे जो संख्या देते हैं, वह बिल्कुल असंभव है… मैं उन जिलों में अधिक लोगों को जानता हूं जिन्होंने इस बीमारी के कारण दम तोड़ दिया है. एक सप्ताह के भीतर मेरे दो सहयोगियों की मृत्यु हो गई और दो मंत्री (पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री विनोद सिंह और पंचायती राज मंत्री कपिल देव कामत) की मृत्यु हो गई.

उन्होंने कहा, ‘जिस तरह से संख्याएं हैं, केवल दो संभावनाएं हैं – या तो कोई कोविड नहीं है (और) यह सब काल्पनिक है या संख्या को बदल दिया गया है. बिहार में बिल्कुल कोविड का पालन नहीं हो रहा है, फिर भी संख्या कम कैसे हो सकती है?’

चुनाव आयोग की हालिया याचिका में, विपक्षी राजद ने यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि बिहार चुनाव एक सुपर-स्प्रेडर इवेंट न बनें.

पार्टी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे इस बारे में गंभीर संदेह है कि परीक्षण डेटा सटीक है या नहीं. मैं बहुत दृढ़ता से मानता हूं कि आरटीपीसीआर परीक्षणों की तुलना में बिहार बहुत बड़े पैमाने पर एंटीजन परीक्षण कर रहा है. इसीलिए हमने वह याचिका प्रस्तुत की. हमें डर है कि बिहार एक कोविड संकट के लिए नेतृत्व कर सकता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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