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ICMR के पूर्व शोधकर्ता द्वारा सह-लिखित 18 पत्र ‘इमेज मैनीपुलेशन’ के लिए दोषी, यह इस महीने का दूसरा मामला

नवीनतम आरोपों ने दास द्वारा सह-लिखित फ़्लैग किए गए पत्रों की कुल संख्या को 28 तक पहुंच गयी है. जनवरी में कदाचार के आरोपी अन्य आईसीएमआर शोधकर्ता ने आरोपों से इनकार किया था.

पूर्व आईसीएमआर शोधकर्ता प्रदीप दास की एक फाइल फोटो | फोटो: भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की वेबसाइट

नई दिल्ली: आईसीएमआर के रिटायर्ड रिसर्चर प्रदीप दास द्वारा सह-लिखित अठारह शोध पत्रों को पिछले एक सप्ताह में कथित इमेज मैनीपुलेशन के लिए दोषी पाया गया है.

नए आरोपों में दास द्वारा सह-लिखित पत्रों की कुल संख्या 28 हो गई है. जबकि अन्य 10 पत्रों में से कुछ को सात साल पहले दोषी पाया गया था. जिनमें, कुछ को हाल के दिनों सामने लाया गया है , जिसमें से एक को पिछले साल जून में वापस ले लिया गया था.

दास, आईसीएमआर-राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व निदेशक, का नाम पत्रों में बार-बार आया है. हालांकि, उनके द्वारा कोई एकल शोध नहीं किया गया है. सभी 28 पत्रों में अन्य सह-लेखक हैं.

दास के अलावा, पेपर के कई अन्य लेखक भी आईसीएमआर-राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से संबद्ध थे.

28 में से दो पत्रों के लिए, लेखकों ने पहले ही सुधार जारी कर दिया है, जबकि तीसरे शोध पत्र के लिए ‘कंसर्न’ जारी की गई है. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, चौथे पत्र को वापस ले लिया गया था जैसा कि ऊपर बताया गया है

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शोध पत्रों को पबपीयर पर दोषी किया गया है, जो एक वेबसाइट है, जो कि वैज्ञानिकों को उन शोध पत्रों में कंसर्न को उठाने की अनुमति देती है जिन्हें सहकर्मी समीक्षा के बाद प्रकाशित किया गया है. पबपीयर पर टिप्पणियां अपने आप में वैज्ञानिक कदाचार का प्रमाण नहीं हैं. हालांकि, लेखकों के एक ही समूह द्वारा इस तरह के दोहराव के कई उदाहरण अक्सर चिंता पैदा करते हैं.

दिप्रिंट सोमवार को ईमेल के माध्यम से टिप्पणियों के लिए दास से बात करने का प्रयास किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

दास आईसीएमआर से जुड़े दूसरे शोधकर्ता हैं जिन्हें इस महीने कथित कदाचार के लिए दोषी पाया गया है.

इससे पहले, आईसीएमआर में वायरोलॉजी की प्रमुख निवेदिता गुप्ता इमेज मैनीपुलेशन और साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया गया था.

जबकि गुप्ता ने इन आरोपों से इनकार किया, बिक ने बाद में आरोप लगाया कि उन्हें अपनी पीएचडी थीसिस में इसी तरह के मुद्दे मिले थे. दिप्रिंट बिक के नए आरोपों के बाद टिप्पणी के लिए गुप्ता के पास संदेश के माध्यम से पहुंचा, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया.

दिप्रिंट सोमवार को टिप्पणियों के लिए आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव के पास पहुंचा, लेकिन प्रकाशन के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.


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ताजा आरोप

15 जनवरी के बाद से, यूएस-आधारित डच अनुसंधान अखंडता विशेषज्ञ एलिज़ाबेथ बिक ने दास द्वारा सह-लिखित 18 पेपर पाए हैं जिनमें इमेज मैनीपुलेशन के स्पष्ट उदाहरण हैं.

अन्य टिप्पणीकारों, जिनमें से कुछ ने नाम न बताने की शर्त पर उनके द्वारा सह-लिखित 10 अन्य पत्रों में इमेज मैनीपुलेशन और हेरफेर के ऐसे और उदाहरण पाए थे.

उठाई गई चिंताओं को विभिन्न प्रकार के जोड़तोड़ के लिए संदर्भित किया गया.

उदाहरण के लिए, 2012 में प्रकाशित जर्नल इम्यूनोलॉजी एंड सेल बायोलॉजी में प्रकाशित एक पत्रिका में, बिक ने बताया कि इमेज में से एक में दो समान बैंड दिखाई देते हैं, भले ही उन्हें अलग-अलग लेबल किया गया हो.

इसी तरह, 2014 में एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स एंड कीमोथेरेपी जर्नल में प्रकाशित एक पत्रिका में, बिक ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक ही इमेज के भीतर डुप्लिकेट क्षेत्र थे.

पिछले साल वापस ले लिए गए पेपर में, लेखक इमेज के लिए संतोषजनक स्पष्टीकरण प्रदान करने में असमर्थ थे. 2020 में फ्रंटियर्स इन इम्यूनोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित, पेपर में कई समान पैनलों के साथ एक इमेज थी. पत्रिका ने उन लेखकों से संपर्क किया, जिन्होंने सुधार भेजा था. हालांकि, इसमें भी, मैनीपुलेशन पाया गया था. परिणामस्वरूप, जर्नल ने निम्नलिखित कथन के साथ लेख को वापस ले लिया:

‘एक सुधार लेख जारी करने पर, आकृति पैनलों के भीतर और मुद्दों की पहचान की गई, अर्थात् प्रवाह साइटोमेट्री भूखंडों के बीच डॉट पैटर्न में समानताएं हैं. लेखक इन घटनाओं के लिए एक संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे पाए और मूल प्रवाह साइटोमेट्री डेटा प्रदान नहीं कर सके. नतीजतन, लेख का डेटा और निष्कर्ष अविश्वसनीय हो सकता है. इसलिए लेख और सुधार के लिए वापस लिया जा रहा है.’

‘इस वापसी को फ्रंटियर्स इन इम्यूनोलॉजी के स्पेशलिटी और फील्ड चीफ एडिटर्स और फ्रंटियर्स के एडिटर-इन-चीफ द्वारा अनुमोदित किया गया था. लेखक इस वापसी के लिए सहमत नहीं थे.’

बिक की कार्यप्रणाली

शोध पत्रों में इमेज मैनीपुलेशन का पता लगाने में अपने काम के लिए जानी जाने वाली एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट बिक ने 2019 के ब्लॉग पोस्ट में बताया था कि तीन प्रकार के इमेज मैनीपुलेशन हैं जिन्हें शोध पत्रों में देखा जा सकता है.

पहली श्रेणी, जहां दो इमेज समान दिखती हैं, किसी त्रुटि का परिणाम हो सकती हैं, जहां एक ही तस्वीर को गलती से दो बार डाला गया था.

उन्होंने कहा, दूसरी श्रेणी तब होती है जब इमेज को घुमाया जाता है, फ़्लिप किया जाता है, स्थानांतरित किया जाता है. यह के स्वाभाविक त्रुटि के परिणामस्वरूप होने की संभावना कम है और जानबूझकर किए जाने की अधिक संभावना है.’

उन्होंने यह भी बताया कि नकल की तीसरी श्रेणी वे हैं जहां विशेषताएं, जैसे कि सेल, बैंड, या डॉट्स के समूह, एक ही फोटो के भीतर या एक अलग फोटो में कई बार दिखाई देते हैं.

जबकि बिक ने उन श्रेणियों को निर्दिष्ट नहीं किया जो दास द्वारा सह-लिखित 18 मैनिपुलटेड पत्रों पर लागू होती हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि उनके पास श्रेणी- II और श्रेणी-III के मुद्दे हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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